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बंगाल में मुसलमानों की खामोशी तूफान का संकेत, क्या 23 मई को मिलेगा सबसे बड़ा सरप्राइज़?

वैसे बंगाल में जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी सक्रिय है। ये सच है कि जनसमर्थन अब तक बहुत ज्यादा सीटों में तब्दील नहीं हो पाया। मगर आरएसएस से जुड़े संगठनों की कोशिशों की बदौलत गांव और कस्बों तक बीजेपी का नेटवर्क फैल चुका है।

Reported by: IndiaTV Hindi Desk
Published : May 07, 2019 9:19 IST
बंगाल में मुसलमानों की खामोशी तूफान का संकेत, क्या 23 मई को मिलेगा सबसे बड़ा सरप्राइज़?
बंगाल में मुसलमानों की खामोशी तूफान का संकेत, क्या 23 मई को मिलेगा सबसे बड़ा सरप्राइज़?

नई दिल्ली: क्या बंगाल की खामोशी सचमुच केसरिया तूफान का संकेत दे रही है?  क्या बंगाल चुपके-चुपके उस रास्ते पर बढ़ चला है जहां से निकला जनादेश हिंदुस्तान की सियासत को एकदम बदल कर रख देगा? अगर ये सच है तो क्या बंगाल 23 मई को राजनीति में सुपर सरप्राइज देने वाला सेंटर बन जाएगा क्योंकि दीदी की सियासी ज़मीन पर भगवा लहराने को बेताब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उद्घोष के पीछे बंगाल की खाड़ी से चलने वाली हवाओं में दिल्ली के तख्त की तासीर महसूस हो रही है। 

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क्या वाकई बंगाल की सियासी बयार केसरिया आंचल को लपेटने के लिए इतनी आतुर है, क्या वाकई पांच फेज़ के चुनाव के बाद देश के पूर्वी छोर से पोरिबर्तन का नारा बुलंद होने के संकेत मिल चुके हैं। इसकी वजह क्या बूथों पर बम-बारूद की दुर्गंध है या फिर जय श्रीराम का वो निर्भीक शोर किसी नई हवा का संदेश दे रहा है जिसे सुनते ही दीदी का ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है।

कुछ तो हो रहा है बंगाल में जिसकी ख़बर देश को नहीं है। यही उबाल, यही बवाल राजनीति की जिज्ञासा रखने वालों को सैकड़ों सवालों के भंवर में ले जाती हैं। यूं तो बंगाल की रग-रग में राजनीतिक समझ समाई हुई है लेकिन चाय के स्टॉल से लेकर पान की दुकानों तक इन दिनों एक ही चर्चा है, वो ये कि क्या वाकई 23 मई को बंगाल के नतीजे देश को चौंकाने वाले हैं।

2014 में भले ही पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में बीजेपी सिर्फ 2 जीत पाई हो लेकिन 2019 आते-आते बंगाल की खाड़ी में बहुत पानी बह चुका है। मतलब ये कि बंगाल बदल चुका है। बीजेपी ने इस बार 22 से ज्यादा सीटों का टारगेट रखा है। वहीं लंबे दौर तक बंगाल की राजनीति का मूड देश की सियासत से इतर रहा है। इस मनमौजी सूबे में 35 साल तक लेफ्ट की सत्ता रही। पिछले सात साल से ममता बनर्जी की हुकूमत है।

गौरतलब हे कि उत्तर प्रदेश के बाद बंगाल ही वो राज्य है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत पूरी पार्टी ने अपनी सारी ताकत झोंक रखी है। पीएम मोदी ने दो फरवरी से ही पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार की शुरुआत कर दी थी। प्रधानमंत्री मोदी बंगाल में अब तक 9 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं, वहीं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी बंगाल में कई रैलियां कर चुके हैं। 

मोदी की हर रैली बंगाल में बदलती राजनीति का इशारा कर रही है और ये मां-माटी-मानुष का दम भरने वाली दीदी को बहुत चुभता है। लोकसभा की सीटों के लिहाज से पश्चिम बंगाल देश का तीसरा सबसे बड़ा सूबा है। मोदी भी बार-बार दीदी की खिसकती ज़मीन का अहसास कराते हैं। कोलकाता की ग्राउंड रिपोर्ट दीदी के दुर्ग में दरार आने का इशारा कर रही है। यहां पहले हिंदी भाषा की किताब ज्यादा नहीं मिलती थी, लेकिन ये कोलकाता का परिवर्तन है।

बीजेपी ने बंगाल के इन्हीं हिंदी भाषी वोटरों के ज़रिए अपनी पकड़ बनानी शुरू की। वैसे बंगाल में जनसंघ के जमाने से ही बीजेपी सक्रिय है। ये सच है कि जनसमर्थन अब तक बहुत ज्यादा सीटों में तब्दील नहीं हो पाया। मगर आरएसएस से जुड़े संगठनों की कोशिशों की बदौलत गांव और कस्बों तक बीजेपी का नेटवर्क फैल चुका है।

बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं और 42 में से आधी सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक हैं। इन्हीं 30 फीसदी मुस्लिम वोटर्स के सहारे बंगाल में ममता बनर्जी कि सियासत फली-फूली। बीजेपी कथित मुस्लिम तुष्टीकरण को लेकर ममता बनर्जी पर हमलावर है और इसी रुख की वजह से बंगाल में बीजेपी का जनाधार लगातार बढ़ता रहा है। कभी दुर्गा विसर्जन पर विवाद तो कभी मुहर्रम के जुलूस पर फसाद, बंगाल से आने वाली ध्रुवीकरण की ऐसी तस्वीरों ने बीजेपी को टीएमसी के गले तक ला दिया।

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