कोलकाता: भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक ऐलान ने पश्चिम बंगाल की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया है। एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा कि यदि पश्चिम बंगाल में उनकी पार्टी की सरकार बनती है तो महिष्य और तिली जैसी जातियों को भी आरक्षण का लाभ दिया जाएगा। दरअसल, नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में महिष्य वोटरों की तादाद 53 प्रतिशत है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यहीं से चुनाव लड़ रही हैं। वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने ममता के पुराने करीबी और अब भगवा दल में शामिल हो चुके शुभेंदु अधिकारी पर दांव खेला है।
‘ममता जी ने माहिष्य को आरक्षण के अधिकार से वंचित रखा’
एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा, ‘अपने वोट बैंक की तुष्टिकरण की राजनीति में ममता जी ने हमारे हिंदू धर्म के अन्य पिछड़ा वर्ग की जातियों जैसे महिष्य, तिली आदि को आरक्षण के अधिकार से वंचित रखा। अब हमारी सरकार आएगी तो हम आयोग बैठाकर मंडल कमीशन में जो जातियां लिखी हैं उनको सम्मान देकर इन लोगों के लिए भी हम प्रयास करेंगे ताकि मुख्यधारा में इनको भी जोड़ा जाए।’ बंगाल में बीजेपी के सह-प्रभारी अमित मालवीय ने इस बारे में एक ट्वीट भी किया। आइए, आगे जानते हैं कैसे बंगाल की ओबीसी में मुस्लिम जातियों का दखल बढ़ता गया।
2010 में 53 ओबीसी में थीं 53 मुस्लिम जातियां
मंडल कमीशन द्वारा पश्चिम बंगाल के लिए चिन्हित की गईं 177 ओबीसी जातियों में से पश्चिम बंगाल की तत्कालीन ज्योति बसु सरकार ने कुल 64 जातियों को ओबीसी माना था जिनमें से 9 मुस्लिम जातियां थीं। इन जातियों को 1993 में 7 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। 2010 में लेफ्ट सरकार ने ओबीसी के तहत आरक्षण के लिए 'कैटिगरी ए' और 'कैटिगरी बी' नाम से 2 कैटिगरियां बनाई थीं। कैटिगरी ए को ज्यादा पिछड़ी जातियों का समूह बताते हुए उन्हें 10 प्रतिशत और कैटिगरी बी को पिछड़ी जातियों का समूह बताते हुए 7 प्रतिशत आरक्षण दिया गया था। इस दौरान ओबीसी में शामिल मुस्लिम समुदाय की जातियों की संख्या को 9 से बढ़ाकर 53 कर दिया गया था।
ममता सरकार में ओबीसी में बढ़ी मुस्लिम हिस्सेदारी
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस जब बंगाल की सत्ता में आई तो उसने भी यही नीति अपनाई। इसके नतीजे में आज कैटिगरी-ए में कुल 81 जातियां हैं जिनमें से 73 मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखती हैं जबकि कैटिगरी-बी में 96 जातियां हैं जिनमें से 44 मुस्लिम समुदाय की हैं। 1993 से 2020 आते-आते ओबीसी के तहत आरक्षण में आने वाली मुस्लिम जातियों की संख्या 9 से बढ़कर 117 हो गई जो कि राज्य की पूरी मुस्लिम जनसंख्या का 90 प्रतिशत है। वहीं, इनमें से भी 64 जातियों को पिछले 8 सालों में ममता सरकार ने जोड़ा है।
कई हिंदू जातियों को नहीं दिया आरक्षण का फायदा
ममता सरकार ने लगातार ये दावा भी किया है कि उसने राज्य के 99 प्रतिशत मुसलमानों को ओबीसी आरक्षण का फायदा दिया है। खास बात यह है कि मंडल कमीशन ने ओबीसी की जिन 177 जातियों की पहचान की थी, उनमें से सिर्फ 12 मुस्लिम जातियां थीं जबकि 150 के आसपास हिंदू ओबीसी थीं। आज की तारीख में उन 150 में से सिर्फ 67 हिंदू जातियों को ओबीसी आरक्षण का फायदा मिला है जबकि मुसलमानों की कुल 117 जातियों को इसका लाभ मिला है। इससे साफ है कि एक बड़ी संख्या में हिंदू ओबीसी जातियों को पश्चिम बंगाल में आरक्षण का फायदा नहीं दिया गया।