Ratan Tata: टाटा ग्रुप के सबसे सम्मानित लीडर रतन टाटा को कौन-नहीं जानता है। भले ही आज भारत के सबसे अमीरों की लिस्ट में अडानी और अंबानी का नाम शामिल है, लेकिन जब भरोसेमंद बिजनेसमैन की बात आती है, तो उसमें रतन टाटा का नाम सबसे ऊपर है। भरोसे का आलम ऐसा कि 90 के दशक में तो लोग टाटा मतलब भरोसा कहते थे। टाटा कंपनी को आसमान की बुलंदियों तक पहुंचाने वाले रतन टाटा (Ratan Tata) साल 1991 से लेकर 2012 तक टाटा ग्रुप के अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने टाटा ग्रुप के अध्यक्ष पद को छोड़ा, लेकिन वे अभी भी टाटा समूह चैरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। बता दें कि टाटा संस में आज सूई बनाने से लेकर प्लेन चलाने तक 100 से ज्यादा कंपनियां शामिल हैं।
रतन टाटा के लिए सफलता इतनी भी आसान नहीं है जितनी हम या आप समझ रहे हैं। कई बार उन्होंने बेहद कठिन दौर का भी सामना करना पड़ा। रतन टाटा को एक बार इस कदर अपमानित किया गया था, जिसका बदला उन्होंने फोर्ड से जगुआर और लैंड रोवर खरीदकर ली थी। आइए जानते हैं रतन टाटा की एजुकेशन से लेकर टाटा कंपनी की ऊंचाइयों तक पहुंचाने की पूरी कहानी।
पिता कहने पर की थी इंजीनियरिंग
रतन टाटा का जन्म 1937 में मुंबई में हुआ। रतन टाटा की स्कूलिंग मुंबई में ही पूरी हुई है। उन्होंने 1955 में न्यूयॉर्क शहर में रिवरडेल कंट्री स्कूल से अपना डिप्लोमा किया। टाटा ने 1959 में स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर में डिग्री हासिल करने के लिए कॉर्नेल विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। बाद में, 1975 में, उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्को में एक मैनेजमेंट प्रोग्राम में भी किया। रतन टाटा ने एक ऑनलाइन सेमिनार बताया कि वे बचपन में से ही आर्किटेक्ट बनना चाहते थे, लेकिन उनके पिता नवल टाटा की इच्छा थी रतन इंजीनियर बनें। उन्होंने पिता की बात मानी और ऐसा ही किया।
रतन टाटा ने कहा, मेरे पिता चाहते थे कि मैं इंजीनियर बन जाऊं, इसलिए मैंने अपने पिता बात मानकर इंजीनियरिंग की। इसके बाद इंटर्नशिप के लिए टाटा स्टील के जमशेदपुर प्लांट आ गया। रतन टाटा ने आगे कहा कि मुझे इस बात का पछतावा नहीं है कि मैं आर्किटेक्ट नहीं बन पाया। हालांकि, इस बात का अफसोस जरूर है, मैं अपने काम के साथ-साथ अपने ड्रीम जॉब के लिए टाइम नहीं निकाल सका।
टाटा ग्रुप में शामिल
इंटर्नशिप के बाद रतन टाटा साल 1961 में टाटा ग्रुप में शामिल हुए। अपने करियर की शुरुआत में रतन टाटा, टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर लाइमस्टोन को हटाने और भट्टी को हैंडल करने का काम करते थे। करीब 30 सालों तक विभिन्न पोस्ट पर रहकर कंपनी को अपनी सेवाएं देने के बाद उन्होंने 1991 में समूह के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला। इसके बाद रतन टाटा ने 21 सालों तक इस पद पर रहकर टाटा ग्रुप को नया मुकाम दिया। उन्होंने 12 दिसंबर 2012 में अध्यक्ष का पद छोड़ा था।
जब रतन टाटा को किया गया अपमानित
टाटा कंपनी कई सालों से गाड़ियां बना रही थी, पर 1998 में रतन टाटा ने अपना ड्रीम प्रोजेक्ट इंडिका कार लॉन्च किया। यह गाड़ी मार्केट में कुछ खास नहीं चल पाई। फिर कुछ लोगों के राय पर वे कार कंपनी बेचने का प्रस्ताव लेकर फोर्ड कंपनी के पास गए। अमेरिका में रतन टाटा और फोर्ड कंपनी के अधिकारियों के बीच कई घंटे मीटिंग हुई। इसमें फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड का व्यवहार बेहद कड़ा था। उन्होंने रतन टाटा को ये कह कर अपमानित किया कि अगर तुम्हें कार बनानी नहीं आती तो तुमने इस बिजनेस में इतने पैसे क्यों डाले। ये कंपनी खरीदकर हम तुमपर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। उनकी ये बातें सुनकर रतन टाटा अपमानित महसूस करने लगे।
उन्होंने डील कैंसिल कर दी और अपनी टीम के साथ वापस आ आए। फिर उन्होंने अपना पूरा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगाया। सालों की कड़ी मेहनत के बाद रतन टाटा ने इंडिका का नया वर्जन लॉन्च किया। कुछ समय बाद ये बेहद मुनाफे का बिजनेस साबित हुआ। वहीं, फोर्ड कंपनी जगुआर और लैंड रोवर की वजह से काफी घाटा झेलने लगी थी। साल 2008 आते-आते कंपनी दिवालिया होने वाली थी। टाटा ने दोनों को खरीदने का प्रस्ताव रखा। बिल फोर्ड ने इसे स्वीकार कर लिया। उसके बाद बिल फोर्ड टाटा के मुख्यालय आए और रतन टाटा से कहा, आप हमारी कंपनी खरीदकर हम पर बहुत बड़ा एहसान कर रहे हैं। तो ऐसे रतन टाटा ने अपने अपमान का बदला ले लिया।
भारत सरकार ने रतन टाटा को पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008) द्वारा सम्मानित किया। बता दें कि ये सम्मान देश के तीसरे और दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं।