आजमगढ़: उत्तर प्रदेश का आज़मगढ़ हिंदुस्तान का वो उबलता शहर है जिसकी मिट्टी से क्रांति की पहली चिंगारी निकली थी। जहां मेरठ से 7 दिन पहले अग्रेज़ों के विरुद्ध क्रांतिकारी आगाज़ हुआ, वो आज़मगढ़ जिसे 1857 में आज़ादी के मतवालों ने 81 दिनों के लिए आजाद करा लिया था। उस मिट्टी का मुसलमान आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर क्या सोच रहा है?
अल्लामा शिबली और कैफी आज़मी के शहर आज़मगढ़ में करीब 25 फीसद मुसलमान हैं और मौजूदा वक्त में मुलायम सिंह यादव सांसद हैं तो उनके बेटे अखिलेश यादव गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार हैं। मुलायम चाहते हैं कि मोदी दोबारा पीएम बनें लेकिन उनके बेटे अखिलेश कहते हैं कि उनके पिता ने जिसे भी आशीर्वाद दिया वो पीएम नहीं हुआ। मोदी की तरफ से दिनेश लाल यादव यानि निरहुआ उम्मीदवार हैं जिनकी स्टार वैल्यू के सहारे भाजपा मैदान में है तो कांग्रेस ने अखिलेश यादव के सामने अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।
आजमगढ़ सपा-बसपा का गढ़ मानी जाती है जहां की जातीय समीकरण के मद्देनजर अखिलेश यादव की स्थिति को बेहद मजबूती मिल रही है, हालांकि भाजपा प्रत्याशी निरहुआ सपा मुखिया को राष्ट्रवाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बतौर अभिनेता अपनी लोकप्रियता के चलते कड़ी चुनौती दे रहे हैं। जानकारों की मानें तो आजमगढ़ के जातीय गणित को ध्यान में रखकर ही भाजपा ने भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार ‘निरहुआ’ को अखिलेश के खिलाफ उतारा है। बहरहाल, ‘निरहुआ’ तब ही बड़ा उलट-फेर कर सकते हैं जब वह इस सीट पर निर्णायक यादव मतों में अच्छी-खासी सेंधमारी करेंगे।
‘निरहुआ’ का दावा है कि उन्हें आजमगढ़ में इस बार यादव सहित सभी वर्गों का समर्थन मिलेगा और उनकी उम्मीदवारी ने यहां अखिलेश यादव के सभी समीकरणों पर पानी फेर दिया है। उन्होंने कहा, ''मेरे आने से अखिलेश जी के सारे समीकरण बिगड़ गए हैं। मेरे साथ समाज का हर वर्ग है। मैं यहां वंशवाद और जतिवाद की राजनीति खत्म करने आया हूं। अब आजमगढ़ में विकास की राजनीति होगी।''
दूसरी तरफ, सपा का कहना है कि आजमगढ़ में ‘निरहुआ’ को जनता गंभीरता से नहीं ले रही और भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार घोषित कर, यहां समर्पण कर दिया। आजमगढ़ जिले की अतरौलिया विधानसभा सीट से विधायक और सपा नेता संग्राम यादव ने कहा, ''आजमगढ़ के लोग भाजपा उम्मीदवार को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। सभी वर्गों के लोग अखिलेश के साथ हैं।''
उन्होंने दावा किया, ''भाजपा यहां पहले ही समर्पण कर चुकी है। 12 तारीख को लोग सिर्फ यह तय करेंगे कि अखिलेश की जीत का अंतर कितना होगा।'' आजमगढ़ का जातीय समीकरण ही सपा के इस किले को मजबूत बनाता है और इस बार बसपा भी उसके साथ है।
स्थानीय सियासी जानकारों के मुताबिक, इस लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाताओं में से साढ़े तीन लाख से अधिक यादव, तीन लाख से ज्यादा मुसलमान और करीब तीन लाख दलित हैं। यही जातीय गणित अखिलेश की राह को आसान और ‘निरहुआ’ के लिए मुश्किल बना सकता है।
भाजपा को उम्मीद है कि ‘निरहुआ’ सपा के कोर वोटर यानी यादवों में सेंध लगाएंगे तथा गैर यादव ओबोसी, गैर जाटव दलित और सवर्ण तबका भी भाजपा के साथ खड़ा होगा जिससे यहां बाजी पलट सकती है।
स्थानीय पत्रकार प्रवीण टिबड़ेवाल कहते हैं, ''‘निरहुआ’ के पक्ष में कोई सकारात्मक परिणाम तभी आ सकता है जब वह सपा के कोर वोटरों में सेंध लगाएं। हालांकि यह बहुत ही मुश्किल है। वैसे, मोदी फैक्टर का उनको कुछ हद तक लाभ जरूर मिल सकता है।''
चुनाव के लिए आजमगढ़ में विकास की कमी, बेरोजगारी, जिले में किसी विश्वविद्यालय का नहीं होना और राष्ट्रवाद आदि प्रमुख मुद्दे हैं। यहां व्यापारियों के लिए जीएसटी के सरलीकरण की मांग और ''अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न'' भी मुद्दा है।
''आजमगढ़ व्यापार मंडल'' के अध्यक्ष पद्माकर लाल वर्मा का दावा है, ''यहां के व्यापारी प्रशासन द्वारा उत्पीड़न किए जाने से परेशान हैं। व्यापारी ईमानदारी से कर का भुगतान और कारोबार करते हैं लेकिन उनके यहां छापेमारी होती है।" आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं जिनमें से आजमगढ़ सदर, गोपालपुर और मेहनगर पर सपा का कब्जा है तो सगड़ी और मुबारकपुर बसपा के पास हैं।
आजमगढ़ सीट समाजवादी सियासत के लिए हमेशा माउंट एवरेस्ट के माफिक रही है। सिर्फ 2009 में यहां बाहुबली नेता रमाकांत यादव ने बीजेपी के लिए भगवा लहराया। 2014 में मोदी लहर के बावजूद यहां कमल मुरझा गया। इस बार बीजेपी आजमगढ़ सीट को बोनस मान रही है। गौरतलब है कि आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 12 मई को मतदान होना है।