Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश के चुनाव में बीजेपी को करारी हार मिली है। देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने प्रदेश में रिवाज नहीं... राज बदल दिया है। दरअसल, हिमाचल प्रदेश का रिवाज रहा है कि वहां हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन होता है। यहां कांग्रेस पार्टी को कुल 40 सीटे मिलीं, वहीं बीजेपी सिर्फ 25 सीटों पर ही सिमट गई। हालांकि, बीजेपी ने जिस हिसाब से चुनाव मे प्रचार करने के लिए अपनी पूरी तकत झोंक दी थी, उससे लग रहा था कि शायद इस बार बीजेपी इतिहास बनाएगी। लेकिन, इतिहास बनाने की जगह बीजेपी राज्य में खुद इतिहास बन गई। अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसी क्या बड़ी वजहें रहीं जिसकी वजह से देश की सबसे बड़ी पार्टी को, उस पार्टी से करारी मात खानी पड़ी जो पूरे देश में विलुप्ती के कगार पर पहुंच गई है।
बागियों की वजह से छिनी सत्ता
भारतीय जनता पार्टी अपने काडर के लिए जानी जाती है। कहा जाता है कि इस पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जितना अनुशासन देखने को मिलता है, उतना शायद किसी पार्टी के नेताओं में नहीं दिखता। हालांकि, इस बार हिमाचल चुनाव में बीजेपी यहां मात खा गई। उसकी सत्ता उसके ही बागियों की वजह से चली गई। विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के सामने सबसे ज्यादा 21 बागी खड़े हो गए। इनमें से कुछ ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और कुछ कांग्रेस और आप में चले गए। सबसे बड़ी बात की इनमें से कई बागियों ने बीजेपी कैंडिडेट के विरोध में खड़े हो कर जीत भी दर्ज की है।
कांग्रेस के मीठे वादे
कांग्रेस पार्टी ने इस बार हिमाचल चुनाव में जनता से वादा करने में कोई कंजूसी नहीं की। भर-भर कर वादे किए। पुरानी पेंशन योजना की बात हो या फिर 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने की बात। काग्रेस के हर मीठे वादे ने जनता को उसकी ओर आकर्षित किया। इसके साथ ही कांग्रेस ने वहां कि जनता से वादा किया कि वह राज्य के स्कूलों की बेहतर स्थिति और राज्य में टूरिज्म को और बढ़ाकर रोजगार के नए अवसर प्रदान करने के लिए भी काम करेगी।
जमीनी मुद्दों को दरकिनार किया
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार के मंत्री हों या उनकी पार्टी के विधायक और नेता, इन सब ने पांच साल सिर्फ जनता के बीच हवाई किले बनाए। जनता के बीच इन्होंने काम नहीं किया और ना ही उनकी बात सुनने के लिए क्षेत्र में मौजूद रहे। पानी की समस्या हो या फिर सड़कों से लेकर साफ-सफाई और भ्रष्टाचार की समस्या, बीजेपी के विधायक इन समस्याओं को सुनने की बजाय अपने क्षेत्र और जनता के बीच से गायब रहे। इसके बावजूद पार्टी आलाकमान ने जब उन लोगों को ही फिर से टिकट दिया तो जनता नाराज हो गई और इसका खामियाजा पार्टी को हार से भुगतना पड़ा।
महंगाई का मुद्दा रहा हावी
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने अपनी पूरा ताकत झोंक दी थी, लेकिन इन सब पर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा भारी रहा। जनता ने इसको लेकर कई बार अपनी नाराजगी भी जाहिर की, यहां तक की चुनावी रैलियों के दौरान अनुराग ठाकुर और जेपी नड्डा के विरोध में भी कई जगह नारेबाजी हुई थी। दरअसल, हिमाचल प्रदेश का एक बड़ा तबका टूरिज्म के जरिए अपना जीवन चलाता है, लेकिन कोरोना की वजह से जब इनके रोजगार पर मार पड़ी तो इन्हें राज्य सरकार से वो मदद और भरोसा नहीं मिला जो मिलना चाहिए।
ओल्ड पेंशन स्कीम की पड़ी मार
हिमाचल प्रदेश में में करीब 4.5 लाख सरकारी कर्मचारी हैं और रिटायर्ड कर्मचारियों की संख्या भी काफी बड़ी है। यह लोग लगातार ओल्ड पेंशन स्कीम की मांग करते रहे हैं। बीजेपी ने इस पर कोई स्टैंड नहीं लिया और कांग्रेस ने साफ कहा कि वह पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करेगी। इस मुद्दे ने सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारवालों को कांग्रेस की तरफ आकर्षित किया।