लालगढ़ (पश्चिम बंगाल): कभी माओवादियों का गढ़ रहे लालगढ़ में तृणमूल कांग्रेस की मजबूत पकड़ को इस बार भाजपा से कड़ी चुनौती मिल रही है। तृणमूल कांग्रेस ने ‘परिवर्तन’ का वादा करके एक वक्त यहां से वामपंथी दलों को उखाड़ फेंका था। बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व वाली माकपा सरकार के खिलाफ 2008 में एकजुट हुए हजारों लोगों में शामिल स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें फिर से बदलाव आता दिख रहा है।
वैसे तो पूरे इलाके में तृकां के झंडे लगे हुए हैं, लोगों के मकानों, दुकानों और स्कूलों के साथ-साथ सुरक्षा चौकियां भी पार्टी के नीले रंग में रंगी हुई हैं लेकिल लालगढ़ में चाय की दुकानों, बाजारों और तमाम अन्य जगहों पर भाजपा द्वारा तृकां को मिल रही चुनौती पर चर्चा गर्म है। लालगढ़ में भाजपा की सेंध से तृकां प्रमुख नावाकिफ नहीं हैं। ममता बनर्जी ने 2019 लोकसभा चुनावों से पहले लोगों का विश्वास जीतने के लिए पार्टी के जमीनी नेतृत्व में आमूल-चूल परिर्वतन किया है।
तृकां की स्थानीय नेता ज्योति प्रसाद महतो का कहना है, ‘‘पिछले साल पंचायत चुनावों के बाद जिले (झारग्राम) में भाजपा को मिल रहे समर्थन से हम भी सकते में हैं। उसने क्षेत्र में कोई काम नहीं किया है जबकि हम 2011 से तृकां सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यों पर दांव लगा रहे हैं।’’ झारग्राम जिले में तृकां को 79 में से 28 ग्राम पंचायतों पर हार का सामना करना पड़ा था।
अपनी झोपड़ी के सामने बैठी बीड़ी बना रही सुषमा महतो कहती हैं, ‘‘केन्द्र सरकार की ओर से घोषित योजनाएं हम तक नहीं पहुंचती हैं और राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ सिर्फ तृकां के चापलूसों को मिलता है। हमें बदलाव की मांग क्यों नहीं करनी चाहिए, खास तौर से अब, जब हमारे पास विकल्प मौजूद है।’’
सुषमा की बातों से इत्तेफाक रखते हुए एक अन्य ग्रामीण ने कहा, ‘‘जब तृकां झारग्राम सीट से जीती थी तो हमारे हितों की रक्षा के लिए कोई विकल्प नहीं था। अब हमारे पास है। हम उन्हें यह नहीं जताना चाहते कि हमारे वोटों पर उनका हक है। उन्हें अपने वादे पूरे करने होंगे।’’
2014 में तृकां की उमा सोरेन ने झारग्राम से माकपा के पुलिन बिहारी बास्के को हरा कर वामपंथ को उखाड़ फेंका था। इस बार तृकां ने बिरभा सोरेन, माकपा ने देबलिना हेम्ब्राम और भाजपा ने कुनार हेम्ब्राम को टिकट दिया है।