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UP Election Result 2022: क्यों टूटा अखिलेश का ख्वाब? समाजवादी पार्टी की हार के 5 सबसे बड़े कारण

अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ने भी इन चुनावों में सिर्फ 2 रैलियों में हिस्सा लिया।

Written by: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Updated on: March 10, 2022 16:12 IST
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Image Source : INDIA TV Samajwadi Party President Akhilesh Yadav addresses a press conference at party office in Lucknow.

Highlights

  • सपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है, लेकिन वह फिर भी बीजेपी से कोसों पीछे रह गई।
  • सपा ने ओपीएस, मुफ्त बिजली, सरकारी नौकरियों की संख्या में बढ़ोत्तरी जैसे कई वादे किए थे।
  • समाजवादी पार्टी की हार का एक बड़ा कारण उसके चुनावी वादों में जनता का विश्वास न होना माना जा रहा है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए गुरुवार को हुई मतगणना में समाजवादी पार्टी की करारी हार हुई है। 2017 के विधानसभा चुनावों से तुलना करें तो सपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है, लेकिन वह फिर भी बीजेपी से कोसों पीछे रह गई। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी ने ओपीएस, मुफ्त बिजली, सरकारी नौकरियों की संख्या में बढ़ोत्तरी जैसे कई वादे किए, लेकिन जनता पर असर छोड़ने में नाकाम रही। समाजवादी पार्टी के मत प्रतिशत में बड़ी बढ़ोत्तरी देखने को मिली, लेकिन बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन अखिलेश यादव की हर कोशिश को बेकार कर गया।

अखिलेश के अलावा किसी बड़े चेहरे का न होना: समाजवादी पार्टी एक और चीज में बीजेपी से पीछे रह गई और वह है बड़े नेताओं की संख्या। बीजेपी की बात करें तो उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में सबसे बड़े चेहरे के अलावा अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा और योगी आदित्यनाथ समेत कई कद्दावर नेता हैं। वहीं, समाजवादी पार्टी के पास अखिलेश के अलावा सिर्फ शिवपाल यादव थे, और वह भी ज्यादा सक्रिय नहीं नजर आए। अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव ने भी इन चुनावों में सिर्फ 2 रैलियों में हिस्सा लिया।

मुस्लिम-यादव के अलावा कोई बड़ा वोट बैंक साथ न होना: उत्तर प्रदेश में जमीन पर समाजवादी पार्टी की पहचान आमतौर पर एक ऐसे दल के रूप में बनी जिसके मुख्य मतदाता मुस्लिम और यादव हैं। चुनाव के रुझानों पर गौर करें तो अखिलेश को 2022 में इन दोनों ही धड़ों ने जमकर अपना समर्थन दिया। लेकिन जहां तक सवाल अन्य जातियों और पंथों का है, तो वे आमतौर पर समाजवादी पार्टी से दूर ही रहे। यही वजह है कि वोटरों के एक बड़े हिस्से पर लगभग एकमुश्त कब्जा जमाने के बाद भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का दोबारा यूपी का सीएम बनने का ख्वाब टूट गया।

चुनावी वादों पर जनता का भरोसा न होना: समाजवादी पार्टी की हार का एक बड़ा कारण उसके चुनावी वादों में जनता का विश्वास न होना है। 300 यूनिट फ्री बिजली का वादा एक बड़ी संख्या में मतदाताओं को खींचने की ताकत रखता था, लेकिन अखिलेश की सरकार में बिजली कटौती की यादें जनता के जेहन में अभी ताजा थीं। उसी तरह अन्य चुनावी मुद्दों पर भी अखिलेश सरकार का पिछला रिकॉर्ड भारी पड़ गया। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में जनता को बुनियादी सुविधाएं बेहतर नजर आईं।

जनता के मन में सपा समर्थकों की ‘खराब’ छवि: इन चुनावों में समाजावादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की दबंग छवि भी अखिलेश को ले डूबी। सरकार बनने की आहट के साथ ही प्रदेश के कई इलाकों से सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के विवादित बयान सामने आने लगे, जिनमें से कई कथित तौर पर धमकियों की शक्ल में थे। मऊ से सपा गठबंधन के उम्मीदवार अब्बास अंसारी द्वारा कथित ‘हिसाब-किताब’ की बात हो या कई इलाकों में सपा समर्थकों का उपद्रव, ऐसी खबरों ने निश्चित तौर पर ऐसे तटस्थ वोटर को सपा से काफी दूर कर दिया जो कानून व्यवस्था में विश्वास करता है।

चुनावों के दौरान हुआ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण: सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जमकर मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। शुरुआती चरणों में सपा ने जमकर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया जिससे बीजेपी मतदाताओं के मन में कहीं न कहीं यह बात डालने में सफल हो गई कि अखिलेश मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। मुजफ्फरनगर दंगों और सपा कार्यकाल में स्थानीय स्तर पर हुई कई घटनाओं ने मतदाताओं को सपा से दूर ही रखा।

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