नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में जहां एक ओर अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों के लिए 100 फीसदी तक कट ऑफ जा रही है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली विश्वविद्यालय के 20 से अधिक कॉलेजों ऐसे हैं जहां स्थाई प्रिंसिपल के पद खाली पड़े है। यह सभी कॉलेजों दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के इन कॉलेजों में फिलहाल गवर्निंग बॉडी तक नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के जिन कॉलेजों में स्थायी प्रिंसिपल नहीं है उनमें श्री अरबिंदो कॉलेज, श्री अरबिंदो कॉलेज(सांध्य) मोतीलाल नेहरू कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज(सांध्य) सत्यवती कॉलेज, सत्यवती कॉलेज (सांध्य), भगतसिंह कॉलेज ,भगतसिंह कॉलेज(सांध्य) श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, भारती कॉलेज, इंदिरा गांधी स्पोर्ट्स कॉलेज, महाराजा अग्रसेन कॉलेज, राजधानी कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज, भगिनी निवेदिता कॉलेज, महर्षि वाल्मीकि कॉलेज ऑफ एजुकेशन, गार्गी कॉलेज, कमला नेहरू कॉलेज , मैत्रीय कॉलेज आदि शामिल हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले इन कॉलेजों में लंबे समय से प्रिंसिपल पदों को नहीं भरा गया है। कुछ कॉलेजों में 5 साल और उससे अधिक समय से कार्यवाहक ओएसडी कार्य कर रहे हैं। यूजीसी रेगुलेशन के अंतर्गत स्थायी प्रिंसिपल का कार्यकाल 5 साल का होता है, मगर ये प्रिंसिपल उससे ज्यादा समय तक अपने पदों पर बने हुए हैं। बावजूद इसके इन कॉलेजों में प्रिंसिपल की नई स्थायी नियुक्ति अब तक नहीं की गई।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर व अकादमिक कौंसिल के पूर्व सदस्य डॉ हंसराज ने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन बार-बार इन्हें एक्सटेंशन दे रहा है जबकि अधिकांश कॉलेजों ने अपने यहां प्रिंसिपल पदों को भरने के लिए विज्ञापन निकाले थे, लेकिन दिल्ली सरकार से वित्त पोषित इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी तक नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के इन 20 कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी का कार्यकाल भी 13 सितंबर 2021 को समाप्त हो गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी को तीन तीन महीने का एक्सटेंशन दो बार दे चुकी है। गवर्निंग बॉडी को तीसरी बार एक्सटेंशन देने का प्रावधान दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिनियमों में नहीं है।
दिल्ली सरकार का शिक्षा मंत्रालय यदि कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी सदस्यों के नाम समय पर दिल्ली विश्वविद्यालय प्रशासन को भेजता तो कार्यकारी परिषद (ईसी) में उन सदस्यों के नामों की संस्तुति कर विश्वविद्यालय कॉलेजों को भेजे जा सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं होने पर इन कॉलेजों ने 17 सितंबर से अपने यहां ट्रेंकेटिड गवर्निंग बॉडी बनानी शुरू कर दी।
अब इन पदों को भरने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को नियुक्ति संबंधित विज्ञापन निकालने के लिए कॉलेजों को सकरुलर जारी करना पड़ेगा। इन कॉलेजों में खाली पड़े प्रिंसिपल व सहायक प्रोफेसर के पदों को भरने के शिक्षक संगठनों ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से भी मांग की है।
उन्होंने बताया है कि जिन कॉलेजों में प्रिंसिपल पदों पर इंटरव्यू नहीं हुए उन विज्ञापनों की समय सीमा समाप्त हो गई। उनका कहना है कि इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी होगी तभी प्रिंसिपल व सहायक प्रोफेसर के पदों का विज्ञापन निकालकर स्थायी शिक्षकों व प्रिंसिपलों की नियुक्ति की जा सकती है ।
प्रिंसिपलों के पदों पर स्थायी नियुक्ति न होने से इन कॉलेजों में सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति भी नहीं हो पा रही है जबकि गैर शैक्षिक पदों पर नियुक्ति व पदोन्नति की जा रही है। इनमें से एक दर्जन कॉलेजों में शिक्षकों की सैलरी का संकट भी रहा है। डूटा अध्यक्ष राजीब यूजीसी के समक्ष इनमें से कई कॉलेजों का मुद्दा उठा चुके हैं। यूजीसी अधिकार से मुलाकात के बाद डूटा अध्यक्ष राजीब ने कहा है कि यूजीसी से इन कॉलेजों को टेकओवर करने की मांग की गई है।