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UP Elections 2022: जहूराबाद सीट पर फंस गए ओम प्रकाश राजभर? जानें क्या हैं ताजा समीकरण

जहूराबाद सीट पर SBSP के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर, बीजेपी के उम्मीदवार कालीचरण राजभर और बीएसपी की सैयदा शादाब फातिमा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है।

Reported by: Bhasha
Published on: March 02, 2022 19:30 IST
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Image Source : TWITTER.COM/OPRAJBHAR SBSP Leader Om Prakash Rajbhar.

Highlights

  • जहूराबाद सीट पर तीनों उम्मीदवार अनुभवी हैं, लेकिन इस बार उनकी राजनीतिक संबद्धता में बदलाव हुआ है।
  • ओम प्रकाश राजभर, जो 2017 में बीजेपी के सहयोगी थे, ने अब समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया है।
  • फातिमा ने कहा, यह दलितों, या अल्पसंख्यकों के बसपा के पारंपरिक वोट आधार तक सीमित नहीं है।

जहूराबाद: सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर को पूर्वी उत्तर प्रदेश की जहूराबाद विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर SBSP के प्रमुख राजभर, बीजेपी के उम्मीदवार कालीचरण राजभर और बीएसपी की सैयदा शादाब फातिमा के बीच त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है। इस मुकाबले को दिलचस्प बनाने वाली बात यह है कि गाजीपुर जिले के इस विधानसभा क्षेत्र में तीनों उम्मीदवार अनुभवी हैं, लेकिन इस बार उनकी राजनीतिक संबद्धता में बदलाव हुआ है।

फातिमा ने कराए थे कई विकास कार्य

जहूराबाद सीट से मौजूदा विधायक ओम प्रकाश राजभर, जो 2017 में बीजेपी के सहयोगी थे, ने अब समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाया है, फातिमा, जो राज्य में सपा की मंत्री रह चुकी हैं, अब बसपा उम्मीदवार हैं। 2 बार बसपा विधायक रह चुके कालीचरण राजभर इस बार बीजेपी से चुनाव मैदान में हैं। राजभर बनाम राजभर काफी मुश्किल मुकाबला था, लेकिन फातिमा के चुनाव मैदान में उतरने से इस मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। फातिमा को एक ऐसी उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है, जिन्होंने 2012 में जीत दर्ज कर सपा सरकार में मंत्री बनने के बाद बहुत सारे विकास कार्य किए थे।

‘मुझे सभी समुदायों से समर्थन मिल रहा है’
फातिमा शिवपाल यादव के धड़े प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में शामिल हो गई थी, लेकिन जब उन्होंने अपने भतीजे अखिलेश यादव के साथ समझौता किया, तो वह यहां से टिकट हासिल नहीं कर सकीं क्योंकि SBSP ने सपा के साथ गठबंधन किया है। उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के बारे में भी सोचा, लेकिन आखिरकार वह बीएसपी की उम्मीदवार बनने में कामयाब रही। फातिमा ने कहा, ‘तस्वीर बहुत स्पष्ट है, ये दोनों (कालीचरण और ओम प्रकाश राजभर) जाति के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं। मुझे सभी समुदायों से समर्थन मिल रहा है।’

‘ये दोनों अतीत में चुनाव हार चुके हैं, मैं नहीं’
फातिमा ने कहा, ‘यह दलितों, या अल्पसंख्यकों के बसपा के पारंपरिक वोट आधार तक सीमित नहीं है। मुझे ठाकुर, चौहान, भूमिहार, कुशवाहा समेत अन्य लोगों से भी समर्थन मिल रहा है। तो, कोई लड़ाई नहीं है। मैं जीत रही हूं और लड़ाई इस बात की है कि कौन दूसरे और तीसरे स्थान पर आएगा। मैंने 2017 में चुनाव नहीं लड़ा था। मैं चुनाव नहीं हारी हूं, जबकि ये दोनों अतीत में चुनाव हार चुके हैं। इसलिए कुछ नया नहीं होगा लेकिन 2012 का इतिहास दोहराया जाएगा जब ये दोनों मुझसे हार गए थे।’

‘ओम प्रकाश राजभर किसी के प्रति वफादार नहीं हो सकते’
कालीचरण राजभर ने भी अपनी जीत पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि उनके दोनों प्रतिद्वंद्वियों को लोगों ने खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, ‘चहुमुखी विकास और इसे एक आदर्श निर्वाचन क्षेत्र बनाना मेरा लक्ष्य है।’ कालीचरण राजभर ने अपने प्रचार अभियान के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला कि उनके प्रतिद्वंद्वी ओम प्रकाश राजभर ‘किसी के प्रति वफादार नहीं हो सकते’ क्योंकि उन्होंने सपा के पक्ष में जाने के लिए बीजेपी जैसी पार्टी को ‘छोड़ दिया’ था। कालीचरण राजभर ने कहा, ‘चुनाव जीतने के बाद वह कई मौकों पर लोगों के दुख-सुख बांटने के लिए निर्वाचन क्षेत्र नहीं आए।’

‘फातिमा 2012 में राज्य में सपा की लहर के दौरान जीती थीं’
SBSP महासचिव एवं ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरुण राजभर ने भी फातिमा की तरह दावा किया कि लड़ाई दूसरे और तीसरे स्थान के लिए है और उनके पिता को उनके 2 प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में अधिक वोट मिलेंगे। अरुण राजभर ने कहा, ‘वह (फातिमा) 2012 में राज्य में सपा की लहर के दौरान जीती थीं। बीजेपी केवल इस बात की चर्चा कर रही है कि वह चुनाव मैदान में हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हें अपनी जमानत बचाने के लिए लड़ना चाहिए।’ उन्होंने इस सुझाव को भी खारिज कर दिया कि राजभर वोट में विभाजन होगा। उन्होंने दावा किया कि समुदाय के 95 प्रतिशत लोग उनके पिता को वोट देंगे।

‘कड़ा मुकाबला है और 10 मार्च ही विजेता का पता चलेगा’
हालांकि, क्षेत्र के लोगों का मानना है कि यहां मुकाबला करीबी रहेगा। एक चाय की दुकान पर पपीता राम नामक व्यक्ति ने कहा कि वह फातिमा के विकास कार्यों के कारण उनका समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘हर व्यक्ति कहता है कि उनकी पार्टी जीत रही है, लेकिन यह कड़ा मुकाबला है और केवल 10 मार्च ही विजेता का पता चलेगा।’ जलेबी बेचने वाले एक अन्य व्यक्ति ओम प्रकाश ने कहा कि वह बीजेपी के कालीचरण का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने स्वीकार किया कि फातिमा ने अपने कार्यकाल के दौरान निर्वाचन क्षेत्र में विकास कार्य किये थे और इस सीट पर जीत का अंतर ‘बहुत कम’ होने की संभावना है।

जानें, क्या है जहूराबाद विधानसभा का जातीय समीकरण
अनुमान के मुताबिक, जहूराबाद में दलित मतदाताओं की संख्या लगभग 70,000, राजभर की लगभग 70,000, मुस्लिमों की संख्या 28,000 और यादवों की संख्या लगभग 45,000 है। फिर, चौहान मतदाताओं और राजपूत, ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं की एक बड़ी संख्या है। यहां एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि कई लोगों ने उन उम्मीदवारों के समर्थन में आवाज उठाई जो उनकी जाति से संबंधित नहीं है, जिससे इस बात का अनुमान लगाना मुश्किल है कि इस सीट पर कौन सा उम्मीदवार जीत दर्ज करेगा। इस सीट पर विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में सात मार्च को मतदान होगा। मतगणना 10 मार्च को होगी।

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