देश को आजाद कराने के लिए न जानें कितने ही सपूतों ने अपने-अपने तरीकों से लड़ाई लड़ी और बहुतों ने तो अपने प्राणों की आहुति भी दी। इस लड़ाई में कोई क्रांतिकारी बना तो कोई गांधी जी के अहिंसावादी रास्ते पर चला। ऐसे ही एक वीर सपूत थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जिन्होंने एक अलग राह पकड़ी और आजाद हिंद फौज का गठन किया। अब आप सोच रहे होंगे कि सुभाष चंद्र बोस का 30 दिसंबर की तारीख और अंडमान से क्या संबंध है, दूसरी भाषा में कहें तो इनका आपस में क्या संबंध है? तो चलिए इस प्रश्न के उत्तर से हम इस खबर के माध्यम से अवगत होते हैं।
क्या है संबंध?
इतिहास में ऐसे कई पन्ने दर्ज हैं जिनसे बहुत से लोग अनभिज्ञ हैं। ऐसा ही एक पन्ना, 30 दिसंबर 1945 और अंडमान का सुभाष चंद्र बोस से संबंध व्यक्त करता है। वर्ष 1945 की 30 दिसंबर की तारीख अपने आप में एक अलग ही इतिहास को दर्ज कराती है। दरअसल, 30 दिसंबर 1945 को ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने अंडमान की भूमि पर ध्वज फहराकर अंडमान को स्वतंत्र करने का ऐतिहासिक काम किया था। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि अंडमान को समूचे भारत में सबसे पहले आजाद होने का गौरव प्राप्त हुआ था।
सेलुलर जेल
अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के पोर्ट ब्लेयर में ही मौजूद है सेलुलर जेल(Cellular Jail), जिसे अंग्रेजों ने साल 1906 में बनाया था। इस तीन मंजिला जेल को स्वतंत्रता सेनानियों का तीर्थ स्थल भी कहते हैं। बता दें कि जब हमारा देश आजाद नहीं था और स्वतंत्रता के लिए हर कोने में ज्वाला जल रही थी, उस समय बहुत से क्रांतिकारियों को इस जेल में भेजा जाता था। इस जेल की सजा को कालापानी की सजा भी कहते थे। विनायक दामोदर सावरकर समेत अनेक स्वतंत्रता सैनानियों को इस जेल में भेजा गया था।