कहते हैं कि मेहनत का फल मीठा होता है। कल्पना कीजिए कि जिस शहर में आप ने अपनी सेवाएं दी और आप उसी शहर के बड़े पद पर बैठें। ऐसें में आपके खुशी का ठिकाना नहीं रहेगा। जी हां कुछ ऐसी कहानी आपके पास हम लेकर आए हैं। हम आज एक ऐसी महिला की कहानी बताने जा रहे हैं कि आप भी कहानी जानकार गर्व महसूस करेंगे।
40 साल तक लगाया झाड़ू
ये कहानी है एक ऐसी महिला मेयर की जिसने अपने बुढ़ापे तक शहर का कूड़ा उठाया। इनका नाम चिंता देवी है। चिंता देवी ने शहर में साफ सफाई, झाडू लगाने के अलावा मैला उठाने का काम किया। ये काम उन्होंने 40 साल तक किया। इसके बाद कहानी ने नया मोड़ लिया जब चिंता देवी ने नगर निगम में अपनी जीत दर्ज की और डिप्टी मेयर पद पर भी चुनी गईं।
16,000 वोटों से जीत
गौरतलब है कि चिंता देवी ने गया में डिप्टी मेयर पद के लिए शानदार जीत दर्ज की। वहीं, गया शहर के मेयर पद के लिए वीरेंद्र पासवान ने जीत दर्ज की है। चिंता देवी जब चुनाव मैदान में आईं तो उन्हें शहर से ढेर सारा प्यार मिला। उन्होंने 16,000 वोटों से जीत दर्ज की है। चिंता देवी शहर के विकास के बारे में बात करती हुई बताती हैं कि पर्यटन के पॉइंट ऑफ व्यू से अब इसकी विकास किया जाएगा। सभी नगरवासियों को कोई समस्या नहीं आने दिया जाएगा।
शपथ ग्रहण करने के लिए जब मेयर और डिप्टी मेयर जिला समाहरणालय सभाकक्ष में पहुंचे, तो सभी ने उनका स्वागत किया। सबसे पहले मेयर ने शपथ ली, बाद डिप्टी मेयर चिंता देवी की शपथ का नंबर आया। जब शहर के डीएम डॉक्टर त्यागराजन एसएम उन्हें शपथ दिलाने लगे तो वह शपथपत्र को ठीक से पढ़ नहीं पा रही थीं, तो डीएम ने कहा कि ‘ मैं जैसे-जैसे बोलूंगा वैसे-वैसे आपको बोलना है’। उसके बाद नवनिर्वाचित डिप्टी मेयर चिंता देवी ने अपनी शपथ प्रतिज्ञा पूरी की।
शपथ ग्रहण समारोह में वार्ड पार्षदों को भी शपथ दिलाई गई थी। शपथ ग्रहण से पहले गया नगर निगम क्षेत्र से निर्वाचित सभी वार्ड पार्षद, मेयर और डिप्टी मेयर ढोल नगाड़े के साथ जिला समाहरणालय पहुंचे थे और उनके साथ उनके हजारो समर्थक भी मौजूद थे।
'चिंता देवी को चुनकर पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की'
गया के नवनिर्वाचित मेयर गणेश पासवान ने कहा, "गया एक ऐसी जगह है जहां लोग आत्मज्ञान की तलाश करते हैं और यहां एक दलित महिला लोकसभा में भी जा सकती है। इस बार यहां के लोगों ने चिंता देवी को चुनकर पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की थी। गणेश पासवान ने आगे कहा, "जब शौचालय कम थे तब मैला ढोने वाले के रूप में काम करते थे। यह ऐतिहासिक है।" चिंता देवी की जीत से पता चलता है कि गया के लोग उन लोगों को वोट देना चाहते थे जो रूढ़िवादिता के खिलाफ जाकर अपने शहरों को अच्छी तरह से चलाएंगे