Thursday, November 14, 2024
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कनाडा के वीजा नियम में बदलाव के बाद छात्र परेशान, अब यूरोप व आस्ट्रेलिया जैसे देश में तलाश रहे भविष्य

कनाडा के वीजा नियमों में बदलाव के बाद छात्रों को परेशानी शुरू हो गई है। जिस कारण छात्रों को अब कनाडा छोड़कर अन्य देशों में अपना भविष्य ढूंढना पड़ रहा है।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Updated on: November 14, 2024 15:35 IST
canada- India TV Hindi
Image Source : FREEPIK प्रतीकात्मक फोटो

भारतीय छात्रों में बाहर जाकर विदेश में पढ़ाई करने का क्रेज पर सिर चढ़कर बोल रहा है। इसी बीच कनाडा ने अपने वीजा नियमों में बदलाव कर छात्रों के सपनों पर पानी फेर दिया। इसके बाद से ही छात्र अब कनाडा का अल्टरनेट देश ढूंढ रहे हैं, जहां वे पढ़ाई कर सकें और लाइफ बेहतर बना सकें। पिछले हफ्ते ही कनाडा ने अपनी फास्ट-ट्रैक स्टूडेंट वीज़ा व्यवस्था को समाप्त कर दिया, जिसके तहत 2023 में अधिकांश भारतीय छात्र कनाडा में पढ़ाई करने गए थे। स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम (एसडीएस) और नाइजीरिया स्टूडेंट एक्सप्रेस योजनाएं, जो भारत सहित 16 देशों को कवर करती हैं, में नियमित वीज़ा प्रक्रिया की तुलना में बहुत कम प्रसंस्करण समय और उच्च स्वीकृति दर थी।

पिछले साल, कनाडा ने अपने पोस्ट ग्रेजुएशन वर्क परमिट (PGWP) को आसान कर दिया था, जिसके जरिए कई छात्रों को काम मिला और वे अंततः देश के स्थायी निवासी बन गए। इस साल जनवरी में, कनाडा ने नए अंतरराष्ट्रीय छात्र परमिट पर दो साल की सीमा की घोषणा की, जो मास्टर और पीएचडी कार्यक्रमों पर लागू नहीं होती है।

छात्रों को हो रही परेशानी

इन नए मानदंडों के कारण केरल के पाला के एक छात्र को टोरंटो के एक कॉलेज से अपना आवेदन वापस लेना पड़ा, जहां उसने पहले ही एक सेमेस्टर की फीस जमा कर दी थी। छात्र न नाम न बताने की शर्त पर बताया कि उसके पिता टीचर हैं, साथ ही खेती का भी काम संभालते हैं। छात्र ने कहा कि वह बेहतर जीवन की तलाश में विदेश जाना चाहता है, लेकिन अब वह सिर्फ घर लौटना चाहता है।

केरल के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से केमिस्ट्री ग्रेजुएट ने द टेलीग्राफ ने बता करते हुए कहा, "मैंने रासायनिक प्रयोगशाला विश्लेषण में दो वर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा के लिए एडमिशन लिया था। पर अब मैंने स्टेबैक नियमों के कारण वापस लेने का फैसला किया (जिससे कनाडा में कॉलेज के बाद उनका प्रवास दो साल तक सीमित हो जाता, जो कि अनिश्चितता में डूबा होता)।"

उन्होंने आगे कहा, "मेरा भाई टोरंटो में इंजीनियर है और मैंने उसके कहने पर आवेदन किया था। अब वह स्थायी निवासी बनने की राह पर है, लेकिन नए PGWP मानदंडों के साथ, कोर्स पूरा करने के बाद मेरे लिए यहां नौकरी पाने का कोई रास्ता नहीं है। इसलिए मैंने डबलिन के ग्रिफ़िथ कॉलेज में फार्मास्युटिकल बिज़नेस और टेक्नोलॉजी में एमएससी कोर्स में एडमिशन ले लिया है क्योंकि आयरलैंड पढ़ाई के बाद दो साल का वर्क वीज़ा देता है।"

कनाडा में सबसे ज्यादा भारतीय

बता दें कि विदेश मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 जनवरी को कनाडा में 4.27 लाख भारतीय छात्र थे, जो कि किसी भी अन्य देश से ज़्यादा है। यहां के बाद अमेरिका में 3.37 लाख से ज़्यादा, ब्रिटेन में 1.85 लाख और ऑस्ट्रेलिया में 1.22 लाख से ज़्यादा छात्र हैं। यूरोपीय संघ में जर्मनी, फ्रांस और आयरलैंड में भारतीय छात्रों की संख्या सबसे ज़्यादा है।

भारतीय छात्रों पर दर्ज हो रही गिरावट

अप्रैल में अमेरिकी थिंक टैंक नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी द्वारा पब्लिश इमीग्रेशन डेटा के एनालिसिस में कहा गया है, "2016 और 2019 के बीच, अमेरिकी यूनिवर्सिटीज में नामांकित भारतीय अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या में 13 प्रतिशत की गिरावट आई, लेकिन कनाडाई विश्वविद्यालयों में 182 प्रतिशत की वृद्धि हुई। ट्रम्प प्रशासन के तहत अधिक रिस्ट्रेटिव इमीग्रेशन और अंतर्राष्ट्रीय छात्र नीतियां और संयुक्त राज्य अमेरिका में ग्रीन कार्ड प्राप्त करने में कठिनाई महत्वपूर्ण कारक थे।"

कम हुई छात्रों की संख्या

वहीं, नई दिल्ली में लोयोला ग्लोबल करियर्स की सलाहकार जेसी जोस के पास पिछले साल कनाडा में पढ़ाई करने के लिए 50 छात्रों ने आवेदन किया था। जबकि इस साल उनके पास महज चार छात्र हैं। उन्होंने कहा, "अधिकांश छात्र बिजनेस मैनेजमेंट या डेटा एनालिटिक्स में डिप्लोमा के लिए जा रहे थे। आज, फ्रांस, आयरलैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया सबसे अधिक मांग वाले देश हैं। एसडीएस केवल 4 सप्ताह में स्टडी परमिट आवेदनों को जारी करता है, जबकि गैर-एसडीएस आवेदकों के लिए कई महीनों का सामान्य प्रसंस्करण समय लगता है।"

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