Saturday, November 09, 2024
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"मोदी-शाह को टक्कर दे रहे थे केजरीवाल" सामना में गुजरात और दिल्ली-MCD चुनाव की टाइमिंग पर सवाल

गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को चुनाव होने हैं। ठीक इसी बीच 4 दिसंबर को दिल्ली महानगरपालिका के चुनावों की भी घोषणा कर दी गई है। ऐसे में शिवसेना ने सामना में दोनों चुनाव की तारीखों पर सवाल उठाया है।

Reported By : Atul Singh Edited By : Swayam Prakash Updated on: November 08, 2022 16:12 IST
सामना में शिवसेना (उद्दव गुट) ने उठाए चुनाव की तारीख पर सवाल - India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO सामना में शिवसेना (उद्दव गुट) ने उठाए चुनाव की तारीख पर सवाल

गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली महानगरपालिका चुनाव का भी बिगुल बज गया है। गुजरात विधानसभा की 182 सीटों के लिए 1 दिसंबर और 5 दिसंबर को दो चरणों में चुनाव होगा, तो वहीं दिल्ली महानगरपालिका का चुनाव 4 दिसंबर को होगा। दोनों चुनावों की तारीखों को लेकर शिवसेना ने अपने संपादकीय सामना में सवाल उठाए हैं। शिवसेना ने लिखा कि गुजरात में 27 सालों से एकछत्र सत्ता चला रही भाजपा को पिछली बार कांग्रेस ने पसीने छुड़ा दिए थे। इस बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भाजपा की नाक में दम कर दिया है। 

शिवसेना ने को चुनाव की टाइमिंग पर क्यों शक

सामना में लिखा कि केजरीवाल को गुजरात में अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है इसलिए पहले से पसीने से तरबतर भाजपा की चिंता और बढ़ गई है। शायद इसीलिए केजरीवाल और ‘AAP’ के पैर में दिल्ली महानगरपालिका चुनाव की ‘कड़ी’ डालकर उन्हें उलझाने का खेल खेला गया है। गुजरात और दिल्ली दोनों जगहों पर केजरीवाल को अब ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा। उसमें दिल्ली विधानसभा की सीढ़ी मानी जाने वाली दिल्ली महानगरपालिका का महत्व होने से केजरीवाल को एक पैर दिल्ली में मजबूती के साथ रखना होगा। उसका फायदा भाजपा को गुजरात में हो सकता है। ऐसा गणित दिल्ली महानगरपालिका के चुनाव के दरमियान हो सकता है। 

मोरबी पुल हादसे को लेकर भी साधा निशाना
शिवसेना ने अपने संपादकीय में लिखा कि सही मायनों में गुजरात विधानसभा चुनाव का रणसंग्राम प्रत्यक्ष रूप से पिछले दो महीने से जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह दोनों अदल-बदलकर हर सप्ताह किसी-न-किसी कार्यक्रम के उपलक्ष्य में गुजरात के दौरे कर रहे थे। आचार संहिता लागू होने से पहले विकास परियोजनाओं के उद्घाटन, भूमि-पूजन आदि कार्यक्रमों की गुजरात में बड़े पैमाने पर लहर आई हुई थी। हालांकि मोरबी पुल दुर्घटना की वजह से तथाकथित गुजरात मॉडल का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के लगातार दौरे का आयोजन कर भाजपा द्वारा पकाई गई खिचड़ी एक पल में जल गई। गत दिनों पश्चिम बंगाल में हुई पुल दुर्घटना को लेकर भाजपा और मोदी ने वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार के खिलाफ कहर बरपा दिया था लेकिन नियति का न्याय देखिए जिस तरह गड्ढा भाजपा ने विपक्ष के लिए खोदा था, उसी गड्ढे में भाजपा आज खुद गिर गई। 25 दिन के चुनावी प्रचार की हर प्रचार सभा में भाजपा से मोरबी के मृत्यु तांडव के बारे में सवाल पूछा जाएगा। 

गुजरात को बताया सबसे बड़ी प्रयोगशाला
सामना के लेख में आगे लिखा कि वैसे तो गुजरात राज्य छोटा है, फिर भी भाजपा के लिए वह सबसे बड़ी प्रयोगशाला है। लिहाजा, गुजरात के चुनाव का अन्य किसी भी राज्य की तुलना में असाधारण महत्व है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का यह राज्य है। हालांकि पिछले 27 सालों से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की एकछत्र सत्ता है। इसलिए गुजरात के चुनाव को वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल या रिहर्सल के तौर पर नहीं देखा जा सकता। क्योंकि गुजरात में विपक्ष के पास गंवाने जैसा कुछ भी नहीं बचा है और भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव के कारण कमाने जैसा भी शेष नहीं है। इसे भी सवाल ही कहना होगा। दरअसल, वर्ष 2017 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। कुल 182 में से 99 सीटें भाजपा जीती तो 77 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी हुए। आंकड़ों पर गौर करें तो 22 सीटों का मामूली अंतर था। इसका मतलब इतना ही है कि उन दिनों कांग्रेस को गुजरात में बहुत बड़ा अवसर मिला था।

"प्रधानमंत्री की जान गुजरात में फंसी"
शिवसेना (उद्धव गुट) ने इस लेख में आगे लिखा कि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने गोवा की तरह गुजरात विधानसभा का चुनाव भी लड़ने का निर्णय लिया है। इसलिए द्विपक्षीय हुआ चुनाव अब त्रिकोणीय होने वाला है। त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा विरोधी वोटों में बिखराव होता है और उसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को ही मिलता है। ये गोवा सहित कई राज्यों और लोकसभा चुनाव में बार-बार साबित हो चुका है। फिर भी गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबले के ही पत्ते पीसे गए। मोदी-शाह के राज्य के तौर पर गुजरात विधानसभा के चुनाव की ओर स्वाभाविक है सारे देश का ध्यान केंद्रित है। कहानी में राजा के प्राण जिस तरह पिंजरे के तोते में होता है, उसी तरह प्रधानमंत्री की जान गुजरात में फंसी है। गुजरात यानी मोदी-शाह की होम पिच। लेकिन यह राज्य हाथ से निकल गया तो दिल्ली का सिंहासन भी डगमगाने लगेगा। इसीलिए गुजरात के ‘तोते’ को जिताने के लिए भारतीय जनता पार्टी मशक्कत कर रही है। 

"तोता जिंदा रहना चाहिए"
सामना में आगे लिखा, "गुजरात के गदर में दिल्ली महानगरपालिका चुनाव की भी धूल इसीलिए उड़ाई गई है। महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के उद्योग, परियोजना, विकास की योजनाएं सब कुछ गुजरात में भगाकर ले जाने के पीछे एक ही रहस्य है। तोता जिंदा रहना चाहिए। यह तोता भाजपा की ही नजर कैद में रहेगा या गुजरात की जनता पिंजरे का दरवाजा खोलकर तोते की रिहाई करेगी, ये 8 दिसंबर को ही स्पष्ट होगा!"

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