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16 नवंबर को क्‍यों मनाते हैं National Press Day? जानें इतिहास

भारतीय प्रेस परिषद (PCI) को स्वीकार करने और सम्मानित करने के लिए हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन देश में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की उपस्थिति का प्रतीक है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) भी भारतीय प्रेस के रिपोर्ट की गुणवत्ता की जांच करती है।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: November 16, 2022 21:25 IST
National Press Day- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK.COM National Press Day

भारत में आजादी से लेकर अब तक प्रेस की अहम भूमिका रही है। भारत में अंग्रेजों के राज के दौरान क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा हथियार प्रेस ही रहा। भारत की आजादी में प्रेस निर्णायक भूमिका में रहा है। भारतीय प्रेस परिषद (PCI) को स्वीकार करने और सम्मानित करने के लिए हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाता है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन क्या आपको बता है कि National Press Day 16 नवंबर के दिन क्यों मनाया जाता है? इसका इतिहास क्या है ? अगर नहीं तो इस खबर में हम आपको यही बताने जा रहे है।

अकबर इलाहाबादी की ये मशहूर पक्तियां 'खींचो न कमान, न तलवार निकालो जब तोप मुकाबिल हो तब अखबार निकालो' प्रेस की महत्व और ताकत से रूबरू कराती है। भारत में ब्रिटिश राज के दौरान क्रांतिकारियों का सबसे बड़ा हथियार प्रेस रहा। भारत में प्रेस को वॉच डॉग और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को मोरल वॉच डॉग कहा जाता है। ऐसे में किसी भी देश में प्रेस की आजादी को उस देश के लोकतंत्र का आईना कहना गलत नहीं होगा।

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसी दिन शुरू किया था काम करना

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक प्रतिष्ठान की स्थापना के उपलक्ष्य में देश भर में हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस दिन काम करना शुरू किया था। यह दिन भारत में एक स्वतंत्र और जिम्मेदार प्रेस की उपस्थिति का प्रतीक है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पत्रकारों को समाज का आईना कहा जाता है, जो सच्चाई दिखाता है। यह दिन प्रेस की स्वतंत्रता और समाज के प्रति उसकी जिम्मेदारियों का प्रतीक है।

महत्व 

स्वतंत्र प्रेस को अक्सर बेजुबानों की आवाज कहा जाता है, जो शक्तिशाली शासकों और दलितों, पिछड़ों और गरीबों के बीच की कड़ी है। यह व्यवस्था की बुराइयों को सामने लाता है और शासन की लोकतांत्रिक प्रणाली के मूल्यों को मजबूत करने की प्रक्रिया में सरकार की मदद करता है। कोई आश्चर्य नहीं कि इसे एक मजबूत लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक क्यों कहा जाता है, और एकमात्र ऐसा जहां आम लोग सीधे भाग लेते हैं। अन्य 3 कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका हैं जहां कुछ चुनिंदा लोगों का समूह होता है।

भारत के लिए परिषद बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका निर्माण स्वाभाविक रूप से स्वतंत्र प्रेस की रक्षा के लिए किया गया था। इसलिए संस्था ये सुनिश्चित करने के लिए लगातार काम करती है कि पत्रकारिता की विश्वसनीयता से कोई समझौता नहीं किया गया है।

इतिहास

साल 1956 में प्रथम प्रेस आयोग ने वैधानिक प्राधिकरण के साथ एक निकाय बनाने का फैसला किया। जिसको पत्रकारिता की नैतिकता को बनाए रखने की जिम्मेदारी दी जा सके। आयोग ने महसूस किया कि प्रेस के लोगों से जुड़ने के लिए और उत्पन्न होने वाले किसी भी मुद्दे पर मध्यस्थता करने के लिए एक प्रबंध निकाय की जरूरत थी। साल 16 नवंबर 1966 में, पीसीआई (Press Council of India) का गठन किया गया था और इसके बाद, परिषद की स्थापना के उपलक्ष्य में हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस मनाया जाता है।

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, परिषद की अध्यक्षता परंपरागत रूप से सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज और 28 अतिरिक्त सदस्य करते हैं, जिनमें से 20 भारत में संचालित मीडिया आउटलेट्स के सदस्य हैं। इसमें पांच सदस्यों को संसद के सदनों से नामित किया जाता है और शेष तीन सांस्कृतिक, कानूनी और साहित्यिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

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