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बात उस वक्त की जब घर-घर जाकर ट्यूशन देने लगे थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पढ़ें उनके संघर्ष की दास्तां

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के दिन टीचर्स डे मनाया जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कितने संघर्ष किए?

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: September 05, 2024 13:01 IST
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL MEDIA डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन

देश में हर साल 5 सितंबर को टीचर्स डे के रूप में मनाया जाता है। यह दिन जिनकी जयंती पर मनाया जाता है उनका नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। भारत रत्न डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ही देश में शिक्षा की अलख जगाई। देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले राधाकृष्णन ने अथक प्रयास किया। उन्होंने खुद तमाम परेशानियां झेलीं, घर खर्च चलाने के लिए होम ट्यूशन तक दिया पर शिक्षा के प्रति अपनी ईमानदारी कभी नहीं छोड़ी।

 ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन आए थे फर्स्ट

राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी गांव में हुआ। इनका परिवार बेहद साधारण परिवार था। लेकिन, उनकी शिक्षा और पढ़ाने के तरीकों ने उन्हें काफी मशहूर कर दिया। राधाकृष्णन की शुरुआती पढ़ाई उनके गांव में हुई। इसके बाद उन्होंने ग्रेजुएशन डिग्री हासिल की। इसके बाद फिलॉसफी में पोस्टग्रेजुएशन किया। खास बात यह रही कि उन्हें उस दौर में ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन में पहला मुकाम मिला।

घर का खर्च निकालना मुश्किल हुआ तब..

इस दौरान, उन्हें कॉलेज में पढ़ाने की नौकरी भी मिल गई। उन्हें भी छात्रों को पढ़ाने में काफी रुचि थी। हालांकि, एक साधारण परिवार से आने वाले राधाकृष्णन के लिए इससे घर का खर्च निकालना मुश्किल हो गया। कारण था उनका बड़ा परिवार। साथ ही उनके पिता रिटायर भी हो चुके थे। कॉलेज की नौकरी से मिलने वाले पैसे घर खर्च के लिए कम हो थे। ऐसे में घर की जिम्मेदारी राधाकृष्णन के कंधों पर आ चुकी थी। इससे निपटने के लिए राधाकृष्णन ने तब घर-घर जाकर बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया। इसके बाद ट्यूशन से मिलने वाली फीस से उनके परिवार का खर्च चलने लगा।

स्वामी विवेकानंद के विचारों से थे प्रभावित

बता दें कि स्वामी विवेकानंद के विचारों से राधाकृष्णन काफी प्रभावित थे। वह उन्हें अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते थे। उन्होंने प्रोफेसर के तौर पर मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता यूनिवर्सिटी में काफी लंबे समय तक पढ़ाया। राधाकृष्णन अच्छे टीचर होने के अलावा एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने 'इंडियन फिलॉसफी', 'भगवद गीता' और 'द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ' नाम की किताबें भी लिखी।

बने पहले उप राष्ट्रपति

जब देश आजाद हुआ तो वह साल 1952 में वह भारत के पहले उप राष्ट्रपति बने। साल 1954 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इसके बाद साल 1962 में वह देश के दूसरे राष्ट्रपति बने। उनके कार्यकाल में शिक्षा और संस्कृति पर खासा ध्यान दिया गया। उन्होंने अपने छात्रों को शिक्षा के अतिरिक्त जीवन के मूल्यों की भी शिक्षा दी। देश के लिए उन्होंने शिक्षा को अहम माना और शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कैसे शुरू हुई टीचर्स डे मनाने की प्रथा

शिक्षकों की स्थिति के बारे में उन्हें भलीभांति जानकारी थी, यही वजह है कि अपनी जयंती भी शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की सलाह दी थी। दरअसल, एक बार कुछ स्टूडेंट देश के पहले उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन से मिलने पहुंचे। और उनसे कहा, सर हम आपका जन्मदिन मनाना चाहते हैं। इस पर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कुछ देर चुप रहे, फिर जब छात्र उनकी तरफ लगातार देख ही रहे थे तो उन्होंने छात्रों से कहा, 'मुझे खुशी होगी, अगर मेरे जन्मदिन की जगह आप इस दिन शिक्षक दिवस मनाएं'। 

उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन खुद भी एक शिक्षक थे, और चाहते थे कि देश के सभी शिक्षकों का सम्मान हो। और इस तरह, 5 सितंबर को टीचर्स डे मनाने की परंपरा शुरू हुई। 5 सितंबर 1962 से देश में शिक्षक दिवस मनाने की प्रथा शुरू हुई, जो आज भी सतत जारी है।

(इनपुट- IANS)

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