नई दिल्ली: एक जमाने में अपने बयानों की वजह से कट्टर हिंदूवादी नेता के तौर पर लोकप्रिय हुए वरुण गांधी आजकल सोशल मीडिया के जरिए दिए गए अपने बयानों को लेकर काफी चर्चा में रहते हैं। गांधी परिवार के एक महत्वपूर्ण सदस्य के तौर पर भव्य स्वागत के साथ भाजपा में शामिल होने वाले वरुण गांधी को भाजपा आलाकमान ने 2013 में सबसे कम उम्र का राष्ट्रीय महासचिव बनाया। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने उन्हें पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी बना दिया। लेकिन जैसे-जैसे राजनीतिक परिस्थिति बदलती गई वैसे-वैसे वरुण गांधी का पद, कद और महत्व तीनों ही पार्टी में घटता चला गया। एक जमाने में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के सबसे प्रबल दावेदार माने जाने वाले वरुण गांधी आज पार्टी में पूरी तरह से अलग-थलग हैं।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और वरुण गांधी एवं उनकी माताजी मेनका गांधी, दोनों ही चुनाव प्रचार से पूरी तरह अलग हैं। भाजपा के पक्ष में बयान देना या भाजपा उम्मीदवारों को विजयी बनाने की अपील करने की बजाय वरुण ने तो अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गन्ने की कीमत, एमएसपी पर कानून, लखीमपुर खीरी हिंसा, केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी का इस्तीफा, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था के साथ-साथ वरुण गांधी लगातार सरकार की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और विदेश नीति पर सवाल उठा रहे हैं। कभी इशारों में तो कभी प्रत्यक्ष तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर भी कटाक्ष करते नजर आते हैं।
ऐसे में वरुण गांधी की भविष्य की राजनीति को लेकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वरुण गांधी क्या करना चाहते हैं ? अपनी ही पार्टी की सरकार को कठघरे में खड़ा कर वरुण गांधी हासिल क्या करना चाहते हैं? वरुण गांधी अपने रुख को लेकर यह साफ कर चुके हैं कि जनता ने उन्हें बुनियादी सवालों को उठाने के लिए चुनकर संसद भेजा है और इसलिए वो जनता से जुड़े मुद्दों को उठाते रहेंगे। जाहिर है कि वरुण ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है, हालांकि इसके साथ ही एक और तथ्य भी निकल कर सामने आ रहा है कि फिलहाल वरुण गांधी कोई नया राजनीतिक ठिकाना ढूंढने नहीं जा रहे हैं। यानि वो भाजपा में रहकर ही इन तमाम मुद्दों को उठाते रहेंगे और इस तरह से उन्होंने गेंद पार्टी के पाले में ही डाल दी है।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अक्टूबर 2021 में घोषित अपनी नई टीम से वरुण और मेनका गांधी को बाहर कर यह सख्त संदेश दे दिया था कि पार्टी वरुण के इन तेवरों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष के जरिए वरुण गांधी को उस समय यह समझाने का भी प्रयास किया गया था जो सफल नहीं हो पाया।
ऐसे में यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि फिलहाल दोनों ही एक दूसरे को तौलने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि वरुण गांधी यह चाहते हैं कि पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई करे लेकिन राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए भाजपा के आला नेताओं ने यह तय किया है कि वो वरुण गांधी को शहीद बनने का मौका नहीं देंगे, इसलिए उन्होंने वरुण को उनके हाल पर छोड़ दिया है। पार्टी सूत्रों की मानें तो फिलहाल पार्टी वरुण गांधी के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई करने के मूड में नहीं है, वहीं वरुण भी वेट एन्ड वाच की नीति को अपना कर भाजपा में रहते हुए भी लगातार अपने हमलों को तेज और तीखा करते जा रहे हैं।
(इनपुट- एजेंसी)