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यूपी चुनाव में हाशिए पर बसपा, क्या यह है उत्तर भारत में दलित राजनीति का अंत?

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कई तरह के विमर्शों, सवालों और मुद्दों के बीच एक अहम सवाल बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी उठ रहा है। बीते तीन दशकों में यह पहली बार है कि जब उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में बसपा को एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में नहीं देखा जा रहा है। 

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: March 11, 2022 14:53 IST
Mayawati, BSP- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Mayawati, BSP

UP Election Result 2022: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कई तरह के विमर्शों, सवालों और मुद्दों के बीच एक अहम सवाल बहुजन समाज पार्टी को लेकर भी उठ रहा है। बीते तीन दशकों में यह पहली बार है कि जब उत्तर प्रदेश की राजनीति के केंद्र में बसपा को एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में नहीं देखा जा रहा है। इस चुनाव में मात्र एक सीट पाने वाली बसपा के वजूद को लेकर सवाल उठने लगे हैं। क्या उत्तर भारत में अब दलित राजनीति बीते दौर की बात हो चली है? क्या उत्तर भारत की सियासत में दलित कार्ड पुराना हो चुका है, क्या सुशासन, अपराधों से सुरक्षा, कानून व्यवस्था और जनहितकारी योजनाओं के फायदे दलित कार्ड पर भारी पड़ने लगे हैं। इन्हीं सवालों के जवाब खोजने के साथ ही हम जानेंगे यूपी में क्या है दलितों का जातिगत समीकरण?

उत्तर प्रदेश चुनाव की बात करें तो दलितों की राजनीति करने में बसपा को भी कोई फायदा नहीं नजर आ रहा था। यही कारण रहा कि 2022 के यूपी चुनाव के पहले ही बसपा ने दरकते दलित वोट बैंक के कारण ब्राह्मण कार्ड खेला। ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने का दांव चल दिया। ब्राह्मणों को फिर साथ लाने के लिए बीएसपी ने पूरा जोर लगा दिया। लेकिन दलित राजनीति के शो का पर्दा गिरने के साथ ही, ब्राह्मण कार्ड भी बसपा के कोई काम नहीं आया। 

राजनीतिक मामलों के जानकार हेमंत पाल ने इंडिया टीवी को बताया कि जिस मकसद को लेकर काशीराम ने बसपा की शुरुआत की थी, जो सपने दिखाए थे, उनके  सपनों को पूरा करने में मायावती नाकामयाब रहीं। पार्टी का मकसद था—दबे कुचले लोगों या कहें दलितों को सहायता करना। लेकिन मायावती यह कर पाने में असफल रही। लिहाजा, दलित वोट बैंक खिसक गया। और आसानी से गुजर बसर कराने वाली सरकारी योजनाओं का पूरा फायदा दूसरी पार्टियों की सरकारों में मिलने लगा। ऐसे में  दलित राजनीति की प्रासंगिकता भी वैसी नहीं रही।

जानिए क्या है यूपी में दलितों का जातिगत समीकरण?

राजनीतिक पंडितों की मानें तो यूपी में दलितों की आबादी करीब 22 प्रतिशत है। यह दो हिस्सों में है- एक, जाटव जिनकी आबादी करीब 14 फीसदी है और मायावती की बिरादरी है। जानिए पिछले तीन चुनावों में अनुसूचित जाति की सीटों पर वभिन्नि दलों की क्या स्थिति रही?

विधानसभा चुनाव 2007

कुल आरक्षित सीटें : 89

बसपा : 61
सपा : 13
बीजेपी : 07
कांग्रेस : 05
रालोद : 01
आरएसपी : 01
निर्दलीय : 01

विधानसभा चुनाव 2012

कुल आरक्षित सीटें : 85
सपा : 59
बसपा : 14
कांग्रेस : 04
बीजेपी : 03
रालोद : 03
निर्दलीय : 01

विधानसभा चुनाव 2017

कुल आरक्षित सीटें : 84
बीजेपी : 71
अपना दल (एस) : 01
एसबीएसपी : 03
सपा : 06
बसपा : 01
निर्दलीय : 01

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