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‘जनसेवा’ के सहारे चुनावी राह आसान बनाना चाहते हैं डकैतों के परिजन

बुंदेलखंड क्षेत्र में स्वयं को ‘‘बागी’’ कहने वाले अधिकतर कुख्यात दस्युओं ने काफी समय तक अपने को राजनीति से दूर रखा लेकिन समय बदलने के साथ-साथ इनके परिजनों की सोच में बदलाव आ गया है।

Written by: Bhasha
Published : May 04, 2019 11:43 IST
Dadua Dacoit
Dadua Dacoit

खजुराहो/बांदा: बुंदेलखंड क्षेत्र में स्वयं को ‘‘बागी’’ कहने वाले अधिकतर कुख्यात दस्युओं ने काफी समय तक अपने को राजनीति से दूर रखा लेकिन समय बदलने के साथ-साथ इनके परिजनों की सोच में बदलाव आ गया है। अब इनमें से कई दस्यु परिवारों के परिजन राजनीति में उतर आए हैं और वे अपनी दस्यु पृष्ठभूमि की भरपाई ‘जनसेवा’ के जरिए करना चाहते हैं।

एक समय था जब बुंदेलखंड में चंबल, बेतवा और केन नदियों की कुख्यात घाटियों में डकैतों का दबदबा चुनावी राजनीति में भी सिर चढ़कर बोलता था। इन इलाकों में फूलन देवी, मलखान सिंह, निर्भय गूर्जर और ददुआ जैसे दुर्दांत डाकुओं में फूलन देवी को छोड़कर किसी बड़े दस्यु ने स्वयं कभी सियासत का रुख नहीं किया, लेकिन तमाम दलों को अपनी चुनावी नैया पार करने में इनके फतवों की दरकार होती थी।

हालांकि, वक्त बदलने के साथ इन दस्युओं के परिजनों ने अपनी पृष्ठभूमि को पीछे छोड़ राजनीति में उतरकर ‘‘जनसेवक’’ बनने की राह चुनी है। वर्तमान लोकसभा चुनाव में बुंदेलखंड के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से दस्यु पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले दो उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। इनमें से एक बांदा जिले में केन नदी के आसपास शंकरगढ़ के जंगलों में आतंक का पर्याय बने ददुआ का भाई है तो दूसरा बेटा है।

ददुआ के छोटे भाई बाल कुमार पटेल बांदा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। ददुआ के पुत्र वीर सिंह पटेल खजुराहो सीट से सपा के उम्मीदवार हैं। इन दोनों को ही चुनावी समर में अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि को लेकर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशी उनके खिलाफ इस मुद्दे को ही सबसे ज्यादा हवा दे रहे हैं। 

इसके जवाब में बाल कुमार ने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति अपनी पृष्ठभूमि नहीं बदल सकता है। सिर्फ जनहित के कामों से खुद को उस पृष्ठभूमि से अलग कर अपनी पृथक छवि गढ़ सकता है।’’ वीर सिंह का कहना है, ‘‘मेरे पिता डाकू थे, यह एक सच्चाई है, लेकिन उनके जनहित के कामों की बदौलत ही मेरे राजनीति में प्रवेश करने पर जनता ने 2005 में उनके जीवित रहते ही मुझे जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया। अगर उन्होंने या मैंने जनता की सेवा नहीं की होती तो मेरे चाचा न सांसद का चुनाव जीतते और न ही मैं विधानसभा का चुनाव जीतता।’’

बाल कुमार ने भी बेबाकी से कहा, ‘‘हमारी पृष्ठभूमि गुजरा कल है। जनता वर्तमान की कसौटी पर अपने प्रतिनिधि को परखती है। उस कसौटी पर हम कामयाब हैं।’’ चुनावी राजनीति में फूलन देवी को पहली बार बड़ी सफलता मिली थी। उन्होंने सपा के टिकट से मिर्जापुर संसदीय क्षेत्र से जीत दर्ज की थी। इसके बाद ददुआ के परिजनों को चुनावी राजनीति में बड़ी सफलता मिली। 

बांदा में बाल कुमार का मुकाबला सपा के श्यामाचरण गुप्ता और भाजपा के आर के सिंह पटेल से है। पुलिस मुठभेड़ में ददुआ की 2007 में मौत के बाद बाल कुमार ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा था। वह 2009 के लोकसभा चुनाव में मिर्जापुर सीट से सपा सांसद के रूप में संसद पहुंचे थे। 

ददुआ के पुत्र वीर सिंह ने मध्य प्रदेश की खजुराहो सीट पर छतरपुर राजघराने की पुत्रवधू और कांग्रेस उम्मीदवार कविता सिंह तथा भाजपा के बी डी शर्मा के सामने खड़े होकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। वीर सिंह 2017 तक बांदा की कर्वी विधानसभा सीट से सपा के विधायक थे। पिछले विधानसभा चुनाव में हारने के बाद वह अब वह लोकसभा चुनाव में पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता डॉ. अनूप सिंह ने बताया कि ददुआ परिवार का प्रभाव केन बेतवा नदियों के आसपास की बांदा, हमीरपुर, खजुराहो और टीकमगढ़ लोकसभा सीटों पर है। उनका कहना है कि गठबंधन और कांग्रेस द्वारा बांदा तथा खजुराहो सीट पर मजबूत उम्मीदवार उतारे जाने से सभी चारों सीटों पर भाजपा की परेशानी बढ़ गई है।

उल्लेखनीय है कि ददुआ परिवार की तीसरी पीढ़ी के राजनीति में सफल होने की शुरुआत बाल कुमार के बेटे राम सिंह पटेल ने की। राम सिंह 2012 में प्रतापगढ़ जिले की पट्टी सीट से सपा विधायक चुने गए थे।

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