नई दिल्ली: इटावा उत्तर प्रदेश के यादवलैंड का वो इलाका है जहां लंबे वक्त तक सिर्फ साइकिल वालों की सल्तनत चलती थी लेकिन 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में मुलायम परिवार के इस क़िले पर बीजेपी ने अपना झंडा गाड़ दिया। अब 2019 की जंग में हालात ना तो बीजेपी के फेवर में है ना समाजवादी पार्टी के। एसपी को बीएसपी के समर्थन का फायदा तो मिलेगा लेकिन शिवपाल यादव की बग़ावत का नुकसान भी हो सकता है। अगर चाचा शिवपाल के उम्मीदवार ने यादव वोट बैंक में सेंध लगा दी तो भतीजे अखिलेश की साइकिल का पहिया पंचर हो सकता है।
इटावा में 4 लाख 20 हज़ार दलित, 2 लाख ब्राह्मण, 1 लाख 70 हज़ार यादव, 1 लाख 20 हज़ार राजपूत, 1 लाख मुसलमान और 1 लाख वैश्य वोटर हैं। यानी दलित बहुल इस लोकसभा क्षेत्र में एकमुश्त यादव वोटर किसी भी उम्मीदवार की जीत और हार तय कर सकता है। यहां कॉलेज में पढ़ने वाले ज्यादातर यादव युवा समाजवादी पार्टी के साथ नज़र आए।
1957 से अस्तित्व में आई इटावा लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी से पहले कांग्रेस का गढ़ रही है। यहां 4 बार समाजवादी पार्टी, 4 बार कांग्रेस और 2 बार बीजेपी को जीत हासिल हो चुकी है। 1991 में बीएसपी से कांशीराम भी चुनाव जीत चुके हैं। 2019 में मुक़ाबला बीजेपी के रामशंकर कठेरिया, महागठबंधन के कमलेश कठेरिया और कांग्रेस के अशोक दोहरे के बीच है। रामशंकर कठेरिया आगरा से सांसद हैं और टिकट मिला इटावा से, इटावा के सांसद अशोक दोहरे का टिकट कटा तो उन्हें कांग्रेस ने मैदान में उतार दिया।
सरायएसर गांव के ये यादव तो मोदी के मुरीद निकले लेकिन हस्तकरघा उद्योग से जुड़े लोग तो मोदी से नाराज़ दिखे। वहीं इटावा के बाज़ारों में हवा का रुख बदला हुआ नज़र आया। इटावा में लड़ाई बीजेपी और एसपी उम्मीदवार के बीच नज़र आ रही। इटावा वो जगह है जहां से मुलायम सिंह यादव ने अपना सियासी सफर शुरू किया था। मुलायम के गांव सैफई से महज 22 किलोमीटर दूर मौजूद इटावा के दिल पर कई दशकों तक मुलायम के परिवार ने राज किया लेकिन कुनबे की कलह में यहां का वोटर बंटा हुआ नज़र आ रहा है। देखें वीडियो...