नयी दिल्ली: लोकसभा चुनावों में देश में सबसे ज्यादा बिहार की जनता ने नोटा का बटन दबाकर अपने उम्मीदवारों को खारिज किया। बिहार के 8.17 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया। इसी तरह, राजस्थान में 3.27 लाख मतदाताओं ने नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प चुना।
राजस्थान में नोटा में डाले गए मत भाकपा, माकपा, और बसपा के उम्मीदवारों को मिले वोटों से ज्यादा रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में भी लगभग इतने ही यानी 327902 मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य के 3 लाख 27 हजार 559 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। यह राज्य की 25 लोकसभा सीटों में डाले गए कुल मतों के 1.01 प्रतिशत के बराबर है।
चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार, बिहार में 40 लोकसभा सीटों पर हुए कुल मतदान में दो फीसदी लोगों ने नोटा का चयन किया। दमन और दीव में 1.7 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 1.49 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 1.44 फीसदी मतदाताओं ने नोटा को चुना। पंजाब के 1.54 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। राज्य में कांग्रेस ने आम चुनाव में 13 लोकसभा सीटों में से आठ जीतकर शानदार जीत दर्ज की है।
निर्वाचन कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार, 1,54,423 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। यह कुल पड़े मतों का 1.12 प्रतिशत है। आंकड़ों के मुताबिक, 13 लोकसभा सीटों में से फरीदकोट सीट पर सबसे ज्यादा मतदाताओं ने उम्मीदवारों को खारिज किया। फरीदकोट में कुल 19,246 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, पंजाब में लगभग सभी सीटों पर नोटा पांचवें स्थान पर रहा।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम चुनावों में 45,000 से अधिक मतदाताओं ने नोटा विकल्प को चुना जो 2014 के आम चुनाव में इस श्रेणी में डाले गए मतों से 6,200 अधिक है। नोटा के तहत डाले गए वोट कुल वोटों का 0.53 फीसदी है। चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़े के अनुसार, उत्तरी पश्चिम (आरक्षित) सीट पर सबसे अधिक 10,210 नोटा वोट डाले गए। इस सीट पर सबसे कम उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे जबकि यहां सबसे अधिक मतदाता हैं।
हरियाणा में लोकसभा चुनाव में 41,000 से अधिक लोगों ने नोटा का विकल्प चुना, जहां भाजपा ने सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज की है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, हरियाणा में हुए कुल मतदान में से 0.68 प्रतिशत लोगों ने नोटा चुना। सबसे अधिक अंबाला में 7,943 और सबसे कम भिवानी-महेन्दरगढ़ में 2041 लोगों ने नोटा पर बटन दबाया।
हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की चारों सीटें यूं तो भाजपा की झोली में गईं हैं लेकिन दिलचस्प तथ्य है कि 33 हजार से अधिक मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। चुनाव अधिकारी ने बताया कि राज्य में कम से कम 33,008 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। इस लिहाज से राज्य में कुल पड़े 38,01,793 मतों का 0.87 प्रतिशत नोटा के हिस्से में गया है।
उन्होंने बताया कि कांगड़ा में 11,327 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया, वहीं शिमला में 8,357 मतदाताओं, हमीरपुर में 8,026 मतदाताओं तथा मंडी में 5,298 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। जम्मू-कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट पर लगभग आठ हजार मतदताओं ने नोटा का विकल्प चुना। इस सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के मोहम्मद अकबर लोन विजयी हुए हैं।
निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि उत्तर कश्मीर की बारामूला संसदीय सीट पर कुल 7999 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। इस सीट पर कुल मतदान के 1.79 फीसदी मत नोटा को मिले हैं। उन्होंने बताया कि चुनाव लड़ने वाले नौ में से चार उम्मीदवारों को नोटा से कम वोट मिले हैं।
जम्मू की उधमपुर सीट पर 7472 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना वहीं जम्मू संसदीय सीट पर 2545 मतदाताओं ने नोटा पर बटन दबाया। लोकसभा चुनाव 2019 में मध्य प्रदेश में 3,40,984 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। मध्य प्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय की वेवसाइट पर जारी चुनाव परिणाम के मुताबिक, राज्य में 3,40,984 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था, जो कुल मतदान का 0.92 प्रतिशत है।
साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में 3,91,837 मतदाताओं ने नोटा का उपयोग किया था, जो कुल मतदाताओं को 1.32 प्रतिशत था। मध्य प्रदेश में नोटा चौथे नंबर पर रहा। इससे अधिक प्रतिशत मत केवल तीन दलों भाजपा (58 प्रतिशत), कांग्रेस (34.50 प्रतिशत) एवं बसपा (2.38 प्रतिशत) को मिले। समाजवादी पार्टी एवं अन्य छोटे-छोटे दलों को नोटा से भी कम वोट प्रतिशत हासिल हुए। समाजवादी पार्टी को प्रदेश में कुल 82,662 मत मिले यानी 0.22 प्रतिशत, जो नोटा से 0.70 प्रतिशत कम है।
छत्तीसगढ़ में लगभग दो लाख मतदाताओं ने किसी भी पार्टी के उम्मीदवारों पर भरोसा न जताते हुए नोटा को वोट दिया है। राज्य में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बस्तर लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक मतदाताओं ने नोटा को वोट दिया है। छत्तीसगढ़ के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य में 1.96 लाख से अधिक मतदाताओं ने नोटा पर मतदान किया है।
अधिकारियों ने बताया कि राज्य के 1,36,22,725 मतदाताओं ने इस लोकसभा चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। इनमें से 1,96,265 मतदाताओं ने किसी भी प्रत्याशी को न चुनते हुए नोटा पर मत दिया है। महाराष्ट्र में 2014 के लोकसभा चुनावों की तुलना में 2019 में ज्यादा वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना। चुनाव आयोग के आंकड़ों से यह पता चला है।
राज्य में 4,86,902 वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना जबकि 2014 के चुनावों में 4,83,459 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया था। महाराष्ट्र में पालघर लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा 29,479 लोगों ने नोटा का बटन दबाया जबकि नक्सल प्रभावित गढ़चिरोली-चिमूर सीट पर 24,599 वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना।
असम में लोकसभा चुनावों में 1,78,353 वोटरों ने नोटा का बटन दबाया जो पिछले चुनावों में नोटा के आंकड़ों से 31,296 ज्यादा हैं। राज्य में 0.99 फीसदी लोगों ने नोटा का बटन दबाया। राज्य में डिब्रूगढ़ सीट पर सबसे ज्यादा वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश में एक साथ हुए लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में 13,000 से ज्यादा वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना। राज्य में करीब 13,283 वोटरों ने नोटा का विकल्प चुना।
भारत में उम्मीदवारों की सूची में नोटा को 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शामिल किया गया था। इससे मतदाताओं को एक ऐसा विकल्प मिला कि अगर वह अपने क्षेत्र के किसी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं तो वह अपना मतदान नोटा पर कर सकते हैं। 16वीं लोकसभा के चुनाव में 2014 में पहली बार संसदीय चुनाव में नोटा की शुरुआत हुई। इसमें करीब 60 लाख मतदाताओं ने नोटा के विकल्प को चुना। यह लोकसभा चुनाव में हुए कुल मतदान का 1.1 फीसदी था।