Thursday, December 19, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. एजुकेशन
  3. भारत में ऐसा एजुकेशन पैटर्न लागू करना चाहते थे रवींद्रनाथ टैगोर! विदेशों में अपनाया जा रहा है तरीका

भारत में ऐसा एजुकेशन पैटर्न लागू करना चाहते थे रवींद्रनाथ टैगोर! विदेशों में अपनाया जा रहा है तरीका

शांति निकेतन की स्थापना साल 1901 में नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। यहां पर गुरुकुल प्रणाली के अनुसार शिक्षा दी जाती थी। साल 1921 में इसे विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया। वर्तमान में यह विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है।

Edited By: India TV News Desk
Published : Oct 19, 2022 16:41 IST, Updated : Oct 19, 2022 16:42 IST
Education System in india
Image Source : FILE PHOTO Education System in india

Highlights

  • रवींद्रनाथ टैगोर अंग्रेजों से अलग एजुकेशन पैटर्न चाहते थे
  • आज उनकी सोच को विदेशों में अपनाया जा रहा है
  • लर्निंग बाय डूइंग पर था उनका जोर

कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर को कौन नहीं जानता! अपने मौलिक विचार और दूरदर्शी सोच के लिए उन्हें आज भी जाना जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर भारतीय शिक्षा को अपने मौलिक रूप में आगे बढ़ाने के पक्षधर थे। भारतीय संस्कृति के अनुसार लर्निंग और टीचिंग को नया आयाम देने के लिए उन्होंने कई पहल कीं। गुरु शिष्य परंपरा के अनुसार वे खुले वातावरण में विद्यार्थियों को शिक्षा देने के पक्षधर थे। इसी का नतीजा था कि साल 1901 में शांति निकेतन की स्थापना करके संपूर्ण विश्व को यह संकेत दिया कि भारत की शिक्षा पद्धति ब्रिटिश शिक्षा पद्धति पर आगे नहीं बढ़ेगी। उसका खुद का स्वरूप होगा।

शांति निकेतन में स्टूडेंट्स वृक्षों के नीचे खुले आसमान में पढ़ाई करते थे। वाद-संवाद की परंपरा के तहत सांस्कृतिक कलाओं से भी युवाओं को परिचित कराया जाता था। यदि आज शांति निकेतन मूल रूप में होता तो भारत के कई सारे शैक्षणिक संस्थान उनसे प्रेरित होकर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे होते। तनावपूर्ण शिक्षा प्रणाली अस्तित्व में नहीं होती। ऐसी अनेकों विशेषताएं गिनाई जा सकती हैं जो भारत को विश्व गुरु बनने में शत-प्रतिशत योगदान कर रही होतीं। 

तनावपूर्ण शिक्षा प्रणाली का अंत  

रवींद्रनाथ टैगोर बंधे बंधाए सिलेबस में यकीन नहीं करते थे। वे पाठ्य पुस्तक को रटकर पढ़ाने और पढ़ने के पक्षधर नहीं थे। उनका मानना था कि सहज सरल और आनंदपूर्ण तरीके से जो कुछ भी पढ़ा और पढ़ाया जाता है, वही हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा होता है। इसी विचार के साथ वे पाठ्य पुस्तक और सिलेबस के प्रति उदारता बरतते थे। यही विचार आज सैकड़ों शैक्षणिक संस्थान में अपनाया जा रहा है।   

स्टूडेंट और टीचर के बीच गहरा कनेक्शन 

दरअसल, रवींद्रनाथ टैगोर स्टूडेंट्स और टीचर के बीच किसी भी प्रकार के तनावपूर्ण संवाद के विरोधी थे। उनका मानना था कि एक अच्छा स्टूडेंट ही अच्छा टीचर हो सकता है। और एक अच्छा टीचर ही अच्छा पेरेंट हो सकता है। वे इसी धारणा पर काम करते थे। 

लर्निंग बाय डूइंग पर जोर 

शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्र विकास होता है। टैगोर विज्ञान को पढ़ने के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्य को निभाने वाले टूल्स पर भी ध्यान देते थे। जिससे देश का भला हो। उनका मानना था कि रटकर सीखने से न तो खुद का भला होता है और न ही समाज का। लर्निंग बाय डूइंग के द्वारा जो कुछ भी सीखा जाता है, वह हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा हो जाता है। आजकल पढ़ाई का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाने तक सीमित हो गया है। लेकिन टैगोर का मानना था कि हर स्टूडेंट को ऑलराउंडर होना चाहिए।

Latest Education News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। News in Hindi के लिए क्लिक करें एजुकेशन सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement