राजस्थान के कोटा में बीते एक साल में कई छात्रों ने खुदकुशी कर ली है, जो कि एक चिंता का विषय है। इसे लेकर छात्र व विशेषज्ञों ने अपनी चिंता जाहिर की है। विशेषज्ञों ने कहा है कि "कोटा फैक्ट्री" के नाम से मशहूर देश की कोचिंग राजधानी में कोई किसी का दोस्त नहीं है, बल्कि यहां केवल प्रतिस्पर्धी हैं। बता दें कि सरकार इंजीनियरिंग और मेडिकल उम्मीदवारों के बीच आत्महत्या की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए संघर्ष कर रही है। अधिकारियों ने बताया कि साल 2023 में अब तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले 20 छात्रों ने खुदकुशी की है, जो किसी भी साल के लिए सबसे अधिक है वहीं, पिछले साल ये आंकड़ा 15 था।
"दोस्ती का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं"
छात्रों का कहना है कि वे अक्सर खुद को अकेला पाते हैं और उनके साथ बात करने या अपनी भावनाओं को साझा करने वाला कोई नहीं होता है। इस मामले को देखते हुए विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि माता-पिता भी दोस्ती को अपने बच्चों के लिए बुराई के रूप में देखते हैं और जब छात्र कोचिंग के लिए यहां आते हैं और उन्हें दोस्त बनाने के लिए मना करते हैं। मध्य प्रदेश की नीट की तैयारी कर रहीं रिधिमा स्वामी ने कहा कि यहां दोस्ती का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं है। यहां केवल प्रतिस्पर्धी हैं। आपके बगल में बैठा हर छात्र आपको लड़ने के लिए एक अतिरिक्त बोझ के रूप में देखता है। स्कूलों और कॉलेजों के विपरीत, कोई भी यहां साथियों के बीच नोट्स शेयर नहीं करता है क्योंकि हर किसी को एक खतरे के रूप में देखा जाता है जो अपनी पसंद के कॉलेज में किसी की सीट छीन सकता है।
वहीं ओडिशा से जेईई की तैयारी कर रहीं मानसी सिंह कहती हैं कि मैं पिछले दो सालों से यहां हैं, और मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई "ट्रेडमिल" पर हूं। जिसमें आपके पास केवल दो ही विकल्प हैं या तो नीचे उतरें या भागते रहें। आप ब्रेक नहीं ले सकते, गति धीमी नहीं कर सकते बल्कि केवल दौड़ते रह सकते हैं।"
"हर पल बर्बाद"
एक अन्य छात्र ने कहा कि पढ़ाई में खर्च न किया गया हर पल "बर्बाद" माना जाता है, जो किसी क्राइम की तरह लगने लगता है और अंततः प्रदर्शन पर असर पड़ता है, जिससे और अधिक तनाव होता है। महाराष्ट्र के छात्र ने एक घटना साझा करते हुए कहा, 'एक दिन मुझे यहां के एक लड़के की मां का फोन आया, जो उसी हॉस्टल में रहता है। वह चिंतित थी कि वह अपने बेटे से बात नहीं कर पा रही थीं और चाहती थी कि मैं उसे जाकर देंखू क्योंकि वह एक सप्ताह से क्लास नहीं जा रहा था।
मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि हॉस्टल वापस आकर मैं उसके कमरे पर जाऊँगा। मैं वापस जाकर पढ़ाई में लग गया। जबकि उसकी माँ मुझे बुलाती रही, मैं अगले दिन एक परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था कि मैं बेचैन था कि मेरा समय बर्बाद हो जाएगा और मैं अच्छी तरह से तैयारी नहीं कर पाऊँगा"।
छात्र ने आगे कहा, "उसकी मां ने किसी और का पता लगा लिया और मामला सुलझ गया, लेकिन बाद में मुझे दोष जैसा महसूस हुआ कि क्या होता अगर वह अस्वस्थ होता, क्या होता अगर उसने यह बड़ा कदम उठा लिया होता और मुझे बस यही लग रहा था कि मैं इन सब में पडूंगा तो मुझे तैयारी के लिए कम समय मिलेगा। यहां ऐसा दबाव है कि जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मैं कई दिनों तक सोया नहीं।
साथियों के प्रति सहानुभूति नहीं
गवर्नमेंट नर्सिंग कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के प्रमुख दिनेश शर्मा ने कहा कि यहां छात्र न तो खुलते हैं और न ही अपने साथियों के प्रति सहानुभूति रखते हैं। "जब माता-पिता अपने बच्चों को यहां छोड़ते हैं तो उनका पहला निर्देश यही होता है कि दोस्ती में समय बर्बाद मत करो, तुम यहां पढ़ने आए हो। जब माता-पिता इसे नकारात्मक रूप से देखते हैं, तो छात्रों को लगता है कि यह कुछ गलत है और ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। "अब हर कोचिंग में काउंसलर होते हैं, लेकिन ये छात्र यह सोचकर उनके साथ खुलकर बात करने से डरते हैं कि शायद उनके माता-पिता को इसकी जानकारी मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि इसलिए दोस्त वास्तव में मददगार हो सकते हैं लेकिन यहां जो लोग दोस्त बनाते हैं उन्हें अच्छी नजर से नहीं देखा जाता,''
कोटा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक चंद्रशील ठाकुर ने भी कहा, हर छात्र के चिंतित होने पर कुछ लक्षण दिखते हैं चूंकि माता-पिता दूर होते हैं, इसलिए उनके दोस्तों को सबसे पहले पता लग जाएगा। "कोचिंग में कोई साझा एक्साइज नहीं होता है, यह एक पर्सनल जर्नी की तरह है और इससे छात्र अक्सर अकेलापन महसूस करते हैं।
(इनपुट- पीटीआई)
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