नई दिल्ली। जामिया मिलिया इस्लामिया के समाजशास्त्र विभाग द्वारा 'डाइवर्सिटी इग्नोरेंस एंड जॉय एन आग्युर्मेंट अगेंस्ट नॉलेज ऑफ द अदर' विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया। इसके वक्ता प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी सामाजिक वैज्ञानिक प्रोफेसर अर्जुन अप्पादुराई थे। वह न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में मीडिया, संस्कृति और संचार में गोडार्ड प्रोफेसर हैं।
प्रोफेसर अर्जुन अप्पादुराई की मीडिया एवं संचार विभाग इरस्मस विश्वविद्यालय, रॉटरडैम में मानद प्रोफेसर हैं। टीआईएसएस, मुंबई में टाटा चेयर प्रोफेसर और मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर रिलीजियस एंड एथनिक डाइवर्सिटी, गोटिंगगन में सीनियर रिसर्च पार्टनर हैं। उन्होंने कई पुस्तकें और विद्वतापूर्ण लेख लिखे हैं और उनकी पुस्तकों का फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, पुर्तगाली, जापानी, चीनी और इतालवी में अनुवाद किया गया है।
एक घंटे के गहन और विचार-उत्तेजक व्याख्यान के दौरान, प्रो. अप्पादुराई ने तर्क दिया कि प्रकृति की सच्ची विविधता, सामाजिक जीवन में, विषयों में और ज्ञानमीमांसा में, दूसरों के ज्ञान को ध्यानपूर्वक आत्मसात करने की आवश्यकता है। दूसरे को पूरी तरह से जानने की कोशिश अक्सर राज्यों का आग्रह है, जिन्हें अपनी आबादी का प्रबंधन करने और अपने नागरिकों को पुलिस व्यवस्था देने की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग विविधता का जश्न मनाने की इच्छा रखते हैं, उन्हें विभिन्नता पर भी विचार करने की आवश्यकता है, हमें विभिन्नता की पूर्ण सीमा समझने की आवश्यकता नहीं है। विविधता जोखिम भरी होनी चाहिए और मतभेदों की एक प्रबंधित स्थिति नहीं बननी चाहिए। विविधता के सभी प्रकार वास्तव में विभिन्नता के अनुकूल नहीं हैं।
समाजशास्त्र विभाग, जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी समारोह में 'सेलिब्रेटिंग डाइवर्सिटी' के तहत व्याख्यानों का आयोजन कर रहा है, जिसमें यह श्रृंखला का 13 वां व्याख्यान था। इससे पहले, 20 जनवरी, 2021 को ब्रिटिश राजनीतिक सिद्धांतकार प्रोफेसर भीखू पारेख ने 'नेगोशिएटिंग डाइवर्सिटी' पर और 15 जनवरी, 2021 को आशीष गंझू ने "ए नेटवर्क ऑफ इंस्पिरेशनल साइट्स फॉर ए म्यूजियम ऑफ आ*++++++++++++++++++++++++++++र्*टेक्च र" पर व्याख्यान दिया।
जामिया की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। यह कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित किया गया। कुलपति ने श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा, 'सेलिब्रेटिंग डाइवर्सिटी' का जश्न मनाने से बेहतर कोई विषय हमारे विश्वविद्यालय की प्रकृति का नहीं हो सकता। जामिया के संस्थापक एक ऐसी संस्था बनाना चाहते थे जो बहुलता की भावना को प्रकट करे। यह विश्वविद्यालय मानव ब्रह्मांड बनाने के लिए उनकी ²ष्टि को महसूस करने का प्रयास करता है जो विविध, समावेशी और समतावादी हैं।