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बिहार विधानसभा चुनाव : समय के साथ-साथ बढ़ता गया भाजपा का 'सियासी ग्राफ'

 बिहार में जनसंघ के नाम से प्रारंभ हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले ही समय के साथ अपने जनाधार को बढ़ाती चली गई है लेकिन अब तक भाजपा का कोई नेता बिहार में सत्ता के शीर्ष तक नहीं पहुंच सका है। इसका सबसे मुख्य कारण माना जाता है कि भाजपा अब तक राज्य में कभी भी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने नहीं आई।

Reported by: IANS
Published : October 06, 2020 13:46 IST
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Image Source : FILE बिहार विधानसभा चुनाव : समय के साथ-साथ बढ़ता गया भाजपा का 'सियासी ग्राफ'

पटना: बिहार में जनसंघ के नाम से प्रारंभ हुई भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भले ही समय के साथ अपने जनाधार को बढ़ाती चली गई है लेकिन अब तक भाजपा का कोई नेता बिहार में सत्ता के शीर्ष तक नहीं पहुंच सका है। इसका सबसे मुख्य कारण माना जाता है कि भाजपा अब तक राज्य में कभी भी सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने नहीं आई।

बिहार में इस बार भी भाजपा ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की है। हालांकि इस बार भाजपा ने राज्य में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है।

वर्ष 1962 में मात्र तीन विधायकों वाली इस पार्टी के वर्तमान समय में 53 विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 24.42 प्रतिशत वोट प्राप्त किया था जो अब तक के चुनावी राजनीति में इस पार्टी का सबसे अधिक मत था। गौरतलब है कि भाजपा का सियासी ग्राफ प्रत्येक चुनाव में बढ़ता गया है।

बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव कहते हैं, भाजपा प्रारंभ से ही विकास की राजनीति पर विश्वास करती है। बिहार की राजनीति जातीय ध्रुव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। यही कारण है कि भाजपा जैसी पार्टी को मतदाताओं ने पसंद किया।

वर्ष 1962 में एक दशक के संघर्ष के बाद बिहार विधानसभा में पहली बार भाजपा (उस समय की जनसंघ) के तीन उम्मीदवार सदन की चौखट को पार कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

भाजपा ने कलांतर में अविभाजित बिहार में कांग्रेस के मजबूत माने जाने वाले आदिवासियों के वोट बैंक में सेंध लगा दी और इन इलाकों में भाजपा की जमीन मजबूत होती गई।

जनसंघ ने वर्ष 1967 में 272 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 26 सीटों पर जीत दर्ज की। इसमें अधिकांश सीटें आदिवासी क्षेत्रों की ही रही थी। 1969 में 34 सीटें जीती परंतु वर्ष 1972 में हुए विधानसभा चुनाव में 25 सीटों पर ही इस पार्टी के उम्मीदवार विजयी हो सके।

इस समय तक भाजपा जनसंघ के रूप में जानी जाती थी। लेकिन गैर-कांग्रेसी दलों के बड़े राजनीतिक प्रयोग के तौर पर जनता पार्टी के विफल होने के बाद 1980 में भाजपा अस्तित्व में आई।

भाजपा ने 1980 में हुए चुनाव में 21 सीटों पर विजय पताका लहराई। लेकिन इसके अगले ही चुनाव में भाजपा केवल 16 सीटें ही जीत सकी। 1990 के चुनाव में भाजपा ने 39 सीटें जीत ली और 1995 में हुए चुनाव में 41 सीटों पर जीत दर्ज कर अपने विधायकों की संख्या में इजाफा किया।

बिहार में समता पार्टी के साथ मिलकर भाजपा ने 2000 के चुनाव में 67 सीटें अपने खाते में कर लीं। इस दौरान बिहार विभाजन ने भाजपा के 32 विधायकों को झारखंड भेज दिया। इससे झारखंड में भाजपा को लाभ हुआ मगर बिहार में नुकसान। भाजपा के पास बिहार में 35 विधायक ही रह गए।

झारखंड के अलग होने के बाद फरवरी 2005 में भाजपा ने जनता दल (युनाइटेड) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 37 सीटों पर तथा अक्टूबर में हुए चुनाव में 55 सीटों पर जीत दर्ज की। इस जीत ने भाजपा को सत्ता में भी भागीदार बना दिया। सीटों के इजाफा का यह सिलसिला 2010 में भी जारी रहा और भाजपा ने 102 सीटों पर चुनाव लड़कर 91 सीटें अपने खाते में कर लीं।

पिछले चुनाव में भाजपा का जदयू से गठबंधन टूट गया। उस चुनाव में भाजपा ने लोजपा और अन्य दलों से गठबंधन कर 53 सीटों पर अपना परचम लहराया।

भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद कहते हैं कि भाजपा इस चुनाव में भी सबसे अधिक मतों के साथ सत्तारूढ़ होगी। उन्होंने कहा कि भाजपा आज बिहार की सबसे पसंदीदा पार्टी है।

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