लखनऊ: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में सफलता ने कांग्रेस का हौसला बढ़ाया है। अब वह महागठबंधन के रणनीति को अपने नजरिए से देखने लगी है। इसका असर भी दिखने लगा है। उत्तर प्रदेश में प्रस्तावित महागठबंधन ने उसे तरजीह नहीं दी तो वह भी नए दांव को आजमाने का मन बना चुकी है। इसके तहत वह अपने को भारतीय जनता पार्टी (BJP) के मुख्य प्रतिद्वंदी के रूप में पेश करेगी। समाजवादी पार्टी (SP) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) द्वारा बनाए जा रहे गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न किए जाने पर कांग्रेस पार्टी ने काट ढूंढ ली है।
अगर गठबंधन ना हुआ तो यूपी में कांग्रेस दिग्गज चेहरों के आधार पर चुनाव लड़ेगी। तीन राज्यों में मिली सफलता के बाद कांग्रेस पार्टी को बल मिल गया है। ऐसे में वह अकेले दम पर उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी क्षेत्र में प्रभावी चेहरे पर दांव लगाकर उनकी दमखम को आंकना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन मजबूत ना होने के कारण भी ऐसी रणनीति बनाई जा रही है। अगर ऐसा होता है तो रायबरेली से सोनिया गांधी और अमेठी से राहुल गांधी के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी कई प्रमुख चेहरे मैदान में होंगे।
इसके अलावा प्रतापगढ़ क्षेत्र से रत्ना सिंह व इलाहाबाद से प्रमोद तिवारी को मैदान में उतारा जा सकता है। वहीं, लखीमपुर खीरी की धौहरारा सीट से जितिन प्रसाद, बाराबंकी से पी.एल. पुनिया, गोंडा से बेनी प्रसाद वर्मा, कुशीनगर से आर.पी.एन. सिंह, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर क्षेत्र से इमरान मसूद, फैजाबाद से निर्मल खत्री और कानपुर से प्रकाश जयसवाल पर पार्टी दांव लगा सकती है। हालांकि वहां पर अजय कपूर भी दावा ठोक सकते हैं, लेकिन प्रकाश वहां सबसे ज्यादा प्रभावी हैं। प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को आगरा या फिरोजाबाद उतारा जा सकता है।
वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा था। उस समय उसके मनरेगा और कर्जमाफी जैसे बड़े मुद्दे थे। तब भाजपा की हालत बहुत पतली थी। कांग्रेस 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर सकी। लेकिन वर्तमान में तस्वीर बदली है। अभी तक हालांकि सपा, बसपा द्वारा बन रहे गठबंधन में कांग्रेस को शामिल करने को लेकर दोंनो पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। कोई भी दल इस पर सफाई भी नहीं दे रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव वास्तव का कहना है कि 2014 के बाद कांग्रेस का ग्राफ काफी गिरा है। उसका संगठन उत्तर प्रदेश में बहुत कमजोर है। ऐसे में गठबंधन होता है तो उसके लिए मुफीद हो सकता है। इससे पहले भी कांग्रेस का संगठन मजबूत ना होने के कारण हमेशा खास चेहरे चुनाव में उतारती रही है। फरुखाबाद से सलमान खुर्शीद हो या फिर कुशीनगर से आर.पी.एन. सिंह व कानपुर से श्रीप्रकाश जयसवाल, इन लोगों का अपने-अपने क्षेत्र में प्रभाव भी है और ये अच्छे वोट भी बटोर सकते हैं।
उन्होंने बताया कि तीन राज्यों में मिली जीत कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो रही है। वहीं तीन राज्यों में कांग्रेस का बढ़ा प्रभाव सपा और बसपा को पंसद नहीं आएगा। इसलिए दोनों दल कांग्रेस के बगैर चुनाव लड़ने के इच्छुक हो सकते हैं। हालांकि अभी यह बातें दूर की कौड़ी है, क्योंकि अभी कोई बात वरिष्ठ नेताओं के मुंह से नहीं कहीं गई है। कांग्रेस वर्चस्व बचाने के लिए अकेले दम पर प्रभावी चेहरे उतारने की कवायद कर सकती है। कांग्रेस जानती है कि उसके पास उत्तर प्रदेश में खोने के लिए कुछ नहीं प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ है।
कांग्रेस के प्रवक्ता ओंकार सिंह ने कहा, ‘गठबंधन की इस समय बुनियादी जरूरत है। फिर भी कांग्रेस ने अपने 80 सीटों पर तैयारी कर रखी है। वैसे भी महागठबंधन को लेकर सपा और बसपा मुखिया का अभी तक कोई बयान नहीं आया है। जो गठबंधन का पक्षधर नहीं होगा, वह भाजपा को वाकओवर देना चाहता है।’ समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा, ‘अभी गठबंधन पर कोई बात नहीं हुई है। यह हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे, ऐसे में कयास लगाना ठीक नहीं है। जो भी निर्णय होगा, सबके सामने आएगा।’ वैसे, उत्तर प्रदेश के सभी दल अभी अपने हिसाब से संभावनाएं तलाश रहे हैं। तस्वीर साफ होने का इंतजार करना होगा।