Friday, December 20, 2024
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राज्यसभा चुनाव: CM येदियुरप्पा पर कैसे भारी पड़े भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष?

राज्यसभा के टिकट वितरण में बीएस येदियुरप्पा की पसंद दरकिनार किए जाने के बाद बीजेपी के अंदरखाने कई तरह की चचार्एं छिड़ गईं हैं। कहा जा रहा है कि कर्नाटक के मामले में पार्टी नेतृत्व येदियुरप्पा की जगह बीएल संतोष पर ज्यादा भरोसा कर रहा है।

Reported by: IANS
Updated : June 10, 2020 22:26 IST
BL Santosh and CM Yediyurappa
Image Source : FILE PHOTO BL Santosh and CM Yediyurappa

नई दिल्ली: भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय से 8 जून को जब कर्नाटक के दो राज्यसभा सीटों के उम्मीदवारों की सूची जारी हुई तो उसमें अपना नाम देखकर खुद इरन्ना कडाडी और अशोक गस्ती चौंक पड़े। वजह कि इन दोनों जमीनी नेताओं का नाम उस सूची में था ही नहीं, जो मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और भाजपा की प्रदेश इकाई ने पार्टी मुख्यालय को भेजी थी। बीएस येदियुरप्पा ने मौजूदा राज्यसभा सदस्य प्रभाकर कोरे, पूर्व सांसद रमेश कत्ती और कारोबारी प्रकाश शेट्टी का नाम प्रस्तावित किया था। लेकिन पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने तीनों नाम खारिज करते हुए संघ पृष्ठिभूमि के दोनों जमीनी नेताओं के नाम पर मुहर लगा दी। पार्टी सूत्र बताते हैं कि कभी आरएसएस प्रचारक का दायित्व निभाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महासचिव बने बीएल संतोष के सुझाव पर ही पार्टी हाईकमान ने मुख्यमंत्री येदियुरप्पा की पसंद के नामों की जगह अशोक गस्ती और इरन्ना कडाडी को टिकट देना ज्यादा उचित समझा। बीएल संतोष के तर्कों से राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह के सहमत होने के बाद अशोक गस्ती और इरन्ना कडाडी को टिकट मिल सका।

राज्यसभा के टिकट वितरण में बीएस येदियुरप्पा की पसंद दरकिनार किए जाने के बाद बीजेपी के अंदरखाने कई तरह की चचार्एं छिड़ गईं हैं। कहा जा रहा है कि कर्नाटक के मामले में पार्टी नेतृत्व येदियुरप्पा की जगह बीएल संतोष पर ज्यादा भरोसा कर रहा है। वजह कि येदियुरप्पा 77 साल के हो चुके हैं और अब पार्टी उनमें ज्यादा संभावनाएं देखने की जगह सेकंड लाइन को आगे बढ़ाने में जुटी है। कर्नाटक से नाता रखने के कारण राष्ट्रीय संगठन महासचिव बीएल संतोष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के लिए आंख-कान बने हैं। बीएल संतोष की छवि शीर्ष नेतृत्व की नजर में ऐसे नेता की है, जो कारोबारी और जुगाड़ू नेताओं की जगह जमीनी नेताओं का नाम आगे बढ़ाने में यकीन रखते हैं।

पार्टी सूत्रों ने बताया कि लोकसभा चुनाव के दौरान तेजस्वी सूर्या को टिकट देने के मसले के बाद यह दूसरा मौका है, जब बीएल संतोष, येदियुरप्पा पर प्रभावी साबित हुए हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "यह सही है कि कर्नाटक में काम करने के दौरान ही बीएल संतोष और बीएस येदियुरप्पा के बीच रिश्ते सामान्य नहीं रहे हैं। लेकिन राज्यसभा उम्मीदवारों के नाम को लेकर उनके बीच कोई प्रतिद्वंदिता नहीं रही। बीएस येदियुरप्पा ने जो नाम प्रस्तावित किया, उससे कहीं उपयुक्त नाम राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने सुझाए तो पार्टी नेतृत्व ने उस पर मुहर लगा दी। ऐसे में इसमें कोई थ्योरी नहीं ढूंढनी चाहिए।"

कर्नाटक से राज्यसभा टिकट पाने वाले दोनों नेता हम उम्र हैं और उन्होंने करीब एक ही समय से राजनीति शुरू की। 55 साल के एरन्ना कडाडी कर्नाटक के बेलगावी से हैं। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी 1989 से शुरू की। एबीवीपी और संघ में काम करते हुए वह भाजपा में पहुंचे। गोकाक और बेलागवी ग्रामीण यूनिट के अध्यक्ष भी रहे। 1994 में पार्टी ने उन्हें आरंभवी विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा था मगर हार गए थे। दूसरे उम्मीदवार अशोक गस्ती भी 55 वर्ष के हैं। कर्नाटक के रायचूर के निवासी अशोक गस्ती ने भी करियर एबीवीपी से शुरू किया। फिर वह भाजपा की मुख्यधारा की राजनीति में आए। कर्नाटक में भाजपा के बैकवर्ड क्लास कमेटी की जिम्मेदारी देख चुके हैं। दोनों नेताओं की संघ पृष्ठिभूमि उनकी दावेदारी मजबूत करने में मददगार साबित हुई।

क्यों येदियुरप्पा के नाम हुए दरिकनार?

पार्टी सूत्रों ने बताया कि शीर्ष नेतृत्व ने इस बार ऐसे नेताओं को राज्यसभा का टिकट देने की तैयारी की, जो पार्टी के लिए लंबे समय से समर्पित भाव से काम करने वाले हों मगर उन्हें कभी बड़े पद पर न जाने का मौका मिला हो। चूंकि येदियुरप्पा की सूची में शामिल प्रभाकर कोरे को जहां पार्टी राज्यसभा जाने का मौका दे चुकी थी, वहीं रमेश कत्ती के बारे में पार्टी नेतृत्व को कई शिकायतें मिलतीं रहीं। उनके बागी रुख अख्तियार करने का मामला भी ऊपर तक पहुंच चुका था। उनकी महत्वकांक्षा को पार्टी नेतृत्व पसंद नहीं कर रहा था। पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में रमेश कत्ती चिकोडी सीट से टिकट चाहते थे मगर पार्टी ने अन्नासाहेब को चुनाव मैदान में उतारा था। फिर वह लाख कोशिशों के बावजूद येदियुरप्पा की कैबिनेट में शामिल नहीं हो पाए और अब राज्यसभा जाने की कोशिश में लगे थे लेकिन फिर पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया। रमेश कत्ती के एक भाई विधायक हैं। ऐसे में पार्टी ने एक ही परिवार से दो-दो लोगों को बड़े मौके देने की जगह किसी और चेहरे पर दांव खेलने ज्यादा उचित समझा।

सूत्रों का कहना है कि बीएल संतोष ने पार्टी नेतृत्व को बताया कि जमीनी नेताओं को मौका दिए जाने से पार्टी के काडर में सकारात्मक संदेश जाएगा। उन्हें लगेगा कि उनकी समर्पित सेवाओं को पार्टी याद रखती है। एक व्यक्ति या एक ही परिवार को अधिक मौके देने की जगह ऐसे लोगों को मौके दिए जाएं, जिन्हें पार्टी के लिए अधिक मेहनत के बाद भी आगे बढ़ने के ज्यादा मौके न मिले हों। बीएल संतोष ने सोशल इंजीनियरिंग भी साधने की कोशिश की है। अशोक गस्ती जहां पिछड़ा समुदाय से आते हैं, वहीं इरन्ना कडडी लिंगायत समुदाय के हैं।

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