दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लाखों लोग रोजना उतरते हैं, प्लेटफॉर्म पर उतरने वालों में से बहुतों के मन में कुछ कर गुजरने की उम्मीद रहती है। कुछ आते हैं पैसे कमाने की चाहते लेकर तो कुछ कुछ बनने का सपना लेकर। ये अधिकतर युवा ही होते हैं। इनकी आखों में घर छोड़ने का दुख होता लेकिन एक चमक भी होती है आईएएस बनने की। पर बीते 27 जुलाई को राजेंद्र नगर इलाके में हुए कोचिंग सेंटर हादसे ने कोचिंग सेंटर और तमाम सुख-सुविधाओं की पोल खोल कर रख दी है।
बिना खिड़की कमरों में रहते हैं
आप जब राजेंद्र नगर या किसी भी कोचिंग हब वाले एरिया में जाएंगे तो पाएंगे कि सिविल सर्विस के उम्मीदवार छोटे-छोटे, बिना खिड़की वाले कमरों में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहते हैं, जहां आम लोग रहना कतई पसंद नहीं करेंगे। लेकिन उनके आंखों में पलता यह सपना उन्हें राहत देता है कि एक दिन उनका भी आएगा जब वे अफसर बन जाएंगे और अपनी पसंदीदा जिंदगी जिएंगे, उन्हें वहां गुजारा करने को बल देता है।
सभी भी कहानी एक जैसी
ओल्ड राजेंद्र नगर हो या मुखर्जी नगर, दिल्ली के कई कोचिंग सेंटर की पटकथा करीब-करीब एक जैसी ही है। बीते डेढ़ साल से राजेंद्र नगर में ग्राउंड फ्लोर पर एक कमरे में रह रहे यूपी के एक सिविल सर्विस अभ्यर्थी ने बताया,"राजेंद्र नगर और मुखर्जी नगर में करीब हर मकान मालिक ने अपने घर को पेइंग गेस्ट के रूप में बदल दिया है।" मुखर्जी नगर में एक कोचिंग सेंटर में पढ़ाई करने वाले एक छात्र ने कहा कि छात्रों की संख्या काफी ज्यादा है और जगह काफी कम है, इसलिए ऐसा हाल है, यहां गरीब परिवारों के लोगों के पास रहने के लिए काफी कम विकल्प हैं।
पीजी मालिकों को पैसे की चाहत
उन्होंने कहा,"खूब पैसे कमाने के लिए पीजी मालिकों ने एक बड़े कमरे को पर्दे से अलग-अलग हिस्सों में बांट देते हैं। ऐसे कमरों में करीबन 5-6 छात्र रहते हैं।" आम तौर पर इन हालात में छात्र सोचते हैं "अभी झेल लो, एक बार नौकरी लग गई, तो आगे पीछे नौकर-चाकर होंगे।" शहर के 2 कोचिंग केंद्रों में रहने वाले कई सिविल सर्विस उम्मीदवारों का कहना है कि वे बिना खिड़की वाले बेसमेंट में रहते हैं, जहां हर बार भारी बारिश होने पर पानी भर जाता हैं। उनका कहना है कि ऐसे कमरों की कीमत ग्राउंड फ्लोर या ऊपरी मंजिलों के कमरों की तुलना में करीब-करीब आधी होती है।
ऊपरी मंजिलों पर रहने के लिए अधिक पैसा
एक अन्य सिविल सेवा अभ्यर्थी ने कहा,"अगर कोई ग्राउंड या ऊपरी मंजिलों पर रहना चाहता है, तो उसे कम से कम 25,000 से 30,000 रुपये हर माह खर्च करने होंगे। जो लोग बेसमेंट में रह रहे हैं, उन्हें लगभग 15,000 से 20,000 रुपये हर माह देने पड़ रहे हैं। खतरा तो है लेकिन पैसे बच जाते हैं।" ओल्ड राजेंद्र नगर में एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में बारिश के कारण पानी भर जाने से सिविल सेवा के तीन अभ्यर्थियों की मौत की घटना बाद छात्रों ने कहा कि वे ऐसे बेसमेंट में रहकर अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं। इसके बावजूद वे अपने संघर्ष का महिमामंडन करते हैं।
पीजी और कक्षाओं का बराबर हाल
एक छात्र ने कहा, ‘‘यह सिविल सर्विस का आकर्षण है कि ऐसी समस्याओं को नजर अंदाज कर दिया जाता है।’’ न केवल पीजी में भीड़ है बल्कि कक्षाओं का भी यही हाल है। उचित सुविधाएं नहीं होने के बावजूद छात्रों की संख्या बढ़ती ही जाती है। कक्षा में 100 छात्र होने पर भी मालिक 120 से 125 से अधिक छात्रों को समायोजित करने का प्रयास करते हैं। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे एक छात्र ने कहा, ‘‘जो लोग बैठने या कक्षा में आने में असमर्थ हैं, उन्हें रिकॉर्ड की गई वीडियो सामग्री दी जाती है जिसका वे बेसमेंट की लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ाई करते हैं।’’
बेसमेंट को किराए पर देना गैरकानूनी
बेसमेंट को पीजी के रूप में किराए पर देना गैरकानूनी है, क्योंकि दिल्ली के मास्टर प्लान (एमपीडी) 2021 में ऐसी जगहों का केवल भंडारण, पार्किंग और उपयोगिता क्षेत्रों के तौर पर उपयोग करने की अनुमति है। असम के एक अन्य आईएएस अभ्यर्थी ने कहा, ‘‘अचानक सरकार सख्त हो गई है, लेकिन यह सिर्फ़ कुछ समय की बात है क्योंकि एक घटना घटी है। हकीकत में कुछ भी लागू नहीं किया जाएगा। समस्या ऐसी ही रहेगी। यह स्थिति सिर्फ़ राजेंद्र नगर के कोचिंग संस्थान तक सीमित नहीं है। सभी की समस्या एक जैसी है।’’
(इनपुट- पीटीआई)
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