Highlights
- बार-बार असफल हो रहे हैं राहुल गांधी
- प्रियंका गांधी पहली परीक्षा में ही फेल
नयी दिल्ली: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों ने एक बार फिर कांग्रेस के रणनीतिकारों के माथे पर बल ला दिया है। जहां चार राज्यों में बीजेपी ने पार्टी को धूल चटा दी वहीं पंजाब में आम आदमी पार्टी की सुनामी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया । कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता आम आदमी पार्टी के अनजान चेहरों के सामने चुनावी समर में ढेर हो गए। पंजाब की सत्ता से उखड़ चुकी और यूपी जैसे बड़े राज्य की जनता के दिल से निकल चुकी कांग्रेस के नेता अब सिर खुजाने में व्यस्त हैं। हालांकि कल पार्टी की ओर से यह बयान आया है कि जल्द ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई जाएगी जिसमें हार के कारणों पर आत्ममंथन किया जाएगा। कांग्रेस की लगातार हार से लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर उठने लगे हैं। क्या राहुल गांधी को राजनीति छोड़कर अपने नानी घर इटली चले जाना चाहिए? क्या प्रियंका गांधी को राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए? कांग्रेस को अपने पुराने और अनुभवी नेताओं आगे लाना चाहिए?
राहुल बार-बार असफल, प्रियंका पहली परीक्षा में ही फेल
कांग्रेस की लगातार हार से लोगों के मन में इस तरह के सवाल का उठना लाजिमी है। क्योंकि अब पार्टी के बड़े फैसलों में राहुल और प्रियंका की भूमिका अहम होती है। लेकिन राहुल बार-बार असफल हो रहे हैं जबकि प्रियंका को अपनी पहली परीक्षा में ही फेल होना पड़ा है। इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की पूरी बागडोर प्रियंका ने संभाल रखी थी। महिला सशक्तिकरण को हथियार बनाकर चुनाव लड़ने का फैसला उन्हीं का था। 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' का नारा उन्होंने दिया और महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकट भी दिया। प्रियंका ने अकेले 42 रोड शो किए और कुल 167 रैलियां और जनसभाएं की लेकिन चुनाव के नतीजों ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से महज दो सीटों से संतोष करना पड़ा। यहां प्रियंका पूरी तरह से फ्लॉप रहीं। इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सात सीटें मिली थी। हालांकि यह चुनाव कांग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था।
राहुल का यह प्रयोग बहुत भारी पड़ा
उधर, पंजाब में जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी, वहां चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलने का फैसला राहुल गांधी का था। माना जाता है कि राहुल और उनके सिपहसलारों ने दिल्ली में बैठककर पंजाब के नेतृत्व परिवर्तन की पूरी पटकथा लिखी और कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर उनकी जगह चरणजीत सिंह चन्नी को ठीक चुनाव से पहले पंजाब का सीएम बनाया। लेकिन राहुल का यह प्रयोग बहुत भारी पड़ा। पंजाब में पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। कांग्रेस नेतृत्व पंजाब के मोर्चे पर बुरी तरह असफल रहा और चुनाव में पार्टी को जबरदस्त झटका लगा है। यहां कांग्रेस के केवल 18 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
गंभीर संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस
वहीं उत्तराखंड में जहां बीजेपी बार-बार मुख्यमंत्री को बदलने का प्रयोग कर रही थी, वहां कांग्रेस के सरकार बनाने की पूरी संभावना था, एंटी एन्कम्बैंसी का फायदा उठाना था, लेकिन पार्टी ने इस अवसर को भी गंवा दिया। गोवा और मणिपुर में भी कमोबेश यही हालात रहे। देश में लंबे समय तक सत्ता में रही पार्टी का यह राजनीतिक हश्र वाकई पार्टी से जुड़े लोगों के लिए बेहद गंभीर है। हालांकि कांग्रेस का एक खेमा लगातार इस विषय को लेकर पार्टी के अंदर सवाल उठा रहा है जो ग्रुप 23 के नाम से जाना जाता है। लेकिन इन नेताओं की मुहिम का भी अभी तक कुछ खास असर नहीं हो पाया है। अगर समय रहते कुछ ठोस कदम उठा लिए जाएं तो पार्टी के बिखरते जनाधार को समेट कर एक नयी ऊर्जा पैदा की जा सकती है।