Monday, November 25, 2024
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इन्हें पहचानते हैं आप? ये कोई आम महिला नहीं हैं, इतिहास में इनके नाम रिकॉर्ड भी दर्ज है

सावित्री बाई फुले सिर्फ भारत की पहली महिला शिक्षक ही नहीं थीं, इसके अलावा वे समाज सुधारक और मराठी कवियत्री भी थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं के हक और शिक्षा जगत में कई प्रेरणास्रोत काम किए।

Written By: Akash Mishra @Akash25100607
Updated on: January 03, 2023 17:17 IST
सावित्री बाई फुले की 192वी जयंती- India TV Hindi
Image Source : TWITTER(@ACHYUTA_SAMANTA) सावित्री बाई फुले की 192वी जयंती

भारत की पहली महिला शिक्षका सावित्री बाई फुले की आज 192वीं जयंती है। सावित्री बाई फुले सिर्फ भारत की पहली महिला शिक्षक ही नहीं थीं, इसके अलावा वे समाज सुधारक और मराठी कवियत्री भी थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर महिलाओं के हक और शिक्षा जगत में कई प्रेरणास्रोत काम किए। भारत की पहली महिला शिक्षिका का जंम 3 जनवरी 1831 को एक मराठी दलित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था और इनका विवाह 1840 में ज्योतिराव फुले से हुआ था। 

उनकी 192वी जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री ने मोदी ने उन्हें श्रद्धांजली दी। पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा,"प्रेरणास्रोत सावित्रीबाई फुले जी की जयंती पर उन्हें शत शत नमन। वह हमारी नारी शक्ति की अदम्य भावना का प्रतीक हैं। उनका जीवन महिलाओं को शिक्षित करने और उन्हें सशक्त बनाने के लिए समर्पित था। सामाजिक सुधार और सामुदायिक सेवा पर उनका ध्यान समान रूप से प्रेरक है।"

महलिाओं को हक दिलाना और शिक्षित करने ही जीवन का उद्देश्य 

सावित्रीबाई फुले को शिक्षा जगत में महिलाओं को लाने और शिक्षित करने के लिए तब के समाज का बहुत ज्यादा विरोध झेलना पड़ा था। उन्होंने अपना जीवन एक मिशन की तरह जिया, जिसका उद्देश्य था महिलाओं के लिए समाज की कुरीतियों को खत्म करना जैसे-  विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की आजादी और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। आपको बता दें कि वे एक बहुत अच्छी कवियत्री भी थीं, उनको मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए समाज विरोध झेला

सावित्री बाई पूरे देश की महानायिका हैं। उन्होंने पूरे मानव समाज के लिए काम किया। उन्होंने अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करने के लिए समाज का कड़ा विरोध झेला। जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थीं, तो उनके विरोधी उनपर पत्थर मारते, गंदगी, गोबर, कीचड़ फेंकने जैसे घिनौने काम करते। क्योंकि तब के समय में बालिकाओं के लिए स्कूल खोलना बहुत बड़ा पाप समझा जाता था। सावित्री बाई फुले ऐसी ही कुरूतियों के खिलाफ बुलंद आवाज बनकर खड़ी हुई थीं। 

5 सितंबर 1848 को खोला था पहला स्कूल 

सावित्री बाई के पति ज्योतिराव ने हर तरह से उनका साथ दिया। ज्योतिराव को बाद में ज्योतिबा के नाम से भी जाने गए। सावित्री बाई ने अुपने पति के साथ मिलकर 5 सितंबर 1848 को पुणे में विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ महिलाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। एक साल में सावित्री बाई और महात्मा फुले पांच नए स्कूल खोलने में सफल हुए। इस काम के लिए तत्कालीन सरकार ने इन्हें सम्मानित भी किया। 

पाबंदियों के बीच बनीं पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। समाज के विरोध के साथ एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। उस समय लड़कियों की शिक्षा पर सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया। 

प्लेग के कारण 10 मार्च 1897 को ली अंतिम सांस 

जब 1897 में पूरे महाराष्ट्र में प्लेग की बीमारी फैला तो वे प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की मदद करने निकल पड़ी, इस दौरान वे खुद भी प्लेग की शिकार हो गई और 10 मार्च 1897 को उन्होंने अंतिम सांस ली।

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