नई दिल्ली: कर्नाटक में सियासत का शोर आज शांत पड़ने वाला है। मैदानों में सन्नाटा छा जाएगा और झंडा उड़ाने वाले, भीड़ जुटाने वाले सब कई महिनों के बाद आज से फुर्सत में होंगे और जनता अपने फैसले के लिए तैयार हो जाएगी। नतीजा चाहे जो हो लेकिन कर्नाटक का चुनाव पहली बार इतने भव्य पैमाने पर लड़ा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी सबने मिलकर इस चुनाव को ऐसा बना दिया कि ये चुनाव विधानसभा के लिए नहीं बल्कि लोकसभा के लिए हो रहा हो। पहली बार ऐसा हो रहा है कि कर्नाटक का चुनाव पूरा हिंदुस्तान देख रहा है।
कर्नाटक चुनाव को राष्ट्रीय बनाने में सबसे बड़ी भूमिका है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की। चुनाव प्रचार का अंत होते-होते सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी आ गये। सबने मिलकर इस चुनाव को इतना बड़ा बना दिया कि कर्नाटक की जनता पहली बार सियासत की ऐसी लड़ाई देख रही है, जिसमें बाल्टी पर भी बात हो रही है। इस बार कर्नाटक चुनाव कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कौन बनेगा मुख्यमंत्री के चुनाव में कौन बनेगा प्रधानमंत्री पर चर्चा होने लगी।
कर्नाटक के लोगों ने इसके पहले विधानसभा चुनाव में ना कभी इतने चेहरे देखे न इतनी चतुराई देखी, न इतने पैंतरे देखे न इतने पहरेदार देखे और न नतीजों की ऐसी प्रतीक्षा देखी। कभी नहीं देखा 225 सीट के लिए ऐसा संग्राम। कर्नाटक के चुनाव में कोई मुकुट ऊंचा करने के लिए लड़ रहा है, कोई लड़ रहा है आधार बढ़ाने के लिए तो कोई लड़ रहा है अस्तित्व बचाने के लिए। कर्नाटक चुनाव में आखिरी वार का आज आखिरी दिन है।
कर्नाटक का रण
-कर्नाटक में 224 सीटों के लिए 12 मई को मतदान होगा
-15 मई को 224 सीटों पर मतगणना होगी
-2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 121 सीटें जीती थी
-बीजेपी के उम्मीदवार 40 सीटों पर जीत दर्ज कर पाए थे
-येदियुरप्पा की केजेपी सिर्फ छह सीटें ही जीत पाई थी
-जेडीएस भी 2013 में 40 सीट गई थी
-इस बार चुनाव में येदियुरप्पा बीजेपी के साथ है
बीजेपी और कांग्रेस ने मिलकर कर्नाटक के चुनाव को ऐतिहासिक महत्व का बना दिया है। जिस बात से कर्नाटक की जनता का कोई सरोकार नहीं, उन मुद्दों पर भी बहस हो रही है। पाकिस्तान के जिन्ना की गूंज बेंगलुरु में भी सुनाई दे रही थी। अंतिम चालें आज चली जाएगी लेकिन पूरे चुनाव के दौरान कर्नाटक के मुद्दों पर किसी ने बात नहीं की। कर्नाटक में किसानों के हालात पर बात नहीं हो रही, बेंगलुरु में बढ़ते अपराध पर बात नहीं हो रही। यहां हो रही है प्रधानमंत्री पर बात, जिन्ना पर बात और यूपी की आंधी पर बात। कर्नाटक के चुनाव के दो ही चेहरे हैं। पहला येदुरप्पा और दूसरा सिद्धरमैया लेकिन जिस तरह चुनाव प्रचार किये गए उससे साफ दिख रहा है कि लड़ाई राहुल गांधी और प्रधानमंत्री के इर्द गिर्द घूमती रही।
इस चुनाव के महत्व को ऐसे समझिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी खुद लग गए, अमित शाह को गली-गली घूमना पड़ा, योगी समेत कई राज्यों के सीएम अपने राज्यों का काम छोड़कर कर्नाटक के वोटर लिस्ट का गणित देख रहे थे। मतलब सारे दिग्गजों ने दम झोंक दिया है, सारा दिमाग लगा दिया है। सारी दौलत बिखेर दी है कर्नाटक की 225 सीटों के लिए। वैसे ज्यादातर ओपनियन पोल में कांग्रेस अभी भी आगे है लेकिन बहुमत से दूर है।
मुश्किल यही है अगर बीजेपी और जनता दल सेक्यूलर ने हाथ मिला लिया तो फिर कर्नाटक में कमल को खिलने से कौन रोकेगा। हलांकि अमित शाह को लगता है कर्नाटक की जनता बीजेपी को ऐसा बहुमत देगी जहां कांग्रेस आखिरी पंक्ति में खड़ी नजर आएगी। साल 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटें जीती थीं जबकि बीजेपी 40 और जेडीएस 40 सीटों पर कब्जा किया था। बीजेपी से बगावत कर चुनाव लड़ने वाले बीएस येदियुरप्पा की केजेपी महज 6 सीटें जीत सकी थी जबकि 6 सीटें अन्य के खाते में आई थी लेकिन इस बार येदियुरप्पा और बीजेपी एक साथ खड़ी है।