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UP Election 2022: पीएम मोदी और अखिलेश के रोड शो में दिखा समान जनसैलाब, किसको वोट कर रही काशी?

काशी में पीएम मोदी के रोड शो और अखिलेश की रैली में इस बार एक समाना भारी जनसैलाब दिखा। जानिए इसके समीकरण और इस प्रश्न को कि आखिर किसको वोट करेगी काशी की जनता?

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated on: March 07, 2022 14:48 IST
UP Election 2022- India TV Hindi
Image Source : PTI FILE PHOTO UP Election 2022

UP Election 2022: पीएम मोदी का वाराणसी से अगाध प्रेम और लगाव किसी से छिपा नहीं है। साल 2014 मोदी  ने कहा था कि मुझे गंगा मां ने यहां बुलाया है। मां गंगे के आशीर्वाद से जब वो पहली बार पीएम की कुर्सी पर बैठे तो काशी-विश्वनाथ के मंदिरों में भी उनकी जीत का अनुनाद सुनाई दिया। लेकिन वक्त के साथ चीजें बदलती गईं। आज यूपी की सत्ता की कसौटी पर पीएम मोदी की चमक उन रोड शो के जनसैलाब में जरूर दिख रही है, लेकिन यही जनसैलाब सपा के झंडाबरदार अखिलेश यादव के रोड शो में दिखाई दे रहा है। मोदी की लहर के आगे अखिलेश की चमक जरूर कम ही हो, लेकिन ये बराबरी का जनसैलाब बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ाने वाला है। जानिए उन सवालों के जवाब कि आखिर किसको वोट कर रही है काशी की जनता?

मोदी जानते हैं काशी की जनता की नब्ज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो काशी की नब्ज को वर्ष 2014 से ही जानते हैं। उन्होंने इस बार काशी में जब ये कहा कि इस चुनाव में मेरा यह आखिरी जनसंवाद है। यह वहां मौजूद मतदाताओं को भावुक करने वाला क्षण था, क्योंकि मोदी जाने ही इसलिए जाते हैं कि अपने शब्दों से वे लोगों के दिलों में उतर जाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मलदहिया से काशी विश्वनाथ मंदिर तक रोड शो किया। 

तकरीबन 3 किलोमीटर लंबे रोड शो की शुरुआत शहर उत्तरी विधानसभा क्षेत्र से की गई। यह रोडशो दक्षिणी विधानसभा से होते हुए कैंट में जाकर समाप्त हुआ। इस दौरान शिवभक्त मोदी को देखने के लिए काशी की जनता की भीड़ उमड़ पड़ी थी। मोदी के रोड शो के दौरान लोगों में भारी उत्साह नजर आया। लोग पीएम मोदी की एक झलक पाने के लिए लालायित दिखे।

रोड शो में लोग भगवा वेश में पहुंचे। जनता ने पीएम मोदी पर पुष्प वर्षा की, इस पर पीएम ने हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। ये नजारा बीजेपी को खुश करने वाला था, इसमें कोई संशय नहीं। लेकिन काशी के रोड शो की पिक्चर यहां समाप्त नहीं हुई, इसका एक पार्ट बाकी था, जो कुछ घंटे बाद शुरू होने वाला था। 

सातवें चरण से पहले सातवें आसमान पर था काशी की सियासत का पारा 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रोड शो खत्म होने के कुछ देर बाद रात आठ बजे से अखिलेश के कार्यक्रम की शुरुआत तीर्थ नगरी के रथयात्रा चौराहे से हुई। दो किलोमीटर के रोड शो की शुरुआत करने के कुछ देर बाद अखिलेश यादव ने एक वीडियो साझा करते हुए ट्वीट किया, '' काशी की रात का ये ऐतिहासिक सफर, राजनीतिक चेतना की एक नयी 'सुबह-ए-बनारस' की ओर ले जाएगा।

अखिलेश ने त्रिशूल और डमरू से की हिंदू वोटर्स को रिझाने की काेशिश

'मत चूके चौहान...' इस कहावत का पात्र बने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का इस बार काशी की धरा पर अलग रूप देखने को मिला। धर्मनगरी में रोड शो करने उतरे अखिलेश बाबा विश्वनाथ के प्रतीक चिन्ह त्रिशूल और डमरू के साथ लोगों से रूबरू हुए। माना यह जा रहा है कि सपा इस बार हिंदू मतदाताओं को रिझाने की पूरी कोशिश में जुटी रही। यही बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक भी है। यही कारण रहा कि आम तौर पर कट्टर हिंदुत्व छवि से बचने वाले अखिलेश यादव समाजवादी विजय यात्रा के दौरान हाथ में त्रिशूल और डमरू लेकर मतदाताओं को अलग संदेश दिया। उनकी रैली में उमड़ी भीड़ जहां अखिलेश का आत्मविश्वास बढ़ा रही थी, वहीं बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ा रही थी। 

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करीब 30 वर्षों से भी अधिक समय से राजनीति को करीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार हेमंत पाल ने इंडिया टीवी को बताया-

 1. भीड़ तो फिर भीड़ होती है। भीड़ को वोटर समझने की गलती अक्सर होती है। अखिलेश की सभा में भी आएगी और मोदी की सभा में भी आएगी, क्योंकि उनका इंटरेस्ट वोट की मानसिकता से अलग होता है। ये बिहार के चुनाव और पश्चिम बंगाल के चुनाव में भी हुआ है। इसलिए चुनावी रैलियों में भीड़ का उमड़ना समर्थक वोटर होने की निशानी नहीं है। क्योंकि भीड़ यह सुनने भी आती है कि मोदीजी ने जो बोला तो अखिलेश उसका क्या जवाब देंगे। ये भीड़ की वो मानसिकता है, जिसे आज तक कोई नहीं समझ पाया।

2. वहीं जब बूथ पर वोटर वोट डालता है उस समय वो अकेला होता है। उस समय वह अपने पांच साल के भविष्य के बारे में  फैसला कर रहा होता है। वह क्षणिक निर्णय होता है जिस पर वह ईमानदारी से एक मतदाता वोट करता है। हालांकि ये जरूर है कि अखिलेश की सभा में जनसैलाब उमड़ना बीजेपी को यह संदेश देता है कि यदि वे जीत जाते हैं तो आगे आने वाले पांच साल उन्हें और ज्यादा चुनौतीपूर्ण तरीके से काम करना होगा।

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