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NCPCR ने की मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई की वकालत, मदरसों को बंद करने को लेकर कही ये बात

NCPCR ने केंद्र व राज्य सरकारों से सिफारिश की है कि वह मदरसों का फंड रोक दें क्योंकि वे मुस्लिम बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन नहीं दे पा रहे हैं।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: October 16, 2024 13:15 IST
NCPCR- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO NCPCR ने मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई की वकालत की

देश में मदरसों में होने वाली शिक्षा को लेकर देश में इन दिनों कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पिछले दिनों NCPCR ने मदरसों की पढ़ाई को लेकर कई सवाल खड़ किए थे। इसके बाद अब NCPCR ने केंद्र सरकार व राज्य सरकारों को एक पत्र लिखकर मदरसों का फंड न देने की सिफारिश की है। आयोग ने कहा कि मदरसे गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षा से वंचित कर रहे। ऐसे में इन संस्थानों को राज्य द्वारा दिए जाने वाले फंड रोक देने चाहिए।

धार्मिक शिक्षा के लिए डाला जाता दबाव 

साथ ही NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने सफाई दी कि उन्होंने कभी भी मदरसों को बंद करने का आह्वान नहीं किया। उन्होंने कहा कि गरीब तबके से आने वाले मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की बजाय धार्मिक शिक्षा के लिए दबाव डाला जाता है। हम सभी बच्चों के लिए समान शैक्षिक अवसरों की बात करते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट में, एनसीपीसीआर ने मदरसों के कामकाज की स्थिति के बारे में गंभीर चिंता जताई और कहा कि जब तक वे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, तब तक राज्य द्वारा दिए जाने वाले फंड को रोक दिया जाना चाहिए। मदरसों के कामकाज पर प्रतिक्रिया देते हुए, प्रियांक कानूनगो ने देश के कुछ समूहों की आलोचना की, जो गरीब मुस्लिम समुदाय के सशक्तिकरण से "डरते" हैं।

मुसलमानों के सशक्तीकरण से डरता गुट

उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "हमारे देश में एक ऐसा गुट है जो मुसलमानों के सशक्तीकरण से डरता है। उनका डर इस आशंका से उपजा है कि सशक्त समुदाय जवाबदेही और समान अधिकारों की मांग करेंगे। मैंने कभी भी मदरसों को बंद करने की वकालत नहीं की। हमारा रुख यह है कि जहां संपन्न परिवार धार्मिक और रेगुलर एजुकेशन में निवेश करते हैं, वही गरीब तबके के बच्चों को भी यह शिक्षा दी जानी चाहिए।" उन्होंने सामाजिक-आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा के मौके देने पर जोर दिया।

बच्चों का फॉर्मल एजुकेशन सरकार का कर्तव्य

सरकार की जिम्मेदारी पर जोर डालते हुए कानूनगो ने कहा, "यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि बच्चों को फॉर्मल एजुकेशन मिले। राज्य अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकता।" उन्होंने बताया कि गरीब मुस्लिम बच्चों पर अक्सर धर्मनिरपेक्ष शिक्षा के बजाय धार्मिक शिक्षा के लिए दबाव डाला जाता है, जिससे उनकी संभावनाएं कम हो जाती हैं। कानूनगो ने टिप्पणी की, "हम अपने सबसे गरीब मुस्लिम बच्चों को स्कूलों के बजाय मदरसों में जाने के लिए क्यों बाध्य करते हैं? यह पॉलिसी अनुचित तरीके से उन पर बोझ डालती है।" 

उन्होंने कहा, "1950 में संविधान लागू होने के बाद, मौलाना आज़ाद (भारत के पहले शिक्षा मंत्री) ने उत्तर प्रदेश के मदरसों का दौरा किया और घोषणा की कि मुस्लिम बच्चों को स्कूलों और कॉलेजों में हायर एजुकेशन हासिल करने की जरूरत नहीं है। इसके कारण हायर एजुकेशन में मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व काफी कम हो गया, जो वर्तमान में लगभग 5 प्रतिशत है।"

की शिक्षा मंत्रियों की भी आलोचना

कानूनगो ने मुस्लिम समुदाय के पिछले शिक्षा मंत्रियों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा, "ये मंत्री मदरसों में खड़े होकर मुस्लिम बच्चों को नियमित शिक्षा प्राप्त करने से हतोत्साहित करते थे, जिससे उन्हें शिक्षा के उनके मौलिक अधिकार से वंचित होना पड़ता था।"

कानूनगो ने आगे बढ़ते हुए मदरसा छात्रों को मुख्यधारा के स्कूलों में शामिल करने के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने बताया, "हमने अनमैपड मदरसों का मैंपिग करने और बच्चों को स्कूलों में एडमिशन देने की सिफारिश की है। जहां केरल जैसे कुछ राज्यों ने इसका विरोध किया है, वहीं गुजरात जैसे अन्य राज्यों ने सक्रिय कदम उठाए हैं। अकेले गुजरात में, हिंसक विरोध का सामना करने के बावजूद 50,000 से अधिक बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाया गया है। उन्होंने आगे कहा, "अगले एक दशक में ये मुस्लिम बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर और बैंकर बनेंगे और वे हमारे प्रयासों को मान्यता देंगे।"

(इनपुट- PTI)

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