नई दिल्ली। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने बच्चों की शिक्षा एवं स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर 'चाइल्ड हेल्थ लिटरेसी प्रोग्राम' तथा 'चाइल्ड हेल्थ ब्रिगेड' को लॉन्च किया है। यह भारतीय बाल रोग अकादमी, एसडी पब्लिक स्कूल तथा एएसजीएस ड्रीम बिग वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा शुरू किये गए। इस अवसर पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा, "शिक्षा और स्वास्थ्य दो ऐसे महत्वपूर्ण स्तंभ हैं जिन पर खुशहाल समाज निर्मित होता है। मुझे उम्मीद है कि इस प्रोग्राम की मदद से हमारे बच्चे समाज में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता तथा एक हेल्थ एजुकेशन सिस्टम के निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे तथा चाइल्ड टू चाइल्ड हेल्थ केयर की एक सु²ढ़ श्रृंखला की शुरूआत होगी।"
इस प्रोग्राम में भारतीय बाल रोग (इंडियन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स) के अध्यक्ष डॉ. बकुल पारेख ने भी भाग लिया।शिक्षा एवं स्वास्थ्य की जरूरत को समझाते हुए डॉ निशंक ने कहा, "हम सब इस बात को भली-भांति समझते हैं कि शिक्षा में निवेश स्वास्थ्य में निवेश है। स्वास्थ्य और शिक्षा को एक साथ संबोधित कर हम सतत विकास लक्ष्यों को भी बहुत जल्द हासिल कर सकते हैं। ऐसे में हमारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 भी रोगों के देखभाल के बजाय स्वास्थ्य कल्याण तथा आरोग्यता पर जोर देती है ताकि सभी उम्र के लोग अच्छे स्वास्थ्य का लाभ उठा सकें। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए हमारा शिक्षा मंत्रालय भी शैक्षिक पाठ्यक्रम के एक हिस्से के रूप में शिक्षा स्वास्थ्य को शामिल करते हुए स्कूली स्वास्थ्य में निवेश पर जोर देता है।"
स्वास्थ्य निवेश की जरूरत पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, "हमारे देश में 6 से 18 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 26 करोड़ बच्चे स्कूलों में जा रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों को शिक्षित करना, इनके स्वास्थ्य और व्यवहार के बारे में जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये स्वस्थ जीवन जी सकें और अपनी पूरी क्षमताओं का इस्तेमाल कर सकें तभी एक शिक्षित, समृद्ध, उत्पादक और टिकाऊ समुदाय का भी निर्माण होगा।"
उन्होंने कहा कि बच्चे प्राथमिक उपचार के अपने कौशल से उन स्थानों पर जहां चिकित्सा सहायता उपलब्ध नहीं है या आपातकालीन स्थिति में स्वास्थ्य कर्मी तथा डॉक्टर के पहुंचने तक जीवन रक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण कार्य में अपना योगदान दे सकेंगे।
फिलहाल इस कार्यक्रम से 45 स्कूलों, 100 से ज्यादा शिक्षक एवं प्राध्यापक तथा 1500 से ज्यादा छात्र जुड़े हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य की महत्ता पर जोर देते हुए डॉ. निशंक ने कहा, "इस वैश्विक महामारी के दौर में हम सब जानते हैं कि स्वास्थ्य एक गंभीर मुद्दा बनकर उभरा है। ऐसे में शारीरिक स्वास्थ्य के अलावा भावनात्मक एवं मानसिक स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है हमें बच्चों को यह भी सिखाना है कि उन्हें मानसिक और भावनात्मक कठिनाइयों में कैसे अपने जीवन को संतुलित करना है।
कोरोना संकट काल में शिक्षा मंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान बजट में लगभग 11 फीसदी की वृद्धि करते हुए 7300 करोड़ से बढ़ाकर 8100 करोड़ तक किया है। मिड डे मील का स्वरूप, सूखा भोजन, राशन डीबीटी आदि के रूप में परिवर्तित किया गया है।