Highlights
- भगवान बुद्ध का मन ‘श्रावस्ती’ में ही क्यों लगता था?
- श्रावस्ती के जेतवन में गौतम बुद्ध 24 वर्ष गुज़ारे थे
- ज़िले में आवागमन के संसाधनों की भारी कमी
आपने अंगुलिमाल डाकू का नाम तो सुना ही होगा। जी हां, वही डाकू जो अपने घर-परिवार के पालन-पोषण के लिए जंगलों के बीच गुफ़ा में छुपा रहता था और मौका मिलते ही राह चलते लोगों को लूट लेता था। यही नहीं लूटपाट के बाद ऊंगलियां काटकर माला भी पहन लेता था। इसी क्रम में एक दिन उसकी मुलाकात भगवान बुद्ध से हो गई। और भगवान बुद्ध ने अंगुलिमाल डाकू को नास्तिक से आस्तिक बना दिया। जिस जगह यह चमत्कार हुआ उस जगह को ‘श्रावस्ती’ के नाम से जाना जाता है। यह स्थान भगवान बुद्ध को काफी पसंद था। यह वही इलाका है जहां गौतम बुद्ध अपने जीवन काल का सबसे ज्यादा समय बिताए थे। बौद्धस्थली श्रावस्ती में हर वक्त भक्तों की भीड़ लगी रहती है। इंडिया टीवी (India TV)' का खास कार्यक्रम 'ये पब्लिक है सब जानती है (Ye Public Hai Sab Jaanti Hai)' की टीम श्रावस्ती उस जगह पहुंची थी, जहां 2600 साल पुराना ‘बोधिवृक्ष’ मौजूद है। बातचीत के दौरान बौद्ध भिक्षु आनंद सागर ने इस जगह की महिमा के बारे में विस्तार से बताया. आप भी सुनिए.
श्रावस्ती के जेतवन में गौतम बुद्ध 24 वर्ष, वर्षा ऋतु के चार महीने गुज़ारे थे। जिस वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध ने तप किया था वह बोध वृक्ष आज भी यहां पर संरक्षित है। यहां चीन, कंबोडिया, कोरिया सहित विभिन्न देशों के मंदिर हैं। इसके अलावा यहां पर जेतवन, अंगुलिमाल गुफा, गंधकुटी, कच्ची कुटी, पक्की कुटी जैसे कई दर्शनीय स्थल हैं।
पर्यटन के दृष्टिकोण से यह जिला बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन आवागमन के संसाधनों की भारी कमी के चलते यहां लोगों की आमद कम ही हो पाती है।