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क्या टीचर्स की नौकरी खत्म करने पर तुली एनएमसी, जानिए क्यों हो रहा गाइडलाइन का विरोध

एनएमसी ने हाल ही में एक गाइडलाइन जारी की है। जो नॉन मेडिकल टीचर के नौकरी पर बन आई है। इसलिए इसका टीचर्स विरोध कर रहे हैं।

Edited By: IndiaTV Hindi Desk
Published : Aug 22, 2023 16:34 IST, Updated : Aug 22, 2023 16:34 IST
NMC
Image Source : SCREENGRAB एनएमसी की गाइडलाइन को हो रहा विरोध

हाल ही में अभी नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने एक गाइडलाइन जारी की है। जिसे लेकर मेडिकल टीचर सड़कों पर उतर गए हैं। ये गाइडलाइन बायोकेमिस्ट्री, एनॉटोमी, फार्माकोलॉजी, फिजियोलॉजीऔर माइक्रोबायोलॉजी जैसी नॉन-क्लिनिकल स्पेशलाइजेशन रखने वाले यानी नॉन-मेडिकल टीचर के लिए जारी की गई है। गाइडलाइन में एनएमसी ने इनकी नियुक्ति का कोटा घटाने के साथ-साथ ट्यूटर के नॉन-टीचिंग पद के लिए पीएचडी को जरूरी किया है। इस गाइडलाइन का देशभर के नॉन-मेडिकल टीचर विरोध कर रहे हैं। विरोध कर रहे टीचर्स का कहना है कि इससे उनकी नौकरियां खत्म हो जाएंगी। मेडिकल M.Sc योग्यता रखने वाले व्यक्तियों के लिए रजिस्टर्ड नेशनल एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (NMMTA) ने 21 अगस्त को इस गाइडलाइन का जमकर विरोध किया है। इस विरोध प्रदर्शन में देशभर के नॉन-मेडिकल टीचर शामिल हुए, जिनमें मेडिकल एमएससी और पीएडी डिग्री वाले टीचर भी शामिल थे।

समझें पूरा मामला 

बता दें कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) को बदलकर उसकी जगह नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) को लाया गया है। NMC ने नॉन-मेडिकल टीचर्स के नियुक्ति का कोटा घटाकर 15% कर दिया है, जो पहले बायोकेमिस्ट्री में 50%, एनेटॉमी, बायोकेमिस्ट्री, फार्माकोलॉजी, फिजियोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी में 30% था। वहीं, फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी का कोटा खत्म कर दिया गया है। NMMTA के मुताबिक, नियुक्ति कोटा के घटाने से एक डिपार्टमेंट में केवल एक या दो टीचर्स की भर्ती ही होगी। फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी वाले देश में कहीं भी आवेदन नहीं पाएंगे। ये टीचर अपनी नौकरियां खो देंगे। मेडिकल M.Sc के छात्रों के पास अपने सिलेबस पूरा करने के बाद नौकरी की कोई संभावना ही नहीं रहेगी। 

आखिर क्या है NMMTA की मांग? 

एसोशिएशन ने मांग करते हुए कहा कि हम नॉन-मेडिकल टीचर्स के नियुक्ति के कोटे को बदलने के लिए नहीं कह रहे हैं। हम 30% रिजर्वेशन भी नहीं मांग रहे हैं, जहां भी मेडिकल टीचर नहीं हैं, वहां हम 30% तक ले जाने के लिए कह रहे हैं। इसमें समस्या आखिर क्या है? यह श्रेष्ठता की भावना है और एक नॉन-एमबीबीएस सहकर्मी के साथ स्तर पर सह-अस्तित्व में रहने से इनकार है। NMMTA का कहना है कि क्लिनिकल सब्जेक्ट केवल एमडी/एमएस योग्यता वाले डॉक्टरों द्वारा ही पढ़ाए जाने चाहिए, लेकिन यह नॉन-मेडिकल ​​सब्जेक्ट्स के लिए जरूरी नहीं है, क्योंकि ये बेसिक मेडिकल साइंस है। हमारा पीजी कोर्स एमडी कोर्स के बराबर है, हम दोनों को बराबर पढ़ाया और ट्रेनिंग दी गई है तो फिर हम अयोग्य कैसे हुए?

PhD की मांग पर भी सवाल 

जानकारी दे दें कि बोर्ड ने नॉन-मेडिकल टीचर्स को लेकर दूसरे बदलाव किए हैं जैसे कि ट्यूटर के नॉन-टीचिंग पद के लिए एक Ph.D योग्यता की मांग और परीक्षक की भूमिका से वंचित करने की कोशिश। ये टीचर विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में ट्यूटर, असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, प्रोफेसर और विभागों के हेड के रूप में काम करते हैं। एसोसिएशन ने यूजीसी का हवाला देते हुए बताया कि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए पीएचडी को अनिवार्य नहीं किया गया है, पर NMC ने इसे सबसे कम नॉन-टीचिंग पद के लिए भी जरूरी बना दिया है। हालांकि सरकार ने NMC को मेडिकल शिक्षकों की नियुक्तियों के लिए अभी पूर्व में MCI के दिशानिर्देशों को ही मानने को कहा है। यह आदेश NMMTA की दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका पर निर्णय आने तक लागू रहेगा।

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