हमारे देश में रोजाना लाखों लोग ट्रेन से सफर करते हैं। पर शायद ही किसी के मन में ट्रेन या उससे जुड़ी चीजों को लेकर सवाल उठता होगा। पर क्या कभी आपके मन में ये सवाल उठा कि ट्रेन का पाहिया आखिर अंदर से बड़ा क्यों होता है? ये तो बाहर से भी बड़ा हो सकता था। कुछ लोग कहेंगे की ऐसे ही होगा, पर ऐसा नहीं है इसके पीछे भी कमाल की साइंस है। ट्रेन में कार या गाड़ियों की तरह स्टेरिंग तो होती नहीं तो सवाल उठता है कि ट्रेन मुड़ती कैसे होगी? जब ट्रेन मुड़ेगी नहीं तो हम रेलगाड़ी पटरियों के जरिए सीधे चलती रहेगी और हम कभी अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाएंगे।
ट्रेन के पहियों में छिपा है राज
इसका राज ट्रेन के पहियों में है। हालाँकि वे पहली नज़र में पहियों को देखते हो तो वे बेलनाकार (cylindrical) लगते हैं, लेकिन जब आप बारीकी से देखेंगे तो आपको पता चलेगी कि उनका आकार थोड़ा अर्ध-शंक्वाकार (semi-conical) है। यह विशेष रूप से जियोमेट्री ही है, जो ट्रेनों को पटरियों पर बनाए रखती है।
एक्सल के साथ पहिए जुडे़ रहते हैं
दरअसल, ट्रेन के पहिए एक मजबूत धातु की छड़ से जुड़े होते हैं जिसे एक्सल कहा जाता है। यह एक्सल ट्रेन के दोनों पहियों को एक साथ घुमाता रहता है, जब ट्रेन चलती है तो दोनों एक ही गति से मुड़ते हैं। यह सीधी पटरियों के लिए तो बहुत अच्छे हैं। लेकिन जब ट्रेन को एक मोड़ पर मुड़ने की जरूरत होती है तो ये एक समस्या बन सकती है। यहीं पर पहियों की जियोमेट्री काम आती है। पहियों को ट्रैक पर बने रहने में मदद करने के लिए उनका आकार आमतौर पर थोड़ा शंक्वाकार (conical) होता है। इसका मतलब यह है कि पहिए के अंदर की परिधि पहिए के बाहर की तुलना में बड़ी होती है। आसान भाषा में कहें कि पहिए का एक किनारा थोड़ा बड़ा होता है।
मजबूती से पकड़ बनाए रखने में भी मदद
परिणामस्वरूप जब कोई ट्रेन मुड़ रही होती है तो वह क्षण भर के लिए पहियों पर चल रही होती है जो प्रभावी रूप से दो अलग-अलग आकार के होते हैं। जैसे-जैसे बाहरी पहिये की परिधि बड़ी होती जाती है, वैसे-वैसे यह अधिक दूरी तय करने में सक्षम होता है, भले ही यह उसी गति से घूमता हो, जिस गति से अंदर का छोटा पहिया घूमता है। साथ ही जब ट्रेन को मुड़ना होता है तो ये पटरियों को मजबूती से पकड़ बनाए रखने में भी मदद करते हैं।