लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है, सियासी सरगर्मियां तेज होती जा रही है। छोटे दलों का आपस में समझौता बढ़ रहा है। वहीं प्रमुख विपक्षी दल सपा और बसपा ओवैसी की पार्टी अल इंडिया मजलिस-ए-इत्ताहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) से दूरी बनाने में लगे हैं।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो असदुद्दीन ओवैसी यूपी में चुनावी मैदान में उतरकर मुस्लिम मतों को अपने पाले में लाकर सेक्युलर दलों का सियासी खेल खराब कर सकते हैं। ऐसे में अगर उन्हें मुस्लिम वोट नहीं भी मिलते तो वो अपनी तकरीर और राजनीतिक माहौल के जरिए ऐसा धुव्रीकरण करते हैं कि हिंदू वोट एकजुट होने लगता है। ऐसे में विपक्षी दल अगर ओवैसी को साथ लेते हैं तो उनके सामने अपने वोटरों को दूसरे पाले में जाने का खतरा है। जो अपने को सेक्युलर दल के रूप में प्रस्तुत करते हैं उनके सामने मुस्लिम परस्ती और कट्टरता जैसा आरोप भी लग सकता है। यही कारण ओवैसी के साथ यूपी के मुख्य विपक्षी दल आने का मन नहीं बना पा रहे हैं।
ओवैसी के साथ बिहार चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। अटकलें लगाई जा रही थी। मायावती यूपी में भी ओवैसी की पार्टी के साथ गठबंधन करेंगी। बसपा की मुखिया मायावती ने कहा कि यूपी में हमारी पार्टी का असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से कोई गठबंधन नहीं हो रहा है। उन्होंने किसी भी तरह की खबर को खारिज किया है। मायावती ने कहा है कि यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव बहुजन समाज पार्टी अकेले ही लड़ेगी।
बसपा के एक बड़े नेता कहते हैं, "विधानसभा चुनाव को देखते हुए बसपा कई विषयों पर काम कर रही है। दलित मुस्लिम गठजोड़ की कवायद चल रही है। ऐसे में हम अगर अपने पाले में आवैसी साहब को लेते हैं। तो ध्रवीकरण होगा, वोट डिवाइड होगा। जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है। ऐसे इन्हें यहां लेना ठीक नहीं समझा जा रहा है। हलांकि बहनजी ने पहले ही ऐलान कर चुकी हैं कि यूपी हम लोग अकेले चुनाव लड़ेगे।"
सपा प्रवक्ता डा़ आशुतोष वर्मा पटेल ने कहा, "ओवैसी की पोल अब जनता के सामने खुल चुकी है। जब भाजपा की केन्द्र और राज्य में नहीं थी। तब उनके बारे में बड़ी-बड़ी बातें करती थी, उनके जेल भेजने तक की बात कही थी। आज ओवैसी के पास हजारों करोड़ की सम्पत्ति है वह कहां से आयी। इस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। जहां भाजपा नहीं जीत पाती है। वहां ओवैसी के साथ दोस्ताना मैच खेलने लगती है। ओवैसी ने बिहार में सेकुलर मोर्चा को खराब कर दिया। अपने पांच विधायकों को जीता लिया और 26 जगह मोर्चा का नुकसान किया। बंगाल में यह बात नहीं चल पायी। ममता ने इन्हें जीरो कर दिया है। ओवैसी को मुस्लिम नेता धर्मगुरू नकार रहे हैं। जिसके साथ जाएंगे उसे ले डूबेंगे। ओवैसी और भाजपा एक सिक्के के दो पहलू हैं।"
एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली कहते हैं, "यहां के मुख्य विपक्षी दलों की राजनीति हमारे वोट बैंक पर पूरी टिकी है। यह नहीं चाहेंगे कि हमारी जमीन खिसक जाए। हमारे वोट की बड़ी अहमियत है। मायावती ने गठबंधन के लिए क्यों मना किया यह तो वह जाने। हम 100 सीटों पर भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगे।"
वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, "ओवैसी अपने कट्टर बयानों के कारण ध्रुवीकरण करने का प्रयास करते हैं। वह सेकुलर राजनीति का लबादा जरूर ओढ़ लेते हैं। लेकिन उनकी छवि इस संदर्भ में गंभीर नहीं है। धुव्रीकरण की खबरों से बचने के लिए इनके साथ कोई खड़ा नहीं होता है। जिस प्रदेश से यह आते वहां भी इनका सत्ताधारी दल से गठबंधन रहता है। वह भी लोग सिवाय हैदराबाद के इनसे कहीं गठबंधन नहीं करते हैं। इसी कारण बिहार में इनके साथ चुनाव लड़ने वाली बसपा ने यहां गठबंधन से साफ मना कर दिया है।"