Highlights
- चुनाव पूर्व गठबंधन को लेकर शिवसेना-कांग्रेस के नेताओं की हुई बैठक
- महाराष्ट्र के बाद अब गोवा में भी साथ आ सकती है कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी
पणजी: गोवा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को टक्कर देने और सत्ता से हटाने के लिए अब महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी की तरह ही गठबंधन करने पर रणनीति शुरू हो गई है। शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत ने गोवा में आज गोवा कांग्रेस प्रभारी दिनेश गुंडू राव, कांग्रेस नेता दिगम्बर कामत, गोवा कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर के साथ बैठक की। इस बैठक की जानकारी खुद संजय राउत ने ट्वीट करके दी। बता दें कि पहली बार कांग्रेस ने महाराष्ट्र में चुनाव बाद गठबंधन किया था।
शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्वीट कर लिखा है, ''गोवा में आज आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस के प्रमुख नेताओं से चर्चा हुई। दिनेश गुंडू राव, दिगंबर कामत और गिरीश चोडनकर के साथ-साथ मेरे सहयोगी जीवन कामत जितेश कामत भी मौजूद थे। गोवा में महाराष्ट्र की तरह एमवीए जैसे गठबंधन की संभावना पर विस्तार से चर्चा हुई।''
इस बैठक को लेकर गोवा कांग्रेस के अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने हमारे चैनल इंडिया टीवी से बातचीत में बताया कि गठबंधन को लेकर चर्चा सकारात्मक रही और आगे दूसरे दौर की चर्चा होगी। जो पार्टियां बीजेपी को हराने के लिए गंभीर है उन्हीं को गठबंधन में शामिल किया जाएगा।
आपको बता दें कि गोवा कांग्रेस नेताओ ने अपरोक्ष रूप से संकेत दिए कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस गठबंधन का हिस्सा नही होंगे। जिस तरह से टीएमसी ने कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर गोवा में कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश की उससे कांग्रेस नेता नाराज है। कांग्रेस का कहना है कि जो पार्टियां बीजेपी को हराने में सक्षम नहीं हैं ऐसे दल चुनाव लड़कर बीजेपी को मदद करेंगे। गोवा की जनता ने पिछले चुनाव में कांग्रेस को विधानसभा की 40 में से 17 सीटों पर जिताया था। इस बार भी गोवा की जनता कांग्रेस को जिताएगी।
अगर ये गठबंधन बना तो इसमें शरद पवार की एनसीपी, शिवसेना, गोवा फ़ॉरवर्ड आदि पार्टियां कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव मैदान में बीजेपी के खिलाफ उतरेगी। संजय राउत कहते रहे हैं कि भले शिवसेना यूपीए का हिस्सा नहीं है लेकिन महाराष्ट्र की महाविकास आघाडी मिनी यूपीए ही है। ऐसे में अगर गोवा में भी मिनी यूपीए बनाकर बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा गया तो टीएमसी फिर अलग थलग पड़ जाएगी जिसका असर इन क्षत्रिय दलों के आपसी राजनीतिक संबंधों पर भी दिखाई दे सकता है।