इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक और फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन है। जे. भाभा, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के फाउंडिंग डायरेक्टर और फिजिक्स के प्रोफेसर भी थे। होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 में एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था। होमी जहांगीर भाभा के पिता का नाम जहांगीर होर्मुस्जी भाभा और माता का नाम मेहरबाई भाभा था, इनके पिता एक जाने-माने वकील थे जबकि माँ एक गृहिणी थीं।
16 की उम्र में ही पास की थी कठिन परीक्षा
होमी भाभा ने 16 साल की आयु में ही सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा पास कर ली थी। फिर वे गोनविले और कैयस कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए कैम्ब्रिज गए। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में कैवेंडिश लैब में रिसर्च करना शुरू किया और उनका पहला रिसर्च पेपर 1933 में प्रकाशित हुआ। दो साल बाद, उन्होंने अपनी पीएचडी हासिल की और 1939 तक कैम्ब्रिज में रहे।
- 1939 में वे कुछ समय के लिए भारत आए थे, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने के कारण वे कैम्ब्रिज में अपना रिसर्च पूरा करने के लिए वापस नहीं जा सके। इसलिए, वे बैंगलोर में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में रीडर के रूप में काम करने लगे।
- भाभा सिर्फ विज्ञान ही नहीं, कला के भी प्रेमी थे। उन्हें चित्रकारी, शास्त्रीय संगीत और ओपेरा सुनना बहुत पसंद था, इसके अलावा वे एक शौकिया बॉटनिस्ट भी थे।
- होमी भाभा ने छात्र के रूप में कोपेनहेगन में नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ काम किया और क्वांटम सिद्धांत के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।
- उन्होंने ही मेसोन पार्टिकल की पहचान की और उसका नामकरण किया। उन्होंने कॉस्मिक रेडिएशन को समझने के लिए कैस्केड सिद्धांत विकसित करने के लिए एक जर्मन फिजिस्ट के साथ मिलकर काम किया।
- वह 1955 में आयोजित एटमिक एनर्जी के शांतिपूर्ण उपयोग पर पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के प्रथम अध्यक्ष थे।
- 1954 में उन्हें एटमिक एनर्जी में उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1942 में उन्हें एडम्स पुरस्कार भी मिला, साथ ही रॉयल सोसाइटी के फेलो से भी सम्मानित किया गया।
- भाभा चाहते थे कि एटमिक एनर्जी का उपयोग देश की गरीबी दूर करने के लिए किया जाए और उन्होंने विश्व भर में एटमिक हथियारों को गैरकानूनी घोषित करने की वकालत की।
- वह अपने काम के प्रति इतने समर्पित थे कि वे जीवन भर कुंवारे रहे और अपना सारा समय साइंस को दे दिया।
- वे मालाबार हिल्स में मेहरानगीर नाम के एक बड़े से बंगले में रहते थे।
- 24 जनवरी, 1966 को माउंट ब्लैंक के पास एक रहस्यमयी हवाई दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वहीं, कुछ लोगों का दावा है कि भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम को रोकने के लिए सीआईए ने उनकी हत्या करवा दी थी।
इनकी मौत के 8 साल बाद भारत ने 18 मई 1974 को पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसका कोड नाम ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा रखा गया था।
ये भी पढ़ें:
फिर से शुरू हुई यूपी नीट पीजी की काउंसलिंग प्रक्रिया, जानें क्या-क्या लगेंगे डाक्यूमेंट्स