नई दिल्ली: अबकी बार पूरे देश की नज़रें मध्य प्रदेश के भोपाल पर टिक गई हैं जहां से बीजेपी की उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह के खिलाफ ताल ठोक दी है। बीजेपी ने जिस दिन प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल के मैदान-ए-जंग में उतारा उसी दिन से ये कहा जा रहा है कि 2019 के चुनाव में हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला भोपाल बनने वाला है क्योंकि मुकाबला भगवा ब्रिगेड की सबसे तीखी ज़ुबानों में शुमार साध्वी प्रज्ञा और कभी अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े पैरोकार रहे कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बीच है।
साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के शहीद हमेंत करकरे पर दिए बयान से सियासी भूचाल उठ खड़ा हुआ है। अब यहां के हालात ऐसे हैं कि कभी भगवा आतंकवाद पर मुखर होकर अपनी बात रखने वाले दिग्विजय जो साध्वी के सामने भोपाल के मैदान में खड़े हैं, वो साध्वी का नाम सुनते ही कुछ बोलना नहीं चाहते। दिग्विजय को पता है कि साध्वी को जवाब देने का मतलब एक साथ कई सवाल खड़े करना होगा।
वहीं तमाम आरोपों से इतर बीजेपी डंके की चोट पर उस साध्वी को पूरे मान-सम्मान के साथ मैदान में ले आई है जिसमें उसे 2019 की सियासत पलट देने का मद्दा दिख रहा है। दूसरी तरफ भोपाल दो फाड़ होता जा रहा है। मुस्लिम वोटर्स खुलकर कांग्रेस का पक्ष लेते दिख रहे हैं तो वहीं हिंदुओं में बीजेपी की साध्वी के लिए ध्रुवीकरण दिख रहा है। दरअसल, कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी सिरदर्दी यही है। यहां का समीकरण ऐसा है जिसने 30 साल से इस सीट को बीजेपी के लिए सबसे सुरक्षित बना रखा है।
भोपाल में कुल 21 लाख वोटर्स हैं। इसमें मुस्लिम वोटर्स 5 लाख हैं, ओबीसी वोटर्स 4 लाख 75 हजार, ब्राह्मण वोटर्स 4 लाख, राजपूत वोटर्स 1 लाख 50 हजार, SC वोटर्स 1 लाख 25 हजार और ST वोटर्स 1 लाख हैं। मतलब भोपाल में मुसलमान निर्णायक तो हैं लेकिन तब जब उनके साथ ओबीसी का वोट मिले लेकिन एमपी में बीजेपी के पास कई बड़े ओबीसी चेहरे हैं। खुद शिवराज सिंह चौहान हैं, उमा भारती हैं और भी कई दिग्गज हैं।
इसके अलावा जो सवर्ण वोटर्स 6 लाख हैं वो बीजेपी के पाले में चला जाता है लेकिन इस बार भोपाल खुलकर बंटता जा रहा है। भोपाल का ये मूड दोनों तरफ के लिए चुनौती है। कांग्रेस के लिए ये कि वो धर्मयुद्ध के नारे में ध्रुवीकरण को भोपाल में ही रोके तो बीजेपी के लिए चुनौती ये है कि वो इस ध्रुवीकरण को भोपाल से बाहर कैसे ले जाए? फिलहाल भोपाल में भगवा की जय होगी या फिर से दिग्विजय होंगे ये 12 मई को वोटिंग और 23 मई को नतीजे के बाद पता चलेगा।