Monday, December 23, 2024
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मोदी मैजिक के इर्द-गिर्द सिमटी भारतीय राजनीति की धुरी

राजनीति विश्लेषकों की माने तो अभी जरूर पूरी बीजेपी मोदी मौजिक पर सवार है लेकिन अगर वक्त रहते इसका विकल्प नहीं ढूंढ़ा गया तो इसका बड़ा नुकसान पूरी पार्टी को उठाना पड़ेगा।

Written By: Alok Kumar @alocksone
Published : Dec 08, 2022 16:29 IST, Updated : Dec 08, 2022 16:29 IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र...
Image Source : FILE प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

मोदी है तो मुमकिन है! गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की लैंड स्लाइड विक्ट्री के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस वाक्य का प्रयोग करना अब कोई अतिशयोक्ति नहीं है। जिस तरह से गुजरात में नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे बीजेपी ने 27 साल की एंटी इनकम्बेंसी, मोरबी में पुल गिरने से 134 लोगों की मौत से उपजे गुस्से, छात्रों का विरोध और बेराजगारी के मुद्दे को पार कर एकतरफा जीत दर्ज की है, वह अपने आप में किसी मैजिक से कम नहीं है। आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के तमाम लोकलुभावन वादों को नकराते हुए जिस तरह से गुजरात की 52.49% जनता ने मोदी पर अपना विश्वास जताया है कि वह एक नई राजनीति की ओर इशारा कर रहा है। आपको बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 157 सीट जीतकर नया रिकॉर्ड बनाया है। इससे पहले 1985 में कांग्रेस को 149 सीट मिली थीं। विधानसभा चुनाव में किसी एक दल को 50% अधिक वोट मिलना एक बड़ी उपलब्धि है। चुनावी पंडितों की माने तो भारतीय राजनीति की धुरी अब पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के मैजिक के इर्द-गिर्द सिमट गई है। 

किस तरह मोदी ने बदल दी गुजरात की तस्वीर 

अगर, 2017 में हुए चुनाव पर नजर डालें तो बीजेपी को 100 से कम सीट आई थी। किसी तरह बीजेपी सरकार बना पाई थी। वहीं, 2022 के चुनाव में मोदी ने अपने दम पर एकतरफा जीत दिला दी है। यह काम इतना आसान नहीं था। सबसे पहले मोदी ने गुजरात की कमान अपने हाथ में लिया। उसके बाद बीजेपी ने उन तमाम नेताओं को अपने पक्ष में किया जिनसे बीजेपी को खतरा था। इसी क्रम में हार्दिक पटेल, ओबीसी चेहरे अल्पेश समेत कई कांग्रेस के नेता को बीजेपी में शामिल किया गया। फिर राज्य के मुख्यमंत्री और कैबिनेट में बड़ा फेरबदल किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से इस्तीफा लेकर पाटीदार भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया। नए मंत्रिपरिषद में रुपाणी मंत्रिपरिषद के सभी सदस्यों की छुट्टी कर दी गई। साथ ही गुजरात के कई नेताओं को अपनी कैबिनेट में जगह दिया, जहां से बीजेपी कमजोर हुई थी। इसी रणनीति के तहत मनसुख मांडविया और पुरुषोत्तम रुपाला को कैबिनेट मंत्री और डॉक्टर महेंद्र भाई मुंजापारा को राज्य मंत्री बनाया गया। उसके बाद मोदी ने गुजरात के लोगों को गुजरात मॉडल और गुजराती अस्मिता की याद दिलाई। ये सब मिलकर जनता के बीच ऐसे कॉकटेल तैयार करने में सफल रही कि बीजेपी नया रिकॉर्ड बनाने में कमायाब हुई। 

साल 2014 के बाद मोदी का विजय रथ रुका नहीं 

देश में एकमात्र नेता नरेंद्र मोदी ही हैं, जिनका विजय रथ पिछले दो दशक से ज्यादा समय से थमा नहीं है। 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने अभी तक किसी भी चुनाव में हार का सामना नहीं किया है। 2001 से लेकर 2013 तक वो गुजरात के मुख्यमंत्री और 2014 से प्रधानमंत्री पद पर अपनी सेवा दे रहे हैं। उनके नेतृत्व में 2014 से बड़ी जीत बीजेपी को 2019 मिली। विरोधी पार्टियां गुजरात दंगे से लेकर हिन्दु धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण का अरोप उनपर लगाती रहती है, लेकिन इस सब से बेपरवाह मोदी अपने लक्ष्य पाने की दिशा में लगातार बढ़ते रहते हैं। शायद यही वजह है कि तमाम विरोध के बावजूद वो जनता में उनकी जगह सबसे अलग बन चुकी है। आम जनता में उनकी छवि एक ईनादार और कर्मठ नेता की बन चुकी है जो गरीब और लाचार जनता की जिंदगी बदलने के लिए रात-दिन एक कर रहा है। ऐसे में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में किसी बड़े उलट-फेर की गुंजाइश नहीं दिखाई दे रही है। 

बीजेपी को समय रहते विकल्प ढूंढना होगा 

राजनीति विश्लेषकों की माने तो अभी जरूर पूरी बीजेपी मोदी मौजिक पर सवार है लेकिन अगर वक्त रहते इसका विकल्प नहीं ढूंढ़ा गया तो इसका बड़ा नुकसान पूरी पार्टी को उठाना पड़ेगा। बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे का इस्तेमाल निकाय चुनाव से लेकर राज्य और लोकसभा चुनाव में कर रही है। इसका फायदा बीजेपी को अभी मिल रहा है, लेकिन कब तक? जब मोदी राजनीति को अलविदा कहेंगे तो बीजेपी के पास किसका चेहरा होगा। आज गुजरात चुनाव में जनता ने न गुजरात के मुख्यमंत्री न किसी मंत्री को देखकर मतदान किया है। एकतरफा वोट मोदी के नाम पर किया गया है। अगर, ऐसी ही स्थिति बनी रही तो ​जो हालात आज कांग्रेस की है वो आगे बीजेपी की हो सकती है। 

हिमाचल में क्यों नहीं चला जादू 

अब सवाल उठता है कि जब मौदी मैजिक के इर्द-गिर्द भारतीय राजनीति सिमट गई तो फिर हिमाचल में प्रधानमंत्री का जादू क्यों नहीं चला? इसका जवाब जब हम टटोल रहें तो पता चला कि साल 1990 के चुनाव के बाद हिमाचल में प्रत्येक पांच साल बाद बदलाव का रिवाज है। 1990 के बाद हर पांच साल में यहां की जनता सरकार को बदल देती है। तब से लेकर अभी तक यही रिवाज हिमाचल प्रदेश में चलता आ रहा है। इस बार बीजेपी ने इस रिवाज को तोड़ने की तमाम कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई। वहीं, दूसरी ओर टिकट बंटवारे में भी कार्यकर्ता की नहीं सुनने और राज्य के कई शीर्ष नेतृत्व द्वारा मनमानी करने की बात अब सामने आई है। इसका भी खामियाजा बीजेपी को हुआ है। लेकिन यह नुकसान विधानसभा चुनाव तक ही है। जानकारों की माने तो 2024 के चुनाव में ​बीजेपी राज्य के चार लोकसभा सीट कांगड़ा, मंडी, हमीरपुर और शिमला सुरेश में जीत दर्ज करेगी। 

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