वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के स्थानीय लोगों का मानना है कि जिले में पिछले पांच साल में कई बदलाव आए हैं। वे कहते हैं कि पहले की तुलना में घाटों की साफ-सफाई कहीं ज्यादा है, रात के वक्त रोशनी की व्यवस्था अच्छी हुई है, शहर को हवाई अड्डे से जोड़ने के लिए चार लेन की एक सड़क बन चुकी है और एक कैंसर अस्पताल बना है। हालांकि, कई स्थानीय लोग पिछले पांच साल में हुए कामों से संतुष्ट नहीं हैं। ऑटोरिक्शा चालक अजय कुमार नयी बाबतपुर रोड का बखान करते नहीं थकते। वह वाराणसी जंक्शन आने वाले लोगों से अक्सर कहते हैं कि बाबतपुर रोड जाकर ‘‘बदलाव को महसूस करें।’’
अजय ने कहा, ‘‘साल 2014 में यही सड़क बदतर स्थिति में थी और शहर में आने वाले पर्यटक परेशानी होने पर इसे अक्सर कोसते रहते थे। अब वे देख सकते हैं कि वहां अच्छे-अच्छे पेड़ लगा दिए गए हैं।’’ दशाश्वमेध घाट की तरफ जाने वाले प्रसिद्ध गोदौलिया चौक सहित शहर की प्रमुख सड़कों पर रोशनी के लिए ‘‘लैंप-पोस्ट’’ लगाए गए हैं।
गोदौलिया चौक के पास रहने वाले 52 वर्षीय कमल उपाध्याय ने कहा, ‘‘यदि आप वाराणसी में बदलाव देखना चाहते हैं तो जाकर घाटों को देखिए। आपका मन प्रसन्न हो जाएगा। प्रधानमंत्री ने घाटों और शहर की दीवारों को जीवंत बना दिया है। उन्हें एक और कार्यकाल मिलना चाहिए।’’ हालांकि, दशाश्वमेध घाट के पास की एक पुरानी इमारत में होटल चलाने वाले 32 वर्षीय अभय यादव इन ‘‘फैंसी लाइटों’’ से प्रभावित नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘रात में घाटों को जगमगाती रोशनी में देखना अच्छा लगता है। लेकिन गंगा का क्या हुआ? इस पवित्र नदी की साफ-सफाई पर बात नहीं होनी चाहिए? यदि गंगा साफ नहीं है तो इस जगमगाहट का कोई मतलब नहीं है। साफ कहूं तो मुझे इन पांच सालों में कोई बदलाव नजर नहीं आता। सौंदर्यीकरण के कुछ काम जरूर हुए हैं।’’
अभय एक प्रमाणित पर्यटक गाइड हैं और महत्वाकांक्षी काशी विश्वनाथ गलियारा परियोजना से हैरान हैं। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के लिए सैकड़ों पुराने मकानों, जिनमें कुछ तो सौ-सौ साल पुराने थे, को तोड़ दिया गया।
उन्होंने कहा, ‘‘वह हमारी धरोहर थी। हमें उसका संरक्षण करना चाहिए था। बनारस की आत्मा उसकी गलियों में बसती है, लेकिन विकास के नाम पर हमारी इतनी धरोहर पर बुलडोजर चलवा दिया गया। दूसरी ओर, मोदीजी काशी को क्योटो बनाने की बातें करते हैं और हमारी बेशकीमती धरोहर को तोड़ते हैं।’’
प्रधानमंत्री मोदी ने बीते आठ मार्च को काशी विश्वनाथ गलियारा की आधारशिला रखी थी। इसे इस क्षेत्र के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना माना जा रहा है। हालांकि, परियोजना स्थल के पास किताबों की एक दुकान चलाने वाले अमित सिंह इस परियोजना को लेकर खुश हैं। उन्होंने कहा, ‘‘कभी-कभी कुछ बड़ा हासिल करने के लिए छोटा-मोटा त्याग करना पड़ता है।’’
रविवार 19 मई को मतदान से पहले वाराणसी में लोग मोदी सरकार के पांच साल के कार्यकाल से जुड़े अन्य मुद्दों पर भी बंटे हुए हैं। पहली बार वोट देने की तैयारी कर रहे सूरज प्रजापति इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक कर रहे हैं और उनका कहना है, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के तौर पर मोदीजी के अच्छे कामों की तारीफ करता हूं, लेकिन उनके पकौड़ा वाले बयान ने इस देश के नौजवान के तौर पर मेरे मनोबल को वाकई पंक्चर कर दिया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘क्या सरकार को हमारे स्नातक हो जाने के बाद हमारे लिए नौकरियां सुनिश्चित नहीं करनी चाहिए या नौकरी नहीं मिलने पर हमें पकौड़े ही तलने होंगे?’’ सेवानिवृत सरकारी कर्मी राम चंद पटेल (68) ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा अहम मुद्दा है और मोदी सरकार ने इस पर काम किया है। उन्होंने दावा किया, ‘‘जहां तक नौकरियों का सवाल है, मेहनत करने वालों को तो नौकरी मिल ही जाएगी। सिर्फ आलसी लोग शिकायत करते हैं।’’ ऑटोरिक्शा चालक अशोक पांडेय 2016 में मोदी सरकार की ओर से की गई नोटबंदी पर बात नहीं करना चाहते।
उन्होंने कहा, ‘‘मोदीजी और उनकी पार्टी ने बड़े-बड़े वादे किए। उन्होंने काला धन लाने का वादा किया था, काला धन कहां हैं? नोटबंदी में मेरा नुकसान हुआ और मेरे परिवार को दर्द महसूस हुआ। मैं जानता हूं कि हम पर इसका कितना बुरा असर पड़ा।’’ तीन सितारा होटल के स्वामी कृष्ण मुरारी सिन्हा (52) ‘‘राष्ट्रवादी’’ और ‘‘देश विरोधी’’ की बहस से परेशान हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप सरकार की नीतियों से सहमत नहीं हैं तो इसके समर्थक आपको तुरंत देश विरोधी करार दे देंगे और यदि आप इसका समर्थन करते हैं तो आप देशभक्त हैं। ‘देशभक्ति’ और ‘देशद्रोही’ का दिया जा रहा प्रमाण-पत्र एक नागरिक के तौर पर मुझे परेशान करता है।’’ हालांकि, वाराणसी में हर जगह मोदी के प्रति दीवानगी भी नजर आ रही है। मोदी पर लिखी गई किताबों की भारी मांग है। भाजपा के विज्ञापन ऑटोरिक्शा पर बड़े पैमाने पर नजर आ रहे हैं, जिन पर नारे लिखे हैं - ‘मोदी है तो मुमकिन है’ और ‘आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब’।