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पहाड़ों पर भूकंप से इमारतों को न पहुंचे नुकसान! IIT मंडी ने निकाला शानदार तरीका

इस तरीके से डिसीजन मेकर्स को भूकंप के प्रति भवन के प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए किए जाने वाले किसी भी मजबूत और मरम्मत कार्य को प्राथमिकता देना है।

Edited By: India TV News Desk
Published on: November 25, 2022 23:04 IST
IIT मंडी- India TV Hindi
Image Source : RESEARCH.IITMANDI.AC.IN IIT मंडी

भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के बीच चल रही टक्कर के कारण हिमालय दुनिया के सबसे अधिक भूकंप-संभावित क्षेत्रों में से एक है। समय-समय पर ऐसे भूकंप आते रहे हैं जो इन क्षेत्रों में जीवन और संपत्ति दोनों के नुकसान के मामले में विनाशकारी रहे हैं। 2005 में भूकंप ने कश्मीर के भारतीय हिस्से में 1,350 से अधिक लोगों की जान ले ली, कम से कम 100,000 लोगों को घायल कर दिया, हजारों घरों और इमारतों को बर्बाद कर दिया और लाखों लोगों को बेघर कर दिया। भूकंप को रोका नहीं जा सकता, इमारतों और अन्य बुनियादी ढांचे के डिजाइन के माध्यम से क्षति को निश्चित रूप से रोका जा सकता है, जो भूकंपीय घटनाओं का सामना कर सकते हैं। इसी पर कार्य करते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के रिसचर्स ने हिमालय क्षेत्र में इमारतों की भूकंप झेलने की क्षमता का आकलन करने के लिए एक शानदार तरीका ढूंढ निकाला।

आसानी से हो सकेगा कमजोरियों और ताकत का आकलन 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी विधि विकसित की है जो हिमालयी क्षेत्र में इमारतों की भूकंप-प्रतिरोधी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए मजबूती और मरम्मत को आकलन और प्राथमिकता देना आसान बना देगी। रिसर्च के नतीजे 'बुलेटिन ऑफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग' में पब्लिश किए गए हैं। शोध का नेतृत्व संदीप कुमार साहा, सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ सिविल एंड एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी ने किया है और उनके पीएचडी छात्र यती अग्रवाल द्वारा सह-लेखक हैं।

मौजूदा संरचनाओं की भूकंप सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पहला कदम उनकी मौजूदा कमजोरियों और ताकत का आकलन करना है। हर इमारत का विस्तृत भूकंपीय वल्नेरेबिलिटी मूल्यांकन करना न तो फिजिकल और न ही इकोनॉमिक रूप से प्रैक्टिकल है। बड़े पैमाने पर इमारतों की कमजोरियों का आकलन करने के लिए अक्सर इमारतों की रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग (RVS) की जाती है।

RVS कैसे उपयोगी

RVS जरूरी सूचना का उपयोग यह तय करने के लिए करता है कि कोई इमारत सुरक्षित है या नहीं, या भूकंप सुरक्षा को बढ़ाने के लिए तत्काल इंजीनियरिंग कार्य की जरूरत है। मौजूदा आरवीएस विधियां विभिन्न देशों के डेटा पर आधारित हैं और विशेष रूप से भारत हिमालयी क्षेत्र पर लागू नहीं होती हैं, क्योंकि कुछ विशेषताएं इस क्षेत्र की इमारतों के लिए अद्वितीय हैं।

रिसर्च के बारे में बताते हुए साहा ने कहा, हमने भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आरसी (Reinforced Concrete)इमारतों को स्क्रीन करने के लिए एक प्रभावी तरीका तैयार किया है, ताकि इमारतों की स्थिति के अनुसार मरम्मत कार्य को प्राथमिकता दी जा सके और आने वाले भूकंप के जोखिम को कम किया जा सके।

बड़ी मात्रा में डेटा इकट्ठा किया 

व्यापक क्षेत्र सर्वे के माध्यम से, रिसचर्स ने मंडी क्षेत्र में मौजूद इमारतों के प्रकार और इन इमारतों में मौजूद विशिष्ट विशेषताओं पर बड़ी मात्रा में डेटा इकट्ठा किया है, जो उनकी भूकंप वल्नेरेबिलिटी (vulnerability) से जुड़े हैं। पहाड़ी इमारतों में उनके आरवीएस के लिए मंजिलों की संख्या की गिनती के लिए दिशा निर्देश स्थापित करने के लिए एक संख्यात्मक अध्ययन भी किया गया था। इसके अलावा, इमारतों में मौजूद कमजोर विशेषताओं के आधार पर, एक बेहतर आरवीएस पद्धति प्रस्तावित की गई थी।

किसी भी समय एक बड़े भूकंप की आशंका

इमारतों की स्क्रीनिंग के लिए विकसित पद्धति एक साधारण सिंगल-पेज आरवीएस फॉर्म है, जिसे भरने के लिए अधिक ज्ञान की जरूरत नहीं होती है। इसके कम्यूटिंग प्रोसेस को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह एक इमारत को स्कोर करने में मानव पूर्वाग्रह या निर्धारक की व्यक्तिपरकता की संभावना को कम करता है। शोध के लाभों के बारे में बात करते हुए, स्कॉलर अग्रवाल ने कहा, हमने दिखाया है कि प्रस्तावित विधि पहाड़ी क्षेत्रों में प्रबलित कंक्रीट की इमारतों को भूकंप की स्थिति में होने वाले नुकसान के अनुसार अलग करने के लिए उपयोगी है। हिमालयी क्षेत्र में इमारतों का मूल्यांकन न केवल क्षेत्र की सामान्य भूकंप वल्नेरेबिलिटी के कारण जरूरी है, बल्कि पिछली दो शताब्दियों के भूकंपीय अंतर के कारण किसी भी समय एक बड़े भूकंप की आशंका है।

 

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