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कर्नाटक विधानसभा चुनाव: जानें, दक्षिण के इस बड़े राज्य की राजनीति में मठों की क्या है अहमियत

कर्नाटक के 30 जिलों में 600 से अधिक ‘मठों’ ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के प्रमुखों को अपनी शरण में आने पर मजबूर कर दिया है...

Reported by: Bhasha
Updated : April 01, 2018 14:15 IST
Amit Shah and Rahul Gandhi | PTI Photo
Amit Shah and Rahul Gandhi | PTI Photo

नई दिल्ली: कर्नाटक के 30 जिलों में 600 से अधिक ‘मठों’ ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के प्रमुखों को अपनी शरण में आने पर मजबूर कर दिया है। कर्नाटक में हमेशा से ही मठों की राजनीति हावी रही और लोगों पर मठों का खासा प्रभाव रहा है। लिहाजा राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठों के दर्शन कर वहां के मठाधीशों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश करती रही हैं। ऐसे में मतदाताओं पर मठों के प्रभाव को देखते हुए बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह और कांग्रेस के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष राहुल गांधी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

इसलिए मठों में माथा टिकाना है जरूरी

संत समागम से जुड़े स्वामी आनंद स्वरूप ने बताया कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय से जुड़े करीब 400 छोटे-बड़े मठ हैं जबकि वोकालिगा समुदाय से जुड़े करीब 150 मठ है। कुरबा समुदाय से 80 से अधिक मठ जुड़े हैं। इन समुदायों का कर्नाटक की राजनीति में खासा प्रभाव है, ऐसे में राजनीतिक दलों में इन मठों का आर्शीवाद प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है। उन्होंने बताया कि कर्नाटक में मठ सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र ही नहीं हैं बल्कि प्रदेश के सामाजिक जीवन में भी इनका काफी प्रभाव माना जाता है। शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में नि:स्वार्थ सेवा के साथ कमजोर वर्ग के लोगों के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान के कारण लोग इन मठों को श्रद्धा के भाव से देखते हैं।

मठों पर है बीजेपी की खास नजर
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस कर्नाटक में इतनी कमजोर नहीं है जितनी विगत में कुछ राज्यों में थी, इसलिए यहां पर बीजेपी के लिए चुनौती बड़ी है। कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव अग्निपरीक्षा हैं क्योंकि यहां पर जीत के साथ उसके हार के सिलसिले पर विराम लग सकता है। ऐसे में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया नीत कांग्रेस सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की पहल से उत्पन्न राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाने और बीजेपी कर्नाटक में सत्ता हासिल करने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। अमित शाह समेत बीजेपी के वरिष्ठ नेता मठों का आर्शीवाद लेने में जुट गए हैं। पार्टी को उम्मीद है कि मठों के आशीर्वाद से लिंगायत समुदाय के कद्दावर नेता बी. एस. येदियुरप्पा के नेतृत्व में इस दक्षिणी राज्य में कांग्रेस के चक्रव्यूह को तोड़ने में वह सफल होगी।

मठों के साथ दरगाहों को भी साध रहे हैं राहुल गांधी
हर धर्म के लोगों को साधने की कोशिश में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मंदिरों और मठ के अलावा चर्च और दरगाह जा रहे हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने हाल ही में दावा किया था कि राज्य में जितने भी मठ हैं उन सब का समर्थन कांग्रेस को है। वहीं, राज्य में ‘नाथ सम्प्रदाय’ को साधने की कवायद के तहत बीजेपी ने प्रचार के लिए योगी आदित्यनाथ को उतारा है। अखिल भारतीय संत समिति के प्रवक्ता बाबा हठयोगी दिगंबर का कहना है कि मठ किसी राजनीतिक दल का न तो विरोध करते हैं और न ही समर्थन। उन्होंने कहा, ‘हां, यह जरूर है कि राजनीतिक दल मठों का आर्शीवाद लेने आते हैं। ’ 

लिंगायत वोटों पर है सबकी नजर
राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है और 100 सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है। इस समुदाय को बीजेपी का पारंपरिक वोटबैंक माना जाता है लेकिन सिद्धरमैया सरकार के ‘लिंगायत कार्ड’ ने बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। केंद्रीय मंत्री तथा कर्नाटक से बीजेपी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार ने कहा, ‘कर्नाटक की जनता सब जानती है। वह जानती है कि कौन ‘दिल में श्रद्धा’ रखते हैं और कौन ‘चुनावी श्रद्धा’ रखते हैं। हम पूरे जीवन के लिए भगत हैं, पूरे जीवन के लिए श्रद्धा भाव रखते हैं।’ 

क्या इस बार लिंगायत वोटों को साध पाएगी बीजेपी
राज्य के सभी 30 जिलों में मठों का जाल फैला हुआ है। जातीय समीकरण के लिहाज से मठों का अपना प्रभुत्व और दबदबा है। कर्नाटक दौरे में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने तुमकुर के सिद्धगंगा मठ में लिंगायत समुदाय के संत शिवकुमार स्वामी से मिलकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। इस दौरान बी. एस. येदियुरप्पा, अनंत कुमार समेत बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। इस मठ का बावणगेरे, शिमोगा और चित्रदुर्ग जैसे मध्य कर्नाटक क्षेत्र में खासा प्रभाव माना जा रहा है। साल 2013 के चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। 

वोकालिगा समुदाय के वोट भी हैं महत्वपूर्ण
वोकालिगा समुदाय के बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा माने जाते हैं और उनकी पार्टी जनता दल (सेकुलर) का चुनचुनगिरी मठ पर खासा प्रभाव माना जाता है। बीजेपी और अमित शाह भी इस बार वोकालिगा समुदाय में पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं। शाह के दौरे के बाद अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा जैसे केंद्रीय मंत्री भी चुनचुनगिरी मठ का दौरा कर चुके हैं। जनसंख्या के लिहाज से कर्नाटक के दूसरे प्रभावी समुदाय वोकालिगा की आबादी 12 फीसदी है। राज्य में वोकालिगा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं। 

जानें, क्या है कुरबा और अहिंदा का गणित
तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा हुआ है। प्रदेश में इस समुदाय से 80 से अधिक मठ जुड़े हैं। मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है। मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरमैया इसी समुदाय से आते हैं। राज्य में कुरबा आबादी 8 फीसदी है। लिंगायत समुदाय पर कांग्रेस के राजनीतक कार्ड की काट के रूप में सिद्धारमैया के वोट बैंक कहे जाने वाले अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, दलित का कन्नड़ में शॉर्ट फॉर्म) को तोड़ने की कवायद के तहत अमित शाह ने हाल ही में चित्रदुर्ग में प्रभावशाली दलित मठ शरना मधरा गुरु पीठ के महंत मधरा चेन्नैया स्‍वामीजी से मुलाकात की थी। अमित शाह इस क्षेत्र में लिंगायत समुदाय के प्रमुख धार्मिक स्थल सुत्तूर मठ का भी दौरा कर रहे हैं। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया भी 2 अप्रैल तक मैसूरू में चुनाव प्रचार करेंगे जहां वे कुछ मठों में आर्शीवाद लेने जाएंगे।

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