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रास नहीं आयी क्रिकेटरों को राजनीति की पिच, क्या गौतम गंभीर बनेंगे अपवाद?

इमरान खान भले ही प्रधानमंत्री बन गये हों और नवजोत सिंह सिद्धू मंत्री पद पर आसीन हों लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर क्रिकेटरों को राजनीति की पिच रास नहीं आयी

Reported by: Bhasha
Published : May 01, 2019 14:26 IST
रास नहीं आयी क्रिकेटरों को राजनीति की पिच, क्या गौतम गंभीर बनेंगे अपवाद?
रास नहीं आयी क्रिकेटरों को राजनीति की पिच, क्या गौतम गंभीर बनेंगे अपवाद?

नयी दिल्ली: इमरान खान भले ही प्रधानमंत्री बन गये हों और नवजोत सिंह सिद्धू मंत्री पद पर आसीन हों लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतर क्रिकेटरों को राजनीति की पिच रास नहीं आयी जहां राजनीतिक ‘बाउंसर’ और ‘बीमर’ के सामने अक्सर उनकी ‘बल्लेबाजी’ नहीं चल पायी। पूर्व भारतीय सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर ‘क्रिकेटर से राजनीतिज्ञ’ बनने वाले खिलाड़ियों की सूची में जुड़ा सबसे नया नाम है। गंभीर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आजमा रहे हैं। उनके सलामी जोड़ीदार वीरेंद्र सहवाग के भी चुनाव लड़ने की अफवाह थी, लेकिन लगातार दूसरे चुनावों में वह ‘अफवाह’ ही साबित हुई।

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गंभीर से पहले कई भारतीय क्रिकेटरों ने राजनीति का रूख किया। कुछ सांसद और विधायक भी बने लेकिन जहां अन्य खेलों के खिलाड़ियों को केंद्र में मंत्री पद सुशोभित करने का मौका मिला, वहीं क्रिकेटर इस मामले में अब तक भाग्यशाली नहीं रहे। अधिकतर क्रिकेटरों की राजनीतिक पारी तो चुनावी पिच से आगे ही नहीं बढ़ पायी और इनमें पूर्व भारतीय कप्तान मंसूर अली खां पटौदी भी शामिल थे जो सक्रिय राजनीति में आने वाले स्वतंत्र भारत के पहले क्रिकेटर थे। पटौदी ने विधानसभा और लोकसभा चुनावों में किस्मत आजमायी थी लेकिन दोनों में उन्हें हार मिली थी। 

वैसे राजनीति में कदम रखने वाले पहले भारतीय क्रिकेटर पालवंकर बालू थे। कुल 33 प्रथम श्रेणी मैच खेलने वाले बालू देश के पहले दलित क्रिकेटर भी थे। उन्होंने 1933-34 में बंबई नगर निकाय का चुनाव लड़ा था। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक ‘ए कार्नर ऑफ़ ए फॉरेन फील्ड’ में लिखा है कि 1937 में बांबे प्रेसीडेंसी के चुनाव में सरदार बल्लभ भाई पटेल के कहने पर बालू ने डा. भीमराव अंबेडकर के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन हार गये थे।

वह पटौदी थे जिन्होंने क्रिकेटरों के लिये राजनीति के द्वार खोले लेकिन उनकी हार ने क्रिकेटरों को ‘राजनीतिक करियर’ को लेकर सतर्क भी किया। चेतन चौहान, कीर्ति आजाद, नवजोत सिंह सिद्धू और मोहम्मद अजहरूद्दीन हालांकि लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बनने में कामयाब रहे जबकि ‘भारत रत्न’ सचिन तेंदुलकर राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में संसद तक पहुंचे थे।

सिद्धू 2004 से लेकर दस साल तक अमृतसर से भाजपा सांसद रहे। बाद में वह राज्यसभा सांसद भी बने लेकिन उन्होंने इससे इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस से जुड़े गये। वर्तमान में वह पंजाब सरकार में मंत्री हैं। चौहान दो बार अमरोहा से भाजपा सांसद रहे और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। कीर्ति आजाद सर्वाधिक तीन बार दरभंगा से भाजपा के सांसद बने। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भगवत झा आजाद के बेटे कीर्ति अब कांग्रेस के टिकट पर धनबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व कप्तान अजहरूद्दीन 2009 में कांग्रेस के टिकट पर मुरादाबाद से सांसद बने लेकिन 2014 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

पटौदी की तरह कई अन्य क्रिकेटरों की राजनीतिक पारी शुरू में ही समाप्त हो गयी। इनमें मनोज प्रभाकर, मोहम्मद कैफ, चेतन शर्मा, विनोद कांबली, एस श्रीसंत आदि भी शामिल हैं। भारत की तरफ से तीन वनडे खेलने वाले बंगाल के आलराउंडर लक्ष्मीरतन शुक्ला हालांकि पहली बार में जीत दर्ज करने में सफल रहे और वह अब भी ममता बनर्जी के मंत्रिमंडल में मंत्री हैं। तेज गेंदबाज प्रवीण कुमार समाजवादी पार्टी से जुड़े थे लेकिन उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा।

भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों में हालांकि क्रिकेटरों ने राजनीति में भी सफलता का स्वाद चखा। इनमें सबसे महत्वपूर्ण नाम इमरान खान का है जो अभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। यह कम लोग जानते होंगे कि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी क्रिकेटर थे। उन्होंने एक प्रथम श्रेणी मैच खेला था जिसमें वह शून्य पर आउट हो गये थे।

अर्जुन रणतुंगा और सनथ जयसूर्या श्रीलंका सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कैरेबियाई क्रिकेटर वेस हॉल भी बारबाडोस सरकार में मंत्री रहे थे। उनके साथी फ्रैंक वारेल जमैका में सीनेटर बने थे। बांग्लादेश में मशरेफी मुर्तजा राजनीति से जुड़ने वाले पहले क्रिकेटर थे और उन्हें भारी मतों से जीत भी मिली थी। पाकिस्तान के आमिर सोहेल, सरफराज नवाज, इंग्लैंड के टेड डैक्सटर और श्रीलंका के हसन तिलकरत्ने भी उन क्रिकेटरों में शामिल हैं जो राजनीति में उतर चुके हैं।

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