नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने हरियाणा को छोड़ महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में ज्यादा जोर लगा रही है। पार्टी के कई नेता महाराष्ट्र में प्रमुखता से डेरा डाले हुए हैं। दिल्ली से कई राष्ट्रीय नेताओं को चुनाव प्रबंधन के लिए महाराष्ट्र के मोर्चे पर लगाया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर हरियाणा की बजाय महाराष्ट्र पर इतना जोर क्यों लगाया जा रहा है। दरअसल, बीजेपी को लगता है कि हरियाणा में उसकी राह महाराष्ट्र के मुकाबले आसान है। महाराष्ट्र में बीजेपी की लड़ाई कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से तो है ही, अंदरखाने शिवसेना से भी है।
माना जा रहा है कि यदि शिवसेना पिछली बार से ज्यादा सीटें पाने में सफल रही तो वह सरकार में अपनी हिस्सेदारी को लेकर मोलभाव कर सकती है। यही वजह है कि बीजेपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत के आसपास पहुंचना चाहती है और इसके लिए वह पूरा जोर लगा रही है। पड़ोसी राज्य गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या लगातार महाराष्ट्र में डटे हुए हैं। केशव प्रसाद मौर्या महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के सह प्रभारी भी हैं। सक्रियता का आलम यह है कि महाराष्ट्र में बसे 40 लाख से ज्यादा हिंदी भाषी, उत्तर-भारतीयों का वोट पाने के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों के जिलास्तरीय नेताओं तक को यहां जनसंपर्क अभियान में लगाया गया है।
शीर्ष नेताओं की बात करें तो बीजेपी के 2 राष्ट्रीय महासचिवों, भूपेंद्र यादव और सरोज पांडेय, ने यहां एक महीने से भी अधिक समय से डेरा डाल रखा है। भूपेंद्र यादव महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव प्रभारी हैं तो सरोज पांडेय राज्य प्रभारी हैं। दोनों नेता राज्य के चुनाव प्रबंधन में इस कदर व्यस्त हैं कि इस दौरान वे दिल्ली आने के लिए भी समय नहीं निकाल पा रहे हैं। भूपेंद्र यादव को पार्टी अमूमन संकट वाले राज्यों में लगाती है ऐसे में महाराष्ट्र में उनकी तैनाती की अहमियत समझी जा सकती है। केंद्रीय मंत्रियों में वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी, पीयूष गोयल और स्मृति ईरानी भी महाराष्ट्र में अभियान को धार दे रहे हैं।
हरियाणा की बात करें तो यहां बतौर विधानसभा चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर इलेक्शन मैनेजमेंट देख रहे हैं। यहां पार्टी ने सिर्फ एक राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अनिल जैन को मोर्चे पर लगाया है। जैन ही राज्य के प्रभारी भी हैं। संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष भी बीच-बीच में हरियाणा पहुंचकर चुनाव जीतने का मंत्र नेताओं को दे रहे हैं। हरियाणा में मोदी-शाह और राजनाथ सिंह की ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं, मगर महाराष्ट्र की तरह यहां राष्ट्रीय नेताओं का जमावड़ा कम है।
हरियाणा की तुलना में महाराष्ट्र पर बीजेपी के खास फोकस के पीछे कई वजहें हैं। एक तो हरियाणा में सिर्फ 90 सीटें हैं, वहीं महाराष्ट्र में 288 विधानसभा सीटें हैं। दूसरी बात कि हरियाणा के बजाए महाराष्ट्र में ज्यादा चुनौतियां हैं। महाराष्ट्र में विपक्ष कुछ मजबूत है तो दूसरी तरफ सीट बंटवारे से लेकर अब तक उसकी गठबंधन सहयोगी शिवसेना से विभिन्न मसलों पर नूराकुश्ती चल रही है। 2014 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन टूटने पर सभी 288 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग लड़ने पर बीजेपी को 122 सीटें मिलीं थीं, वहीं शिवसेना को सिर्फ 63 हासिल हुईं थीं। जबकि कांग्रेस और एनसीपी को क्रमश: 42 और 41 सीटें मिलीं थीं।
पूर्ण बहुमत से 20 सीटें कम होने के कारण तब बीजेपी को शिवसेना के समर्थन से सरकार बनानी पड़ी थी। इस बार 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन के कारण सिर्फ 150 सीटों पर खुद लड़ रही है, वहीं 14 सीटों पर उसके ही सिंबल पर अन्य सहयोगी दल लड़ रहे हैं। जबकि शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। ऐसे में बीजेपी को लगता है कि इस बार कम सीटों पर चुनाव लड़ने के कारण अगर पिछली बार से कम सीटें आईं और शिवसेना की सीटें बढ़ीं तो बीजेपी के लिए मुश्किलें होंगी। पीएमसी बैंक घोटाले ने बीजेपी के लिए एक नई मुश्किल खड़ी कर दी है। किसानों की समस्या पहले से पार्टी को परेशान कर रही है और पार्टी की कोशिश इन सभी मुद्दों से पार पाने की है।