आप सभी ने पढ़ा होगा कि भारत समेत कई एशियाई देश पूर्व में हैं और यूरोप पश्चिम में बसा हुआ है। लेकिन क्या आपके मन में यह आया कि धरती तो गोल है फिर कैसे तय हुआ पैमाना? क्या गोल चीज में ये बता पाना संभव है? अगर कहा जाए कि अमेरिका व अन्य यूरोपियन देश पूर्व में होते और एशियाई देश पश्चिम में हो सकते हैं तो ये कैसे गलत साबित होग?।
अगर ये संभव है कि अमेरिका व अन्य यूरोपियन देश पूर्व में होते और एशियाई देश पश्चिम में हो तो ये अब तक हुआ क्यों नहीं? चलिए आपको ज्यादा परेशान नहीं करते हैं हम आपको इसका जबाव बताते हैं।
26 देशों के एक्सपर्ट ने की थी मीटिंग
दरअसल, अमेरिका के 21वें राष्ट्रपति चेस्टर ए. अर्थर ने एक मीटिंग (the International meridian confernce) बुलाई। ये मीटिंग 1 अक्टूबर 1884 को वाशिंगटन डीसी में रखी गई। इस मीटिंग का चेयरपर्सन सी.आर.पी रोजर्स को बनाया गया। ये मीटिंग इंटरनेशनल थी तो कई देश के बड़े-बड़े एक्सपर्ट भी आए थे। इस मीटिंग में 26 देश के एक्सपर्ट ने भाग लिया था।
इन सभी एक्स्पर्टो ने मिलकर ये तय किया कि पृथ्वी का बीचो-बीच कहां होना चाहिए। काफी रायशुमारी के बाद इन सभी ने मिलकर एक लाइन को पृथ्वी का बीचो-बीच माना जो ब्रिटेन से होकर गुजरती हैं। इस लाइन को नाम दिया गया GMT। इस तरह GMT को पैमाना मानकर उस तरफ के हिस्से को वेस्ट बताया गया और इधर के हिस्से यानी भारत समेत एशियाई देशों को पूर्व में रखा गया। बता दें कि ये 22 अक्टूबर 1884 को ये पैमाना माना गया था।
क्या होता है GMT
GMT (ग्रीनविच मीन टाइम) ग्रीनविच, लंदन में रॉयल ऑब्जर्वेटरी में मध्यरात्रि से गिने जाने वाले औसत सौर समय को कहा जाता है। ग्रीनविच मीन टाइम की गणना सूरज के प्रकाश को देख करके की जाती है। जब सूरज अपने उच्चतम बिंदु पर होता है, प्राइम मेरिडियन के ठीक ऊपर, इसका मतलब है कि यह ग्रीनविच में दोपहर के 12:00 बजे हैं। और जब नीचे की ओर होता है तो ग्रीनविच में रात के 12:00 बजते हैं। GMT दुनिया भर के टाइम के मानक के रूप में जाना जाता है।