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Mainpuri By-Election 2022: क्या डिंपल यादव बचा पाएंगी मुलायम की विरासत?

समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से मैनपुरी में ये पहला चुनाव होगा जब मुलायम सिंह नहीं होंगे। अखिलेश यादव के लिए यही सबसे बड़ी चनौती होगी क्योंकि वो पहले ही आजमगढ़ और रामपुर में उप चुनाव हार चुके हैं।

Edited By: Sailesh Chandra @chandra_sailesh
Published on: November 14, 2022 15:21 IST
डिंपल यादव- India TV Hindi
Image Source : PTI डिंपल यादव

Mainpuri By-Election 2022: उत्तर प्रदेश में 3 उपचुनाव होने हैं लेकिन पूरे देश की नजर मैनपुरी पर टिकी है। SP के सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी पहली बार मैनपुरी के मैदान में है। डिंपल यादव को अखिलेश ने कैंडिडेट बनाया है जिन्होंने आज नॉमिनेशन फाइल किया। इस दौरान मुलायम सिंह यादव का पूरा कुनबा उनके साथ रहा। डिंपल को टक्कर देने के लिए बीजेपी मंथन कर रही है, किस प्रत्याशी को डिंपल के खिलाफ उतारा जाए इसके लिए लखनऊ से दिल्ली तक कई नामों की चर्चा चल रही हैं। बीजेपी इस मिथक को तोड़ना चाहती है कि कोई सीट किसी परिवार या किसी नेता का गढ़ है। योगी आजमगढ़ और रामपुर की ही तरह मैनपुरी भी जीतकर दिखाना चाहते हैं जबकि अखिलेश के लिए मैनपुरी की सीट इज्जत का सवाल है। बीजेपी इस सीट को जीत सकती है लेकिन उसे समाज के कुछ खास वर्गों के वोटों को एकमुश्त अपने पाले में करना होगा।

मैनपुरी में वोटों का समीकरण

मैनपुरी में करीब 18 लाख वोटर हैं जिसमें सबसे ज्यादा  4.30 लाख यादव मतदाता हैं। शाक्य वोटरों की संख्या 3 लाख के करीब है, 2 लाख के करीब क्षत्रिय वोटर हैं, दलित वोट करीब डेढ़ लाख है तो वहीं 1 लाख 10 हज़ार ब्राह्मण मतदाता हैं। लोध वोटर भी करीब 1 लाख के करीब हैं, 50 हजार मुस्लिम मतदाता हैं जबकि 20 हज़ार के करीब वैश्य वोटर हैं। वोटों का ये समीकरण अब तक समाजवादी पार्टी को खूब रास आ रहा था और 1996 से इस लोकसभा सीट पर साइकिल सरपट दौड़ रही थी लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 5 लाख 24 हज़ार 926 वोट मिले थे जबकि बीजेपी कैंडिडेट प्रेम सिंह शाक्य को 4 लाख 30 हज़ार 537 वोट मिले थे। मुलायम सिंह यादव महज 94 हजार 389 वोट से ही जीत सके थे जबकि बीएसपी से गठबंधन था और कांग्रेस ने इस सीट पर कैंडिडेट नहीं उतारा था।

बीजेपी शाक्य कैंडिडेट को उतारने का बना रही मन
समाजवादी पार्टी के गठन के बाद से मैनपुरी में ये पहला चुनाव होगा जब मुलायम सिंह नहीं होंगे। अखिलेश यादव के लिए यही सबसे बड़ी चनौती होगी क्योंकि वो पहले ही आजमगढ़ और रामपुर में उप चुनाव हार चुके हैं। वहीं, मैनपुरी की जनता इस चुनाव को नेताजी का चुनाव बता रहे हैं। सैफई के लोग क्षेत्र की जिम्मेदारी अखिलेश यादव के कंधों पर मानते हैं और कहते हैं कि सीट पर परिवार का कोई भी व्यक्ति उतरे जीत उसी की होगी। वहीं, बीजेपी किसी शाक्य कैंडिडेट को उतारने का मन बना रही है क्योंकि यादव वोटर का टूटना मुश्किल है। मैनपुरी सीट पर दूसरे नंबर पर शाक्य वोटर हैं जिसे बीजेपी 2019 के चुनाव की तरह इस बार भी अपने पाले में करना चाहेगी। अपर्णा यादव के नाम की भी चर्चा तेज हो गई है क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही वो बीजेपी के यूपी प्रदेश अध्यक्ष से मिलीं थी। माना जा रहा है कि बीजेपी बड़ी बहू के सामने छोटी बहू की चुनौती देना चाहती है।

लड़ाई कांटे की है
बीजेपी को डिंपल को हराने के लिए 3.25 लाख शाक्य, 1.20 लाख दलित, 1 लाख लोधी और 1.10 लाख ब्राह्मण वोटरों को अपने पाले में करना होगा। ये काम अगर बीजेपी कर ले गई, तो उसे मैनपुरी सीट मुलायम के परिवार से छीनने में कोई दिक्कत नहीं आएगी। मैनपुरी में 4 विधानसभा सीट है। 2017 में बीजेपी को केवल 1 सीट हासिल हुई थी जबकि समाजवादी पार्टी ने 3 सीट जीती थी लेकिन 5 साल बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 4 में 2 सीट जीती और 2 सीट समाजवादी पार्टी के खाते में गई। मतलब लड़ाई कांटे की है। अखिलेश के लिए मैनपुरी का किला बचाना इतना आसान नहीं रहने वाला है।

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