भारतीय ट्रेन रोजाना लाखों लोगों को सफर कराती है। ऐसे में आपने कभी न कभी तो ट्रेन से सफर किया ही होगा। ऐसे में आपने देखा होगा कि ट्रेन स्टेशन पर पहुंचते ही किसी प्लेटफार्म पर रूकी होगी, अब वो चाहे जो भी प्लेटफार्म हो। ऐसे में आपके मन कोई सवाल उठे ही होगें कि ये कैसे होता कि ट्रेन को किस प्लेटफॉर्म पर रुकना है या ये कौन तय करता है? लेकिन जमाने के डर से आपने ये सवाल अपने मन में दबा दिए होंगे। लेकिन परेशान न हो हम आपके सवालों जवाब देने की कोशिश करेगें। बता दें कि किस ट्रेन को किस प्लेटफार्म पर ठहरना है, इसे निर्धारित करने के पीछे कई कारण काम करते हैं।
आपने देखा होगा कि सभी बड़े-बड़े स्टेशनों/यार्डों में रुट-रिले या सॉलिड-स्टेट इंटरलॉकिंग का प्रावधान किया गया है। जिसमें पूरे स्टेशन पर ट्रेनों के आवागमन को एक पैनल पर खाली लाइनों एवं प्लेटफार्म की उपलब्धता के हिसाब से नियंत्रण कक्षों (सेंट्रल/ आर आर आई कैबिन्स) में बैठ कर केबिन स्टेशन मास्टरों द्वारा विभिन्न पाइंटों एवं सिग्नलों के परिचालन से नियंत्रित किया जाता है।
केबिन स्थित पैनल का काम
इन केबिनों के अलावा नीचे प्लेटफॉर्म्स पर भी प्लेटफार्म और आउट डोर उप स्टेशन अधीक्षक मौजूद रहते हैं जो केबिन एस एस के साथ गाड़ियों की वास्तविक स्थिति के बारे रेलवे ऑटो फ़ोन और वाकी-टॉकी पर सम्पर्क में रहते हैं। ऐसा ही सम्पर्क यात्री उद्धघोषणा कक्ष के साथ भी रहता है, जहाँ मौजूद कर्मचारी विभिन्न ट्रेनों के प्लेटफार्म के बारे में यात्रियों को सूचित करने के लिए घोषणा के साथ इंडिकेटर पर दिखाते हैं।
प्लेटफार्म इंडिकेटर बोर्ड का काम
प्लेटफार्म उपलब्धता के साथ ही कौन सी ट्रेन किस दिशा में या आगे किस लाइन पर निकालनी है, इसका भी ध्यान रखा जाता है। ताकि उसे लाइन क्लियर देते समय बाकी दिशाओं से आने वाली ट्रेनों का मार्ग यथा-सम्भव अवरुद्ध न हो। कुछ विशेष एवं अति महत्वपूर्ण ट्रेनों जैसे कि शताब्दी या राजधानी इत्यादि को अक्सर स्टेशन के मुख्य प्लेटफार्म पर लिया जाता है, जहाँ पर यात्रियों का पहुंचना अधिकतम सुविधाजनक हो। जैसे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म 1 को ऐसी ट्रेनों के लिए निर्धारित किया गया है। साथ ही कुछ ट्रेनें जिनकी यात्रा समाप्त हो रही है, उन्हें मुख्य लाइनों के प्लेटफार्म की जगह या तो डेड एन्ड वाले प्लेटफॉर्म्स पर लिया जाता है या फिर ऐसे प्लेटफॉर्म जो यदि ज्यादा समय तक रोकना पड़े भी तो बाकी यातायात पर कोई असर न पड़े, इसके साथ ही खाली ट्रैन की यार्ड वगैरह में आसानी से शंटिंग कि जा सके।
इसके अलावा कुछ स्टेशनों पर जहां अप और डाउन लाइन के लिए एक-एक ही प्लेटफार्म हैं, वहाँ ट्रेनों को उनकी दिशा के हिसाब से निर्धारित प्लेटफॉर्मो पर लिया जाता है। यदि किसी महत्वपूर्ण ट्रेन को आगे निकलना है तो उसके आगे चल रही ट्रैन को लूप लाइन प्लेटफार्म पर लिया जाता है, जिससे पीछे से आ रही महत्वपूर्ण ट्रैन मैन लाइन प्लेटफार्म से होती हुई पूरी गति से निकाली जा सके। इसके अतिरिक्त अपेक्षाकृत थोड़े छोटे स्टेशनों पर ज्यादातर ट्रेनों के प्लेटफार्म सामान्यतः निश्चित होते हैं। यदि कोई फेर-बदल है तो इस बारे में घोषणा करके यात्रियों को समय रहते सूचित कर दिया जाता है।
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