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CLAT के जरिए 5 वर्षीय लॉ कानून में एडमिशन के खिलाफ डाली गई याचिका, UGC ने खुलकर किया विरोध

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने दिल्ली हाईकोर्ट में CLAT से जुड़ी एक याचिका का विरोध किया है। याचिका में दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रों को CUET के बजाय केवल CLAT-UG 2023 के आधार पर 5 वर्षीय लॉ कोर्स में एडमिशन देने के खिलाफ बात कही गई थी।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: September 13, 2023 7:12 IST
delhi high court- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO दिल्ली हाईकोर्ट

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्रों को CUET के बजाय केवल CLAT-UG 2023 के आधार पर 5 वर्षीय लॉ कोर्स में एडमिशन देने के फैसले के खिलाफ एक याचिका के जवाब में बीते मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट में विरोध किया और बताया कि यह कोर्स पेशेवर डिग्री प्रोग्राम है जिसमें एडमिशन के लिए छात्रों के चयन में अलग-अलग मानदंडों की जरूरत हो सकती है। यूजीसी ने मामले में दायर जवाबी हलफनामे में याचिका को खारिज करने की मांग की और कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) ने अपनी एकेडमिक काउंसिल और एग्जिक्यूटिव काउंसिल की मंजूरी के साथ ‘कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट’(सीएलएटी) के माध्यम से छात्रों को अपने इंटेग्रेटेड लॉ कोर्स में एडमिशन देने का संकल्प जताया है। बता दें कि CLAT एक नेशनल लेवल की एट्रेंस एग्जाम है जिसे मुख्य रूप से प्रमुख नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज द्वारा अपनाया जाता है।

केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य नहीं

केंद्र सरकार पहले कह चुकी है कि कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस एग्जाम (CUET) केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य नहीं है। केंद्र सरकार ने कहा कि इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ आदि जैसे प्रोफशनल कोर्सों के लिए एडमिशन स्टैंडर्ड उनकी विशेष प्रकृति और विशिष्ट कौशल आदि से तय होते हैं और इसलिए हर कोर्स को विशिष्ट पूर्वावश्यकताओं द्वारा निर्देशित किए जाने की जरूरत है। केंद्र ने इस मामले में एक जवाब में कहा, “नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (2020) एकेडमिक और एडमिनिस्ट्रेटिव ऑटोनॉमी वाले हाई क्वालिफाईड इंडिपेडेंट बोर्डों द्वारा हायर एजुकेशन इंस्टिट्यूट्स के शासन की भी परिकल्पना है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एडमिशन नोटिस को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती है।

याचिका पर अपने विस्तृत जवाब दाखिल 

पिछले महीने, चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने केंद्र और यूजीसी से प्रिंस सिंह की याचिका पर अपने विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा था। उस समय केंद्र के वकील ने कहा था कि CUET केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए अनिवार्य नहीं है, लेकिन यूजीसी के वकील ने इसके विपरीत रुख जाहिर किया था। यूजीसी द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया, “यहां यह जिक्र करना उचित होगा कि 5 वर्षीय इंटेग्रेटेड लॉ कोर्स एक पेशेवर डिग्री प्रोग्राम है, और इस पेशेवर डिग्री प्रोग्राम में एडमिश के लिए छात्रों का चयन करने के लिए मूल्यांकन/आकलन के संदर्भ में विभिन्न मानदंडों की आवश्यकता हो सकती है। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, अत्यंत विनम्रतापूर्वक यह अपील की जाती है कि इस याचिका को इस माननीय कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाए।”

याचिकाकर्ता ने कहा था कि डीयू द्वारा 5 वर्षीय लॉ कोर्स में सीएलएटी-यूजी 2023 की मेरिट के आधार पर एडमिशन देना संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार और अनुच्छेद 21 के तहत शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में मांग की गई है कि पांच वर्षीय इंटेग्रेटेड लॉ कोर्सों में एडमिशन सीयूईटी-यूजी, 2023 के माध्यम से हो।

(इनपुट-पीटीआई)

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